ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 8/ मन्त्र 9
ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
हं॒साइ॑व श्रेणि॒शो यता॑नाः शु॒क्रा वसा॑नाः॒ स्वर॑वो न॒ आगुः॑। उ॒न्नी॒यमा॑नाः क॒विभिः॑ पु॒रस्ता॑द्दे॒वा दे॒वाना॒मपि॑ यन्ति॒ पाथः॑॥
स्वर सहित पद पाठहं॒साःऽइ॑व । श्रे॒णि॒शः । यता॑नाः । शु॒क्राः । वसा॑नाः । स्वर॑वः । नः॒ । आ । अ॒गुः॒ । उ॒त्ऽनी॒यमा॑नाः । क॒विऽभिः॑ । पु॒रस्ता॑त् । दे॒वाः । दे॒वाना॑म् । अपि॑ । य॒न्ति॒ । पाथः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
हंसाइव श्रेणिशो यतानाः शुक्रा वसानाः स्वरवो न आगुः। उन्नीयमानाः कविभिः पुरस्ताद्देवा देवानामपि यन्ति पाथः॥
स्वर रहित पद पाठहंसाःऽइव। श्रेणिशः। यतानाः। शुक्राः। वसानाः। स्वरवः। नः। आ। अगुः। उत्ऽनीयमानाः। कविऽभिः। पुरस्तात्। देवाः। देवानाम्। अपि। यन्ति। पाथः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 8; मन्त्र » 9
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः के पूर्णं सुखमाप्नुवन्तीत्याह।
अन्वयः
ये देवाः श्रेणिशो यतानाः शुक्रा वसानाः स्वरवो हंसाइव न उन्नीयमानाः पुरस्तात्कविभिः सह वर्त्तमानानां देवानां पाथोऽपि यन्ति तेऽप्यस्मानागुः ॥९॥
पदार्थः
(हंसाइव) यथा पक्षिविशेषाः (श्रेणिशः) कृतश्रेणयो विहितपङ्क्तयः (यतानाः) प्रयतमानाः (शुक्रा) शुक्राण्युदकानि (वसानाः) आच्छादयन्तः (स्वरवः) सुस्वरान् सेवमानाः (नः) अस्मान् (आ) समन्तात् (अगुः) प्राप्नुवन्ति (उन्नीयमानाः) उत्कृष्टान् गुणान् प्रापयन्तः (कविभिः) मेधाविभिः (पुरस्तात्) प्रथमतः (देवाः) दिव्यगुणकर्मस्वभावा विपश्चितः (देवानाम्) विदुषाम् (अपि) (यन्ति) गच्छन्ति (पाथः) मार्गम् ॥९॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। ये हंसाइव संहता भूत्वा प्रयत्नेन सर्वानुन्नीय स्वयमुन्नताः सन्त आप्तमार्गं गत्वा वीर्य्यं वर्धयन्ति त एव पुष्कलं सुखमश्नुवते ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर कौन पूर्ण सुख को प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
जो (देवाः) उत्तम गुण-कर्म-स्वभाववाले पण्डित लोग (श्रेणिशः) पंक्ति बाँधे (यतानाः) यत्न करते और (शुक्राः) जलों को (वसानाः) आच्छादन करते हुए (स्वरवः) सुन्दर स्वरों का सेवन करनेहारे (हंसाइव) हंसों के तुल्य दर्शनीय (नः) हमको (उन्नीयमानाः) उत्तम गुणों को प्राप्त करते हुए (पुरस्तात्) पहिले से (कविभिः) बुद्धिमानों के साथ वर्त्तमान (देवानाम्) विद्वानों के (पाथः) मार्ग को (अपि, यन्ति) चलते हैं वे भी हमको (आ, अगुः) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो हंसों के तुल्य मिल के प्रयत्न से सबकी उन्नति कर अपने आप उन्नति को प्राप्त हुए आप्त सत्यवादियों के मार्ग में चल के पराक्रम बढ़ाते हैं, वे ही पूर्ण सुख को भोगते हैं ॥९॥
विषय
कवि सम्पर्क
पदार्थ
[१] (नः) = हमें विद्वान् लोग, लोक विध्वंस रहित जो (विद्वान् स्वरवः) = सदा प्रभु का शंसन करने में प्रवृत्त हैं। (शुक्रा वसाना:) = निर्मल ज्ञानदीप्तियों को धारण करनेवाले हैं । (हंसाः इव) = हंसों की तरह निर्मल व श्वेत हैं, शुद्ध जीवनवाले हैं। (श्रेणिशः यताना:) = एक श्रेणि के रूप में यत्न करनेवाले हैं, अर्थात् जिनके कार्य एक-दूसरे का विरोध करनेवाले नहीं, जिनके कार्य एक-दूसरे के पूरक ही होते हैं। यदि इनके उपदेश एक-दूसरे के विरुद्ध हों तो लोगों को सिवाय मतिभ्रम के और कुछ नहीं होता और वे मार्ग को ठीक रूप में जान नहीं पाते। [२] इस प्रकार के (कविभिः) = क्रान्तदर्शी लोगों के उपदेशों से पुरस्तात् (उन्नीयमानाः) = आगे उन्नतिपथ पर ले जाये जाते हुए ये लोग (देवाः) = देववृत्ति के बनते हैं। और (देवानाम्) = देवों के (पाथ:) = मार्ग पर अपियन्ति चलनेवाले होते हैं। ‘सूर्य से, चन्द्र से, पर्जन्य से सभी से अपने जीवनव्रतों का ये ग्रहण करते हैं तथा विद्वान् लोगों के जीवन का अनुकरण करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- हमें 'हंसों की तरह उज्ज्वल जीवनवाले (श्वेत), परस्पर अविरुद्ध यत्न करनेवाले, दीप्तज्ञानों को धारण करनेवाले, प्रभु के उपासक' विद्वान् प्राप्त हों। इनसे उन्नतिपथ पर ले जाये जाते हुए हम देव बनें। सूर्यादि देवों से व्रतों को धारण करें।
विषय
हंसों के तुल्य वीर और विद्वान् जन।
भावार्थ
