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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 2/ मन्त्र 15
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अधा॑ मा॒तुरु॒षसः॑ स॒प्त विप्रा॒ जाये॑महि प्रथ॒मा वे॒धसो॒ नॄन्। दि॒वस्पु॒त्रा अङ्गि॑रसो भवे॒माद्रिं॑ रुजेम ध॒निनं॑ शु॒चन्तः॑ ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । मा॒तुः । उ॒षसः॑ । स॒प्त । विप्राः॑ । जाये॑महि । प्र॒थ॒माः । वे॒धसः॑ । नॄन् । दि॒वः । पु॒त्राः । अङ्गि॑रसः । भ॒वे॒म॒ । अद्रि॑म् । रु॒जे॒म॒ । ध॒निन॑म् । शु॒चन्तः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधा मातुरुषसः सप्त विप्रा जायेमहि प्रथमा वेधसो नॄन्। दिवस्पुत्रा अङ्गिरसो भवेमाद्रिं रुजेम धनिनं शुचन्तः ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध। मातुः। उषसः। सप्त। विप्राः। जायेमहि। प्रथमाः। वेधसः। नॄन्। दिवः। पुत्राः। अङ्गिरसः। भवेम। अद्रिम्। रुजेम। धनिनम्। शुचन्तः॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 15
    अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यथोषसः सप्तविधाः किरणा जायन्ते तथैव मातुर्विद्याया वयं प्रथमा विप्राः सप्त जायेमहि। वेधसो नॄन् प्राप्नुयाम दिवस्पुत्रा अङ्गिरसोऽद्रिमिव शत्रून् रुजेमाऽध धनिनं शुचन्तः प्रशंसिता भवेम ॥१५॥

    पदार्थः

    (अध) आनन्तर्य्ये (मातुः) मातृवद्वर्त्तमानाया विद्यायाः (उषसः) प्रभातवेलाया दिनमिव (सप्त) राजप्रधानाऽमात्यसेनासेनाध्यक्षप्रजाचाराः (विप्राः) धीमन्तः (जायेमहि) (प्रथमाः) प्रख्याता आदिमाः (वेधसः) प्राज्ञान् (नॄन्) नायकान् (दिवः) प्रकाशस्य (पुत्राः) तनयाः (अङ्गिरसः) प्राणा इव (भवेम) (अद्रिम्) मेघमिव शत्रुम् (रुजेम) प्रभग्नान् कुर्य्याम (धनिनम्) बहुधनवन्तं प्रजास्थम् (शुचन्तः) विद्याविनयाभ्यां पवित्राः ॥१५॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये राजानो बुद्धिमतोऽमात्यान् सत्कृत्य रक्षन्ति ते सूर्य इव प्रकाशितकीर्त्तयो भवन्ति सर्वदैव व्यवसायिनो रक्षित्वा दुष्टान् सततं ताडयेयुर्येन सर्वे पवित्राचाराः स्युः ॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब इस अगले मन्त्र में राजा के विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (उषसः) प्रभातवेला के दिन के समान सात प्रकार के किरणें होते हैं, वैसे ही (मातुः) माता के सदृश वर्त्तमान विद्या से हम लोग (प्रथमाः) प्रथम प्रसिद्ध (विप्राः) बुद्धिमान् (सप्त) सात प्रकार के अर्थात् राजा, प्रधान, मन्त्री, सेना, सेना के अध्यक्ष, प्रजा और चारादि (जायेमहि) होवें और (वेधसः) बुद्धिमान् (नॄन्) नायक पुरुषों को प्राप्त हों और (दिवः) प्रकाश के (पुत्राः) विस्तारनेवाले (अङ्गिरसः) जैसे प्राणवायु (अद्रिम्) मेघ को वैसे शत्रु को (रुजेम) छिन्न-भिन्न करें (अध) इसके अनन्तर (धनिनम्) बहुत धनयुक्त प्रजा में विद्यमान को (शुचन्तः) विद्या और विनय से पवित्र करते हुए (भवेम) प्रसिद्ध होवें ॥१५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा लोग बुद्धिमान् मन्त्रियों का सत्कार करके रक्षा करते हैं, वे सूर्य्य के सदृश प्रकाशित यशवाले होते हैं और सभी काल में उद्योगियों की रक्षा और दुष्टों का निरन्तर ताड़न करें, जिससे कि सब शुद्ध आचरणवाले होवें ॥१५॥

