ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 36/ मन्त्र 9
इ॒ह प्र॒जामि॒ह र॒यिं ररा॑णा इ॒ह श्रवो॑ वी॒रव॑त्तक्षता नः। येन॑ व॒यं चि॒तये॒मात्य॒न्यान्तं वाजं॑ चि॒त्रमृ॑भवो ददा नः ॥९॥
स्वर सहित पद पाठइ॒ह । प्र॒ऽजाम् । इ॒ह । र॒यिम् । ररा॑णाः । इ॒ह । श्रवः॑ । वी॒रऽव॑त् । त॒क्ष॒त॒ । नः॒ । येन॑ । व॒यम् । चि॒तये॑म । अति॑ । अ॒न्यान् । तम् । वाज॑म् । चि॒त्रम् । ऋ॒भ॒वः॒ । द॒द॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इह प्रजामिह रयिं रराणा इह श्रवो वीरवत्तक्षता नः। येन वयं चितयेमात्यन्यान्तं वाजं चित्रमृभवो ददा नः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठइह। प्रऽजाम्। इह। रयिम्। रराणाः। इह। श्रवः। वीरऽवत्। तक्षत। नः। येन। वयम्। चितयेम। अति। अन्यान्। तम्। वाजम्। चित्रम्। ऋभवः। दद। नः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 36; मन्त्र » 9
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे ऋभवो ! भवन्त इह नः प्रजामिह रयिमिह वीरवच्छ्रवो रराणाः सन्तस्तक्षत येन वयमन्यानति चितयेम तं चित्रं वाजं नो ददा ॥९॥
पदार्थः
(इह) अस्मिन् संसारे (प्रजाम्) उत्तमान् सन्तानान् राष्ट्रं वा (इह) (रयिम्) धनम् (रराणाः) ददमानाः (इह) (श्रवः) अन्नं श्रवणं वा (वीरवत्) प्रशस्तवीरकारम् (तक्षत) प्रापयत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्मभ्यम् (येन) (वयम्) (चितयेम) चितिं संज्ञानमाचक्ष्महि (अति) (अन्यान्) (तम्) (वाजम्) विज्ञानम् (चित्रम्) अद्भुतम् (ऋभवः) (ददा) ददतु। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) ॥९॥
भावार्थः
यदा मनुष्या विदुषः सङ्गच्छन्ते तदा विज्ञानं सत्यश्रवणं धनमुत्तमां प्रजां शूरवीरयुक्तसेनां च याचन्तां तेभ्यो यथार्थां विद्यां प्राप्याऽन्यान् सततं बोधयेयुरिति ॥९॥ अत्र विपश्चिद्गुणकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥९॥ इति षट्त्रिंशत्तमं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (ऋभवः) बुद्धिमानो ! आप लोग (इह) इस संसार में (नः) हम लोगों के लिये (प्रजाम्) उत्तम सन्तान वा राज्य को (इह) इस संसार में (रयिम्) धन को और (इह) इस संसार में (वीरवत्) प्रशंसा करने योग्य वीरों के करनेवाले (श्रवः) अन्न वा श्रवण को (रराणाः) देते हुए (तक्षत) प्राप्त कराओ (येन) जिससे (वयम्) हम लोग (अन्यान्) औरों के प्रति (अति, चितयेम) उत्तम रीति से विज्ञान को कहें (तम्) उस (चित्रम्) अद्भुत (वाजम्) विज्ञान को (नः) हम लोगों के लिये (ददा) दीजिये ॥९॥
भावार्थ
जब मनुष्य विद्वानों को प्राप्त होवें तब विज्ञान, सत्यश्रवण, धन, उत्तम प्रजा और शूरवीरयुक्त सेना की याचना करें, उनसे यथार्थ विद्या को प्राप्त होकर अन्यों को निरन्तर बोध करावें ॥९॥ इस सूक्त में विपश्चित् के गुण कृत्य वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥९॥ यह छत्तीसवाँ सूक्त और आठवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
प्रजा-रयि-वीरवत् श्रव
पदार्थ
[१] हे (ऋभव:) = ज्ञानदीप्त आचार्यो! आप (इह) = इस जीवन में (प्रजाम्) = प्रकृष्ट विकास को तथा (इह) = इस जीवन में (रयिम्) = ज्ञानैश्वर्य को (रराणाः) = देते हुए, (नः) = हमारे लिए (इह) = यहाँ (वीरवत्) = वीरता से युक्त (श्रवः) = [glory ] यश को (तक्षता) = सम्पादित करिए। विकसित शक्तियोंवाला शरीर, ज्ञानैश्वर्य सम्पन्न मस्तिष्क, तथा यशस्वी मन हमें प्राप्त हो । [२] आप (नः) = हमारे लिए (तम्) = उस (चित्रम्) = [चित्र] ज्ञानैश्वर्यवाले (वाजम्) = बल को (ददा) = दीजिए, (येन) = जिससे (वयम्) = हम (अन्यान् अति) = औरों से आगे बढ़े हुए (चितयेम) = जाने जाएँ। 'शक्ति+ज्ञान' हमारे जीवन को बड़ा सुन्दर बना दें।