(हंसा इव श्रेणिशः) पंक्ति बांधकर जिस प्रकार हंस शब्द करते हुए आते जाते हैं उसी प्रकार (शुक्रा वसानाः) शुद्ध, कान्तियुक्त वस्त्रों को धारण करने वाले (श्रेणिशः यतानाः) अपने २ वर्ग या पंक्ति में बद्ध होकर यत्न करते हुए (स्वरवः) शत्रुओं को पीड़ा देने वाले या उत्तम ध्वनि या शब्द करते हुए उत्तम उपदेश वचन कहते हुए (नः) हमें (आगुः) प्राप्त हों। वे (पुरस्तात्) सबके समक्ष (कविभिः) विद्वान् दीर्घदर्शी पुरुषों द्वारा (उत् नीयमाना) उत्तम पद पर पहुंचाये हुए (देवाः) दानशील विद्वान् और विजयी पुरुष (देवानाम्) सूर्य के प्रकाशक किरणों के (पाथः) जल को जलप्रद मेघों के समान उनके (पाथः) अनुकरणीय मार्ग को (यन्ति) प्राप्त होते हैं। प्रसङ्गवश किरणों और मेघगण (शुक्रा वसानाः) ‘शुक्र’ अर्थात् सूक्ष्म जलों को धारण करने वाले (स्वरवः) उपताप देने वाले, इसी प्रकार मेघ गर्जनशील, (कविभिः उत् नीयमानाः) वायुओं द्वारा उठाकर देशान्तर ले जाये गये वे (देवाः) जलप्रद मेघ (देवानां पाथः) प्रकाशक किरणों के जल को प्राप्त होते हैं। (२) वीर पुरुष पंक्तिबद्ध होकर चमचमाते वर्दी शास्त्रादि धारते हुए क्रान्तदर्शी सेना नायकों द्वारा आगे उत्तम रीति से ले जाये जाकर विजयेच्छुकों के मार्ग पर चलें। (३) विद्वान् पुरुष (शुक्रा वसानाः) शुक्ल, पुण्य कर्मों को धारण करते हुए या वीर्य को धारण करते हुए, ब्रह्मचारी रहकर हंस पक्षियों के समान स्वच्छ होकर पंक्तिबद्ध होकर आगे २ क्रान्तदर्शी गुरुजनों द्वारा उत्तम मार्ग से लेजाये जाकर हम (देवानाम्) इच्छुकों के दिये (पाथः) जलादि सरकार को प्राप्त हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ६, ९, १० त्रिष्टुप्। २, ३, ४, ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ८ स्वराट् पङ्क्तिः। ११ भुरिक् पङ्क्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे हंसाप्रमाणे एकत्रितपणे प्रयत्नपूर्वक सर्वांची उन्नती करतात व स्वतः उन्नती करून घेऊन विद्वान सत्यवादी लोकांच्या मार्गाने जातात ते पराक्रम वाढवून पूर्ण सुख भोगतात. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Just as hansa birds, pure white in beautiful plume, flying in line formation, singing and rejoicing, traverse the skies, so do the Devas, brilliant scholars and generous yajna performers raised and guided by poetic teachers since ancient times, working, singing and rejoicing together, bless us and go forward by the paths of divines.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The signs of perfect happiness are indicated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
May those learned persons come to us who wear pure and clean garments, preserve their semen and make joint efforts, like swans, flying in rows with melodious voice. Elevated with noble virtues, those learned persons of divine attributes, actions and temperament follow the path of the enlightened men accompanied by geniuses from the beginning.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons only attain abundant happiness who unite like the flying swans, and elnute all with their great efforts. Such people are themselves exalted and they follow the path of the absolutely truthful enlightened persons and observing Brahmacharya ever and preserve their semen in order to earn more strength and vitality.
Translator's Notes
Here the Devas (देवा:) are meant enlightened persons who are guided and uplifted by great geniuses (दिद्वांसो हि देवा:। = Stph). Shri Sayanacharya interprets देवा: as दीप्यमानाः यूपाः, while Prof. Wilson and Griffith translate it as resplendent pillars. Rishi Dayananda Sarasvati`s interpretation is in the case faithful to the test and significant, stressing the need of united effort on the part of the learned persons to uplift the society.
Foot Notes
(कविभिः) मेधाविभि:। = By geniuses (पाथ:) मार्गम्। = Path. (स्वरव.) सुस्वरान् सेवमानाः । = Singing melodiously.
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