Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 59 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 59/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - मित्रः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    मि॒त्रस्य॑ चर्षणी॒धृतोऽवो॑ दे॒वस्य॑ सान॒सि। द्यु॒म्नं चि॒त्रश्र॑वस्तमम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मि॒त्रस्य॑ । च॒र्ष॒णि॒ऽधृतः॑ । अवः॑ । दे॒वस्य॑ । सा॒न॒सि । द्यु॒म्नम् । चि॒त्रश्र॑वःऽतमम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मित्रस्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य सानसि। द्युम्नं चित्रश्रवस्तमम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मित्रस्य। चर्षणिऽधृतः। अवः। देवस्य। सानसि। द्युम्नम्। चित्रश्रवःऽतमम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 59; मन्त्र » 6
    अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ प्रजामित्रराजगुणानाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यस्य चर्षणीधृतो मित्रस्य देवस्य सानस्यवश्चित्रश्रवस्तमं द्युम्नं चास्ति स एव प्रजा रक्षितुं शक्नोति ॥६॥

    पदार्थः

    (मित्रस्य) सर्वस्य सुहृदः (चर्षणीधृतः) मनुष्याणां धर्तुः (अवः) रक्षणादिकम् (देवस्य) विदुषो राज्ञः (सानसि) पुरातनम् (द्युम्नम्) यशःकरं धनं विज्ञानं वा (चित्रश्रवस्तमम्) चित्राण्यद्भुतानि श्रवांसि श्रवणान्यन्नानि वा येन तदतिशयितम् ॥६॥

    भावार्थः

    ये सनातनं विद्याधनं गृहीत्वा सर्वाः प्रजा रक्षन्ति तेऽत्राऽमुत्र च सुखं लभन्ते ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब प्रजा, मित्र, राजा के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जिस (चर्षणीधृतः) मनुष्यों के धारण करनेवाले (मित्रस्य) सबके मित्र (देवस्य) विद्वान् राजा का (सानसि) प्राचीन (अवः) रक्षा आदि (चित्रश्रवस्तमम्) जिसके अत्यन्त होने से अद्भुत श्रवण वा अन्न सिद्ध होते (द्युम्नम्) और जो वश करनेवाला धन वा विज्ञान है, वही प्रजाओं की रक्षा कर सकता है ॥६॥

    भावार्थ

    जो लोग अनादिकाल से सिद्ध विद्याधन का ग्रहण करके सम्पूर्ण प्रजाओं की रक्षा करते हैं, वे इसलोक और परलोक में सुख को प्राप्त होते हैं ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    शक्तिसम्पन्नता व ज्ञानसम्पन्नता

    पदार्थ

    [१] (चर्षणीधृतः) = वृष्टि आदि द्वारा मनुष्यों का धारण करनेवाले (मित्रस्य) = सब रोगों से बचानेवाले (देवस्य) = प्रकाशमय सूर्य का (अवः) = रक्षण (सानसि) = सब से सम्भजनीय [सेवनीय] है। सूर्य द्वारा हमारे में प्राणशक्ति का संचार होता है। इसद्वारा सूर्य हमें रोगों से बचाता है। इस प्रकार यह सूर्य द्वारा किया गया रक्षण सम्भजनीय ही है। [२] सूर्य द्वारा प्राप्त कराई गई (द्युम्नम्) = शक्ति सम्भजनीय है और सूर्य द्वारा प्राप्त कराया गया (चित्त श्रवस्तमम्) = अतिशयेन अद्भुत ज्ञान अवश्य ही सम्भजनीय है। सूर्यकिरणों का सम्पर्क हमें शरीर में शक्ति सम्पन्न बनाता है तथा मस्तिष्क में ज्ञान-सम्पन्न ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सूर्यकिरणों का सम्पर्क हमें रोगों से बचाकर शरीर में शक्ति-सम्पन्न तथा मस्तिष्क में ज्ञान-सम्पन्न बनाता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उनके कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (चर्षणीधृतः) मनुष्यों को धारण करने वाले, उनके शासक, (देवस्य) दानशील तेजस्वी (मित्रस्य) रक्षक, शत्रुहिंसक, स्नेही पुरुष का (चित्रश्रवस्तमम्) अद्भुत अन्नादि रस तथा उत्तम श्रवणयोग्य, कीर्त्ति और ज्ञान से युक्त (द्युम्नं) ऐश्वर्य और तेज (सानसि) सबके सेवन करने और सबको सुख देने वाला हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ मित्रा देवता॥ छन्दः— १, २, ५ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४ भुरिक् पंक्तिः। ६, ९ निचृद्वायत्री। ७, ८ गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक अनादि काळापासून सिद्ध असलेल्या विद्याधनाचा स्वीकार करून संपूर्ण प्रजेचे रक्षण करतात ते इहलोकी व परलोकी सुख भोगतात. ॥ ६ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The care and protection, wealth and enlightenment of the self-refulgent sustainer and ordainer of humanity is eternal and omnificent, most wonderful and inexhaustible, glorious and infinite.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of a king friendly to his subjects are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! that learned king alone can protect his subjects who upholds his people, and whose protection s is time proven, established since long and whose wealth and knowledge have brought him good reputation.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those (rulers) who protect all subjects having acquired the eternal wealth of knowledge, enjoy happiness in this world and beyond.

    Foot Notes

    (चर्षणीधृतः) मनुष्याणां धर्तुः । चर्षणय इति मनुष्यनाम (NG 2, 3) = Of the upholder of men (सानसि ) पुरातनम् । (सानसि ) पुणाक्षि सानसि ऋतुम् इति पुर्णाक्षि सनातन ऋतुम् इत्येतत् ( Stph 7, 3, 1, 32) = Ancient. Time proven (द्युम्नम् ) यश: कर धनं विज्ञानं वा । (द्युम्नम् ) द्युम्नम् इति धननाम (NG 2, 10 ) चुम्न द्योततेर्यशो वा अन्नम् वेति (NKT 5, 15 ) द्युम्नम् इति पदनाम (NG 4, 2) = Wealth or knowledge which causes good reputation. It is thus clear that according to the Shatpath Brahman सामसि means सनातन eternal or ancient as explained by Rishi Dayananda Sarasvati.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top