भावार्थ
भावार्थ– शक्तिसम्पन्न ज्ञान प्राप्त करके हमारा जीवन अत्यन्त सुन्दर बन जाए। अगला सूक्त भी ऋभुओं का वर्णन करता है
विषय
ज्ञानपूर्वक कर्म करने का उपदेश ।
भावार्थ
(ऋभवः) सत्य, न्याय और तेज विद्यादि से प्रकाशित होने वाले विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (इह) इस राष्ट्र में (प्रजाम्) उत्तम प्रजा को (रराणाः) प्रदान करते हुए (इह रयिं रराणाः) इस लोक में उत्तम ऐश्वर्य देते हुए और (इह श्रवः रराणा) इस लोक में उत्तम अन्न और ज्ञान का पान करते हुए (नः तक्षत) हमें व्यवस्थित और उत्तम बनाओ। और (येन) जिससे (वयम्) हम लोग (अन्यान् अति) और सबको अतिक्रमण करके (चितयेम) ज्ञानवान् होवें । और (तं चित्रं वाजं) उस अद्भुत वा पूज्य ज्ञान और ऐश्वर्य को (नः दद) हमें प्रदान करो । इत्यष्टमो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः- १, ६, ८ स्वराट् त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ५ विराट् जगती । ७ जगती ॥ नवर्चं सूक्तम् ।
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा माणसे विद्वानांचा संग करतात तेव्हा विज्ञान सत्यश्रवण, धन, उत्तम प्रजा व शूरवीर सेनेची याचना करावी. त्यांच्यापासून यथार्थ विद्या प्राप्त करून इतरांना सतत बोध करवावा. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Happy, joyous and generous, O Rbhus, create and prepare for us here a noble progeny and a prosperous nation, create wealth here, food, knowledge and honour worthy of the brave here itself by which we may enlighten others too full well. O scholars of science and wisdom, give us that wonderful art and knowledge and all round progress.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of technology further moves.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O wisemen ! grant us in this world good progeny or State, good food and reputation that make us heroes, so that we may greatly excel others and also enlighten them. Please grant excellent knowledge for this purpose.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
When men come in association with the enlightened persons, they should request them to impart true knowledge, good reputation, wealth, good progeny and good army of brave persons. They should enlighten others after having received true knowledge from them.
Foot Notes
(चितयेम) चिति संज्ञानमाचक्ष्महि | Enlighten. (श्रवः) अन्नं श्रवणं ख्यातिः वा । श्रव इति अन्ननाम श्रूयतं इति सत: यशो वा श्रूयते इत्यस्मादेव (NKT 10, 1, 5 ) = Food or fame.(चितयेम) चिति संज्ञानमाचक्ष्महि | Enlighten. (श्रवः) अन्नं श्रवणं ख्यातिः वा । श्रव इति अन्ननाम श्रूयतं इति सत: यशो वा श्रूयते इत्यस्मादेव (NKT 10, 1, 5 ) = Food or fame.
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