Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 21 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 21/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उप॒ यो नमो॒ नम॑सि स्तभा॒यन्निय॑र्ति॒ वाचं॑ ज॒नय॒न्यज॑ध्यै। ऋ॒ञ्ज॒सा॒नः पु॑रु॒वार॑ उ॒क्थैरेन्द्रं॑ कृण्वीत॒ सद॑नेषु॒ होता॑ ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । यः । नमः॑ । नम॑सि । स्त॒भा॒यन् । इय॑र्ति । वाच॑म् । ज॒नय॑न् । यज॑ध्यै । ऋ॒ञ्ज॒सा॒नः । पु॒रु॒ऽवारः॑ । उ॒क्थैः । आ । इन्द्र॑म् । कृ॒ण्वी॒त॒ । सद॑नेषु । होता॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप यो नमो नमसि स्तभायन्नियर्ति वाचं जनयन्यजध्यै। ऋञ्जसानः पुरुवार उक्थैरेन्द्रं कृण्वीत सदनेषु होता ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप। यः। नमः। नमसि। स्तभायन्। इयर्ति। वाचम्। जनयन्। यजध्यै। ऋञ्जसानः। पुरुऽवारः। उक्थैः। आ। इन्द्रम्। कृण्वीत। सदनेषु। होता ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 21; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव राजविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यो यजध्यै वाचं जनयन्नुक्थैर्ऋञ्जसानः पुरुवारो होता सदनेषु नमसि नम उप स्तभायन्निन्द्रमा कृण्वीत स नमः सत्कारमियर्त्ति ॥५॥

    पदार्थः

    (उप) (यः) (नमः) अन्नम् (नमसि) अन्ने सत्कारे वा (स्तभायन्) स्तम्भयन् (इयर्त्ति) प्राप्नोति (वाचम्) सुशिक्षितां वाणीम् (जनयन्) प्रकटयन् (यजध्यै) यष्टुं सङ्गन्तुम् (ऋञ्जसानः) प्रसाध्नुवन् (पुरुवारः) बहुभिः स्वीकृतः (उक्थैः) प्रशंसितैः कर्म्मभिः (आ) (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यम् (कृण्वीत) कुर्य्यात् (सदनेषु) न्यायस्थानेषु (होता) न्यायस्य दाता ॥५॥

    भावार्थः

    यो राजा विद्यासुशिक्षायुक्तां नीतिं प्रकटयन् सत्काराऽर्हान् सत्कुर्वन् दुष्टान् दण्डयन् प्रयतमानः राज्यपालनेनैश्वर्योन्नतिं करोति स एव सर्वत्र सत्कृतो जायते ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यः) जो (यजध्यै) मेल करने को (वाचम्) उत्तम शिक्षायुक्त वाणी (जनयन्) प्रकट करता हुआ (उक्थैः) प्रशंसित कर्म्मों से (ऋञ्जसानः) अत्यन्त सिद्ध करता हुआ (पुरुवारः) बहुतों से स्वीकार किया गया (होता) न्याय को देनेवाला (सदनेषु) न्याय के स्थानों में (नमसि) अन्न वा सत्कार के निमित्त (नमः) अन्न को (उप, स्तभायन्) स्तम्भित अर्थात् रोकता हुआ (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य्य को (आ, कृण्वीत) सिद्ध करे, वह अन्न और सत्कार को (इयर्त्ति) प्राप्त होता है ॥५॥

    भावार्थ

    जो राजा विद्या और उत्तम शिक्षा से युक्त नीति को प्रकट करता, सत्कार करने के योग्यों का सत्कार करता, दुष्टों को दण्ड देता और प्रयत्न करता हुआ राज्य के पालन से ऐश्वर्य्य की उन्नति करता है, वही सर्वत्र सत्कृत होता है ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उपासना के लाभ

