Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 50 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 50/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स सु॒ष्टुभा॒ स ऋक्व॑ता ग॒णेन॑ व॒लं रु॑रोज फलि॒गं रवे॑ण। बृह॒स्पति॑रु॒स्रिया॑ हव्य॒सूदः॒ कनि॑क्रद॒द्वाव॑शती॒रुदा॑जत् ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । सु॒ऽस्तुभा । सः । ऋक्व॑ता । ग॒णेन॑ । व॒लम् । रु॒रो॒ज॒ । फ॒लि॒ऽगम् । रवे॑ण । बृह॒स्पतिः॑ । उ॒स्रियाः॑ । ह॒व्य॒ऽसूदः॑ । कनि॑क्रदत् । वाव॑शतीः । उत् । आ॒ज॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स सुष्टुभा स ऋक्वता गणेन वलं रुरोज फलिगं रवेण। बृहस्पतिरुस्रिया हव्यसूदः कनिक्रदद्वावशतीरुदाजत् ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। सुऽस्तुभा। सः। ऋक्वता। गणेन। वलम्। रुरोज। फलिऽगम्। रवेण। बृहस्पतिः। उस्रियाः। हव्यऽसूदः। कनिक्रदत्। वावशतीः। उत्। आजत् ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 50; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! यथा स हव्यसूदः कनिक्रदद् बृहस्पतिः सूर्य्यः सुष्टुभा गणेन फलिगं रुरोज स ऋक्वता गणेन रवेण वलं रुरोजोस्रिया वावशतीरुदाजत् तथा त्वं वर्त्तस्व ॥५॥

    पदार्थः

    (सः) विद्वान् (सुष्टुभा) शोभनेन प्रशंसितेन (सः) (ऋक्वता) बहुप्रशंसायुक्तेन (गणेन) किरणसमूहेनोपदेश्यविद्यार्थिसमुदायेन (वलम्) वक्रगतिम् (रुरोज) रुजेत् (फलिगम्) मेघम्। फलिग इति मेघनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (रवेण) शब्देन (बृहस्पतिः) महान् सर्वेषां पालकः (उस्रियाः) पृथिव्यां वर्त्तमानाः (हव्यसूदः) यो हव्यानि सूदयति क्षरयति सः (कनिक्रदत्) भृशं शब्दयन् (वावशतीः) भृशं कामयमानाः प्रजाः (उत्) (आजत्) प्राप्नोति ॥५॥

    भावार्थः

    यथा सविता वृष्टिद्वारा सर्वाः प्रजा रक्षति विद्युच्छब्देन सर्वान् प्रज्ञापयति तथैव सर्वे विद्वांसो विद्याद्वारा सर्वात्मनः प्रकाशयेयुः ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (2)

    विषय

    अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! जैसे (सः) वह (हव्यसूदः) हवन करने योग्य पदार्थों को क्षरण कराने अर्थात् अपने प्रताप से अणुरूप करानेवाला (कनिक्रदत्) अत्यन्त शब्द करता हुआ (बृहस्पतिः) बड़ा और सब का पालन करनेवाला सूर्य्य (सुष्टुभा) सुन्दर प्रशंसित (गणेन) किरणसमूह से (फलिगम्) मेघ को (रुरोज) भङ्ग करे और (सः) वह विद्वान् (ऋक्वता) बहुत प्रशंसायुक्त उपदेश देने योग्य विद्यार्थियों के समूह से (रवेण) शब्द से (वलम्) कुटिल चाल को भङ्ग करे और (उस्रियाः) पृथिवी के बीच वर्त्तमान (वावशतीः) अत्यन्त कामना करती हुई प्रजाओं को (उत्, आजत्) प्राप्त होता है, वैसे आप वर्त्ताव करो ॥५॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य्य वृष्टि के द्वारा सब प्रजाओं की रक्षा करता और बिजुली के शब्द से सब को जनाता है, वैसे ही सब विद्वान् जन विद्या के द्वारा सब के द्वारा सब के आत्माओं को प्रकाशित करें ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वलासुर का विनाश

    पदार्थ

    [१] (सः) = वह (बृहस्पतिः) = ज्ञान के स्वामी प्रभु (सुष्टुभा) = उत्तम स्तुतियोंवाले (गणेन) = मन्त्रसमूह से तथा (सः) = वे प्रभु (ऋक्वता) = ऋचाओंवाले विज्ञानवाले (गणेन) = मन्त्रसमूह से (वलं रुरोज) = ज्ञान के आवरणभूत [veil] इस वल नामक असुर को (रुरोज) = विनष्ट करते हैं। (रवेण) = हृदयस्थरूपेण इन ज्ञानवाणियों के उच्चारण से (फलिगम्) = विशीर्णता की ओर ले जाने [फल विशरणे] वाली आसुरवृत्ति को विनष्ट करते हैं। ज्ञान द्वारा प्रभु हमारे में उत्तम वृत्तियों को उत्पन्न करके हमारा कल्याण करते हैं । [२] (बृहस्पतिः) = वे ज्ञान के स्वामी प्रभु (हव्यसूदः) = सब हव्यपदार्थों को पवित्र यज्ञिय पदार्थों को प्राप्त करानेवाली (वावशती:) = हमारा अत्यन्त हित चाहती हुई (उस्त्रिया:) = ज्ञान रश्मियों को उदाजत् हमारे में उत्कर्षेण प्रेरित करते हैं। इन ज्ञानरश्मियों को प्राप्त करके ही हम इस संसार में अयज्ञिय बातों से दूर रहकर अपना हित सिद्ध कर पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु ज्ञानवाणियों द्वारा ज्ञान की आवरणभूत वासना को विनष्ट करते हैं। सब विशीर्ण करनेवाली आसुरवृत्तियों को विनष्ट करते हैं। हव्य-पदार्थों की ओर हमारा झुकाव होता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा सूर्य वृष्टीद्वारे सर्व प्रजेचे रक्षण करतो व विद्युत गर्जनेने सर्वांना जाणीव करून देतो. तसेच सर्व विद्वानांनी विद्येने सर्वांच्या आत्म्यांना प्रकाशित करावे. ॥ ५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    With a mighty jubilant roar of thunder and terrible shower of electric energy, Brhaspati breaks the crooked cloud, releases the showers, activates the production of food for holy offerings and wins the gratitude of the green earth, fertile cows and rejoicing humanity.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top