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    विषय

    दिवस्पुत्रा अंगिरसः

    पदार्थ

    [१] (अधा) = अब (उषस:) = [उष दाहे] सब दोषों का दहन करनेवाली (मातुः) = वेदमाता से, (विप्राः) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाले, (प्रथमाः) = शक्तियों का विस्तार करनेवाले, (वेधसः) = बुद्धिमान् लोग (सप्त) = सात (नॄन्) = उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले 'कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्' कान आदि को (जायेमहि) = [जनयाम:] उत्पन्न करते हैं। वेद के अध्ययन प्रवृत्त होने से सब कान आदि इन्द्रियाँ विषयासक्ति से बचकर हमें उन्नति की ओर ले चलनेवाली बनती हैं। (२) दिवस्पुत्रा:- हम ज्ञान के पुत्र, ज्ञान के पुतले, ज्ञान के पुञ्ज बनें | अंगिरसः- अंग-प्रत्यंग में रसवाले भवेम हों। शुचन्तः = अपने जीवन को पवित्र करते हुए हम धनिनम्-धन में आसक्तिवाले अद्रिम् अविद्या पर्वत को रुजेम= भग्न करनेवाले हों। अविद्या में फँसा हुआ व्यक्ति धन का ही उपासक बन जाता है। इस धनासक्ति से जीवन अपवित्र बन जाता है। हम इस अविद्या पर्वत का विदारण करके पवित्र बनते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - वेदाध्ययन से हम सातों कान आदि इन्द्रियों को उन्नतिपथ पर चलनेवाला बनाते हैं। ज्ञान के पुञ्ज शक्तिशाली बनते हुए हम धनासक्ति को विनष्ट करते हैं।

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    विषय

    किरणों के तुल्य विद्वानों का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( अध ) और ( उषसः सप्त विप्राः ) जिस प्रकार उषा से सात प्रकार के वा फैलने वाले जगद्व्यापी किरण उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार हम लोग भी ( मातुः ) प्रथम माता से ( अध ) और अनन्तर ( उषसः ) पाप नाशक विद्या की दीप्ति से युक्त अग्नि के तुल्य तेजस्वी ( मातुः उषसः ) ज्ञानवान् आचार्यरूप माता से हम ( सप्त ) सातों प्रकार के ( विप्राः ) विद्वान्, विविध प्रकार से राष्ट्र के पदों को पूर्ण करने करने वाले, ( प्रथमा ) प्रथम, मुख्य ( वेदसः ) ज्ञानवान् ( जायेमहि ) उत्पन्न हों। वे हम ( नॄन् ) नायक पुरुषों को प्राप्त करें। और हम लोग ( दिवः ) ज्ञानवान् सूर्यवत् तेजस्वी के (पुत्राः) किरणों के समान (पुत्राः) बहुतों के रक्षक पुत्र (अंङ्गिरसः) अङ्गारों या अग्नि के समान तेजस्वी ( भवेम ) होवें । और ( धनिनं ) धनैश्वर्य के स्वामी के प्रति (शुचन्तः) सत्य न्याय, कार्य व्यवहारों में सदा पवित्र, शुद्ध, ईमानदार रहते हुए ( अद्रिं ) मेघ या पर्वत के तुल्य अभेद्य शत्रु को भी सूर्य की किरणों या विद्युतों के तुल्य ( रुजेम ) तोड़ डालें । इत्यष्टादशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ अग्निदेवता ॥ छन्दः- १, १९ पंक्तिः । १२ निचृत्पंक्तिः । १४ स्वराट् पंक्तिः । २, ४–७, ९, १३, १५, १७, १८, २० निचृत् त्रिष्टुप् । ३, १६ त्रिष्टुप् । ८, १०, ११ विराट् त्रिष्टुप् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे राजे लोक बुद्धिमान मंत्र्यांचा सत्कार करून रक्षण करतात ते सूर्याप्रमाणे प्रकाशित कीर्ती प्राप्त करणारे असतात. सदैव उद्योगी लोकांचे रक्षण करून दुष्टांचे निरंतर ताडन करावे. ज्यामुळे सर्व शुद्ध आचरण करणारे असावेत. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    And then, like the seven rainbow colours of the lights of mother dawn, let us raise ourselves to seven classes of intelligent and dynamic functionaries: ruler, presidents of councils, army, commanders, people, services and ancillaries. Let us create leaders and visionary pioneers of knowledge and education. Let us all rise to be the children of light, dexterous as divine architects, dear as vital breath of life, and then, cleansing and brightening up the well provided prosperous people who are wealth of the motherland, let us break the clouds for rain and shatter the mountains of difficulty converting them to opportunities.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of a ruler are explained.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    As seven kinds of rays usher out of the dawn, in the same manner, let us be born out of the womb of the mother Vidya (thereby meaning full wisdom) illustrious and wise. That kingdom is divided in seven categories of the King, President, Ministers, Men of the army, Commander-in-chief of the army, the subjects (civilians or people) and spies. Let us always approach wise leaders. Being the sons of light (enlightened) and dear to all like the Pranas (vital breaths), let us cut into pieces the enemies like the clouds, and may we be admired everywhere being pure with knowledge and humility and purifying the rich among the subjects.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those kings who maintain and honor wise minister become illustrious like the sun. It is their duty to protect the industrious and punish the wicked, so that all may become men and women of pure character and conduct.

    Foot Notes

    (मातुः) मातृवह्वर्तमानाया विद्यायाः। = Of the knowledge or wisdom which is like a mother. (सप्त) राजप्रधानामात्यसेनाध्यक्ष प्रजाचाराः । = King, President, Ministers, of army men Commander-in-chief of the army, people and spies. (अङ्गीरस) प्राणा इव । = Like the Pranas. (अद्रिम्) मेधमिव शत्रुम्। अद्रिरीति मेधनामः (NG 1, 10) प्राणो वा अंगिरम् । = The enemy who is like a cloud. (वेधसः) प्राज्ञान् | = Wisemen.

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