ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 33/ मन्त्र 12
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - नद्यः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अता॑रिषुर्भर॒ता ग॒व्यवः॒ समभ॑क्त॒ विप्रः॑ सुम॒तिं न॒दीना॑म्। प्र पि॑न्वध्वमि॒षय॑न्तीः सु॒राधा॒ आ व॒क्षणाः॑ पृ॒णध्वं॑ या॒त शीभ॑म्॥
स्वर सहित पद पाठअता॑रिषुः । भ॒र॒ताः । ग॒व्यवः॑ । सम् । अभ॑क्त । विप्रः॑ । सु॒ऽम॒तिम् । न॒दीना॑म् । प्र । पि॒न्व॒ध्व॒म् । इ॒षय॑न्तीः । सु॒ऽराधा॑ । आ । व॒क्षणाः॑ । पृ॒णध्व॑म् । या॒त । शीभ॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अतारिषुर्भरता गव्यवः समभक्त विप्रः सुमतिं नदीनाम्। प्र पिन्वध्वमिषयन्तीः सुराधा आ वक्षणाः पृणध्वं यात शीभम्॥
स्वर रहित पद पाठअतारिषुः। भरताः। गव्यवः। सम्। अभक्त। विप्रः। सुऽमतिम्। नदीनाम्। प्र। पिन्वध्वम्। इषयन्तीः। सुऽराधा। आ। वक्षणाः। पृणध्वम्। यात। शीभम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 33; मन्त्र » 12
अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्या यथा गव्यवो भरता नौकादिना नदीनां प्रवाहानतारिषुर्यथा सुराधा विप्रः सुमतिं समभक्त यथा वक्षणा वहन्ति तथेषयन्तीः प्रपिन्वध्वं सर्वानापृणध्वं शुभगुणान् शीभं यात ॥१२॥
पदार्थः
(अतारिषुः) तरन्तु (भरताः) धारकपोषकाः (गव्यवः) आत्मनो गां सुशिक्षितां वा वाचमिच्छवः (सम्) (अभक्त) सम्यग्भजेत (विप्रः) मेधावी (सुमतिम्) श्रेष्ठां बुद्धिम् (नदीनाम्) सरितामिव वर्त्तमानानां विदुषीणाम् (प्र) (पिन्वध्वम्) सेवध्वम् (इषयन्तीः) इषमन्नं कुर्वन्त्यः (सुराधः) शोभनं राधो यस्य सः (आ) (वक्षणाः) वहमाना नद्यः (पृणध्वम्) पावयध्वम् (यात) प्राप्नुत (शीभम्) क्षिप्रम्। शीभमिति क्षिप्रना०। निघं० २। १५ ॥१२॥
भावार्थः
मनुष्या नदीसमुद्रादीन् जलाशयान् विद्वद्वत्प्रतीर्य्य सुखं सद्यः सेवन्ताम् ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे (गव्यवः) अपनी उत्तम शिक्षायुक्त वाणी की इच्छा करने तथा (भरताः) धारण और पोषण करनेवाले नौका आदि से (नदीनाम्) नदियों के सदृश वर्त्तमान पढ़ी हुई स्त्रियों के ज्ञानप्रवाहों को (अतारिषुः) तरैं, जैसे (सुराधाः) उत्तम धनयुक्त (विप्रः) बुद्धिमान् पुरुष (सुमतिम्) उत्तम बुद्धि को (सम्, अभक्त) अच्छे प्रकार सेवन करे और जैसे (वक्षणाः) बहती हुईं नदियाँ और बहती हैं वैसे (इषयन्तीः) अन्न को सिद्ध करनेवाली स्त्रियों को (प्र, पिन्वध्वम्) सेवन करो, सबका (आ) (पृणध्वम्) पालन करो और उत्तम गुणों को (शीभम्) शीघ्र (यात) प्राप्त होओ ॥१२॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि नदी और समुद्र आदि जलाशयों को विद्वानों के सदृश पार होके सुख का शीघ्र सेवन करें ॥१२॥
विषय
सुमति की प्राप्ति
पदार्थ
[१] (गव्यवः) = इन्द्रियरूप गौवों को चाहते हुए (भरता:) = युक्ताहार-विहार द्वारा अपना ठीक भरण करनेवाले पुरुष (अतारिषुः) = इस नाड़ी-चक्र के सब दोषों को दूर करनेवाले होते हैं । (विप्रः) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाला (विश्वामित्र नदीनाम्) = 'इडा, पिंगला व सुषुम्णा' नामक नाड़ियों की शुद्धि से प्राप्त होनेवाली सुमतिम् शुभ बुद्धि को समभक्त सेवन करनेवाला होता है। [२] (इषयन्ती:) = प्रभुप्रेरणा प्राप्त करानेवाली होती हुई (प्र-पिन्वध्वम्) = हमारा प्रकर्षेण प्रीणन करनेवाली होओ। (सुराधा:) = उत्तम सफलता प्राप्त करानेवाली (वक्षणा:) = उन्नति की कारणभूत [वक्ष्= to grow] नाड़ियो! (आपृणध्वम्) = [सर्वतः पूरयत] सब उत्तमताओं को हमारे में भरनेवाली होओ और (शीभम्) = शीघ्रता से यात-गतिवाली होओ। इन नाड़ियों में रुधिर का प्रवाह ठीक से होता रहे और हमारे स्वास्थ्य में किसी प्रकार की कमी न रहे।
भावार्थ
भावार्थ- हम नाड़ियों को निर्दोष बनाकर अपनी सब कमियों को दूर करनेवालें हों। इस साधना से हमें सुमति प्राप्त हो और हम सब प्रकार से अपना पूरण करनेवाले बनें ।
विषय
योग्य भूमिवत् स्त्री प्राप्त कर संसार पार करने का उपदेश।
भावार्थ