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो प्रभु (नमसि) = हमारे नमन करने पर-नम्रतापूर्वक उपासना करने पर (नमः) = हमारी नम्रता की भावना को (उप स्तभावन्) = थामते हैं, अर्थात् हम प्रभु का उपासन करते हैं,तो प्रभु हमें नम्र बनाए रखते हैं। जो प्रभु (यजध्यै) = यज्ञ करने के लिए (इयर्ति) = हमें प्रेरित करते हैं, (वाचं जनयन्) = वेदवाणी को हमारे में प्रादुर्भूत करते हैं । वस्तुतः वेदवाणी द्वारा ही प्रभु हमें यज्ञों की प्रेरणा देते हैं। [२] वे प्रभु (ऋञ्जसान:) = हमारे जीवनों को सद्गुणों से अलंकृत करते हैं [ऋञ्ज् to decorate] । (उक्थैः) = स्तोत्रों द्वारा (पुरुवारः) = अत्यन्त वरण के योग्य हैं। इस प्रभु को (होता) = त्यागपूर्वक अदन करनेवाला व्यक्ति (सदनेषु) = यज्ञगृहों में (आकृण्वीत) = उपासित करे। इस प्रभु की उपासना ने ही तो हमारे जीवन को सुभूषित करना है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु की उपासना करें। प्रभु हमें नम्र बनाएँगे, वेदवाणी द्वारा यज्ञों की प्रेरणा देंगे और हमारे जीवनों को सद्गुणों से मण्डित करेंगे।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    शत्रु विजयी ऐश्वर्य का स्वामी बने ।

    भावार्थ

    (यः) जो राजा (नमसि) अन्यों के आदर सत्कार, शत्रु नमाने का साधन बल और शस्त्रादि के आश्रय पर जो (नमः) स्वयं के अन्यों के आदर सत्कार, शत्रु नमाने वाले शत्रु नमाने वाले बल आदि को (स्तभयन्) अपने वश करता हुआ (यजध्यै) दान देने, मैत्री करने और मेल सत्संग करने के लिये (वाचं जनयन्) उत्तम वाणी को प्रकट करता हुआ (इयर्त्ति) अन्यों को प्रेरित करता है । वह (ऋञ्जसानः) अच्छी प्रकार सबको वश करता हुआ, (पुरुवारः) बहुतों से वरण करने योग्य और बहुत से शत्रुओं का वारण करने वाला, (होता) सब ऐश्वर्यों का दाता है उसको (सदनेषु) उत्तम पदों पर (इन्द्रं) ऐश्वर्य युक्त अध्यक्ष स्वामी (आ कृण्वीत) बनाओ । अथवा (सः उक्थैः इन्द्रं आ कृण्वीत) वह उत्तम उपायों से ऐश्वर्य उत्पन्न करे । इति पञ्चमो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:- १, २, ७, १० भुरिक् पंक्तिः । ३ स्वराड् पंक्तिः । ११ निचृत् पंक्तिः । ४, ५ निचृत्त्रिष्टुप । ६, ८ विराट् त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो राजा विद्या व उत्तम शिक्षणाने युक्त नीतीचा अवलंब करतो. सत्कार करण्यायोग्याचा सत्कार करतो, दुष्टांना दंड देतो व प्रयत्न करत राज्याचे पालन करून ऐश्वर्याची वाढ करतो तोच सर्वत्र सत्कार करण्यायोग्य असतो. ॥ ५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    He who moves forward, who creates and holds food stocks for the sake of consumption in emergency and establishes courtesy and mutual respect as a value of social culture, who creates and uses the language of cooperation and social cohesion for the unity and cooperation of the common wealth of order, who is accepted and celebrated by many many people with words of reverence, and who, by all these ways, creates honour and prestige for the nation of humanity, calls for the shots in world assemblies and rises higher as ruler, as Indra above all.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of a king are highlighted.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! that king receives honor, who speaks balanced and refined speech to unite all, who accomplishes all objects with admirable acts, and is accepted by many. He administers justice in the courts and serves food to show respects to the wise and creates prosperity.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    That king (ruler) is honored by every who initiates policy, endowed with knowledge and good education. He respects those who are worthy of it and punishes the wicked, because he is always keen to make the State advanced by protecting the people.

    Foot Notes

    (नमः) अन्नम् । नम इत्यन्ननाम (NG 2, 7 ) । = Food. (यजध्ये ) यष्टु सङ्गन्तुम् । = To unite. (ऋ जसानः ) प्रसाध्नुवन् । ऋजतिः प्रसाधनकर्मा (NKT 6, 4, 2) । = Accomplishing. (होता) न्यायस्य दाता । = Giver of justice.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top