जिस प्रकार (गव्यवः) उत्तम भूमि के स्वामी (भरताः) प्रजा के पालक पुरुष (सम् अतारिषुः) नदियों को उत्तम उपाय से पार कर जाते हैं और जिस प्रकार (विप्रः) विद्वान् पुरुष (नदीनां) उत्तम उपदेश करने वाली वाणियों के (सुमतिम्) उत्तम ज्ञान को (सम् अभक्त) अच्छी प्रकार ग्रहण कर लेता है और जिस प्रकार (सुराधाः वक्षणाः) उत्तम रीति से बनाई गई जल बहाने वाली नदियां (इषयन्तीः) अन्न उत्पन्न करती हुई प्रजाओं को पुष्ट करती हैं, पालती है और शीघ्रता से बहती हैं। उसी प्रकार (भरताः) पालन पोषण करने में समर्थ पुरुष (गव्यन्तः) अपने लिये योग्य भूमि, क्षेत्र, स्त्री प्राप्त करके ही (सम् अतारिषुः) इस संसार सागर के कर्त्तव्य-पथ से पार उतर जाते हैं। (विप्रः) मेधावी विद्वान् पुरुष (नदीनाम्) गुणों में सम्पन्न स्त्रियों की (सुमतिम्) शुभ धर्म बुद्धि को (सम् अभक्त) अच्छी प्रकार सेवन करता है। हे उत्तम स्त्रियो ! आप लोग (इषयन्तः) उत्तम अन्न बनाती हुईं और (सुराधाः) उत्तम ऐश्वर्यवती होकर (प्र पिन्वध्वम्) अच्छी प्रकार बढ़ो बढ़ाओ। (वक्षणाः आपृणध्वम्) अपने कोखों को सन्तानों से पूर्ण करो। (शीभम् यात) उत्तम रीति से यथाशीघ्र पतियों को प्राप्त करो। (२) इसी प्रकार, प्रजाएं और सेनायें भी अन्न ऐश्वर्य चाहती हुईं खूब बढ़े बढ़ावें, गाड़ियों को भरें और शीघ्र यातायात करें। भूमि के स्वामी संग्रामों को पार करें, विजयी हों। बुद्धिमान् पुरुष समृद्ध प्रजाओं की सुसम्मति को अपने साथ रक्खें। (३) वाणी के इच्छुक शिष्य ज्ञान प्राप्त कर पार उतरें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ नद्यो देवता॥ छन्द:- १ भुरिक् पङ्क्तिः। स्वराट् पङ्क्तिः। ७ पङ्क्तिः। २, १० विराट् त्रिष्टुप्। ३, ८, ११, १२ त्रिष्टुप्। ४, ६, ९ निचृत्त्रिष्टुप्। १३ उष्णिक्॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जसे विद्वान लोक नदी व समुद्र इत्यादी जलशयातून (नौकांद्वारे) तरून जातात तसे माणसांनी उत्तम बुद्धी, शुभ गुण प्राप्त करून सुखी व्हावे. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May the producers, managers and rulers seeking and developing lands, and cows, and animal husbandry manage water resources. Let the intellectuals study and share the secret of river power. O people of the land, develop the rich and productive streams and rivers and fill the fields and canals with water for irrigation. Come all, go far, be quick and effective.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of men are further described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! the upholders and sustainers of the people desire to have well-balanced and cultured speech, and attain the limit of knowledge like the enlightened ladies. They do it like crossing of the river with boats. As a wise man blessed with good wealth (of wisdom) always serves (possesses) good intellect, as the rivers flow, likewise O women ! serve all the members of the family by cooking good food, and thus serving them preserve health of all and inculcate good virtues soon.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should soon enjoy happiness by crossing rivers and oceans like the learned persons do it with the help of the boats and steamers etc.
Foot Notes
(गव्यवः) आत्मनो गां सुशिक्षितां वाचमिच्छवः । गौरिति वाङ्नाम (NG 1, 11 ) = Desiring to have well balanced and cultured speech. (इषयन्ती:) इषमन्नं कुर्वन्त्यः । इषम् इति अन्ननाम (NG 2, 7) = Cooking good food. ( नदीनाम् ) सरितामिव वर्त्तमानानां विदुषीणाम् । (वक्षणा:) वहमाना नद्यः । वक्षणा इति नदीनाम ( N. G. 1, 13 ) = Of the learned ladies who are benevolent like the rivers. ( पिन्वध्वम् ) सेवध्वम् = Serve. (शोभम् ) क्षित्रम् । शोभमिति क्षिप्रनाम (NG 2, 15 ) = Flowing rivers.
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