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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 50 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 50/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स सु॒ष्टुभा॒ स ऋक्व॑ता ग॒णेन॑ व॒लं रु॑रोज फलि॒गं रवे॑ण। बृह॒स्पति॑रु॒स्रिया॑ हव्य॒सूदः॒ कनि॑क्रद॒द्वाव॑शती॒रुदा॑जत् ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । सु॒ऽस्तुभा । सः । ऋक्व॑ता । ग॒णेन॑ । व॒लम् । रु॒रो॒ज॒ । फ॒लि॒ऽगम् । रवे॑ण । बृह॒स्पतिः॑ । उ॒स्रियाः॑ । ह॒व्य॒ऽसूदः॑ । कनि॑क्रदत् । वाव॑शतीः । उत् । आ॒ज॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स सुष्टुभा स ऋक्वता गणेन वलं रुरोज फलिगं रवेण। बृहस्पतिरुस्रिया हव्यसूदः कनिक्रदद्वावशतीरुदाजत् ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। सुऽस्तुभा। सः। ऋक्वता। गणेन। वलम्। रुरोज। फलिऽगम्। रवेण। बृहस्पतिः। उस्रियाः। हव्यऽसूदः। कनिक्रदत्। वावशतीः। उत्। आजत् ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 50; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! यथा स हव्यसूदः कनिक्रदद् बृहस्पतिः सूर्य्यः सुष्टुभा गणेन फलिगं रुरोज स ऋक्वता गणेन रवेण वलं रुरोजोस्रिया वावशतीरुदाजत् तथा त्वं वर्त्तस्व ॥५॥

    पदार्थः

    (सः) विद्वान् (सुष्टुभा) शोभनेन प्रशंसितेन (सः) (ऋक्वता) बहुप्रशंसायुक्तेन (गणेन) किरणसमूहेनोपदेश्यविद्यार्थिसमुदायेन (वलम्) वक्रगतिम् (रुरोज) रुजेत् (फलिगम्) मेघम्। फलिग इति मेघनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (रवेण) शब्देन (बृहस्पतिः) महान् सर्वेषां पालकः (उस्रियाः) पृथिव्यां वर्त्तमानाः (हव्यसूदः) यो हव्यानि सूदयति क्षरयति सः (कनिक्रदत्) भृशं शब्दयन् (वावशतीः) भृशं कामयमानाः प्रजाः (उत्) (आजत्) प्राप्नोति ॥५॥

    भावार्थः

    यथा सविता वृष्टिद्वारा सर्वाः प्रजा रक्षति विद्युच्छब्देन सर्वान् प्रज्ञापयति तथैव सर्वे विद्वांसो विद्याद्वारा सर्वात्मनः प्रकाशयेयुः ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! जैसे (सः) वह (हव्यसूदः) हवन करने योग्य पदार्थों को क्षरण कराने अर्थात् अपने प्रताप से अणुरूप करानेवाला (कनिक्रदत्) अत्यन्त शब्द करता हुआ (बृहस्पतिः) बड़ा और सब का पालन करनेवाला सूर्य्य (सुष्टुभा) सुन्दर प्रशंसित (गणेन) किरणसमूह से (फलिगम्) मेघ को (रुरोज) भङ्ग करे और (सः) वह विद्वान् (ऋक्वता) बहुत प्रशंसायुक्त उपदेश देने योग्य विद्यार्थियों के समूह से (रवेण) शब्द से (वलम्) कुटिल चाल को भङ्ग करे और (उस्रियाः) पृथिवी के बीच वर्त्तमान (वावशतीः) अत्यन्त कामना करती हुई प्रजाओं को (उत्, आजत्) प्राप्त होता है, वैसे आप वर्त्ताव करो ॥५॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य्य वृष्टि के द्वारा सब प्रजाओं की रक्षा करता और बिजुली के शब्द से सब को जनाता है, वैसे ही सब विद्वान् जन विद्या के द्वारा सब के द्वारा सब के आत्माओं को प्रकाशित करें ॥५॥

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    विषय

    वलासुर का विनाश

    पदार्थ

    [१] (सः) = वह (बृहस्पतिः) = ज्ञान के स्वामी प्रभु (सुष्टुभा) = उत्तम स्तुतियोंवाले (गणेन) = मन्त्रसमूह से तथा (सः) = वे प्रभु (ऋक्वता) = ऋचाओंवाले विज्ञानवाले (गणेन) = मन्त्रसमूह से (वलं रुरोज) = ज्ञान के आवरणभूत [veil] इस वल नामक असुर को (रुरोज) = विनष्ट करते हैं। (रवेण) = हृदयस्थरूपेण इन ज्ञानवाणियों के उच्चारण से (फलिगम्) = विशीर्णता की ओर ले जाने [फल विशरणे] वाली आसुरवृत्ति को विनष्ट करते हैं। ज्ञान द्वारा प्रभु हमारे में उत्तम वृत्तियों को उत्पन्न करके हमारा कल्याण करते हैं । [२] (बृहस्पतिः) = वे ज्ञान के स्वामी प्रभु (हव्यसूदः) = सब हव्यपदार्थों को पवित्र यज्ञिय पदार्थों को प्राप्त करानेवाली (वावशती:) = हमारा अत्यन्त हित चाहती हुई (उस्त्रिया:) = ज्ञान रश्मियों को उदाजत् हमारे में उत्कर्षेण प्रेरित करते हैं। इन ज्ञानरश्मियों को प्राप्त करके ही हम इस संसार में अयज्ञिय बातों से दूर रहकर अपना हित सिद्ध कर पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु ज्ञानवाणियों द्वारा ज्ञान की आवरणभूत वासना को विनष्ट करते हैं। सब विशीर्ण करनेवाली आसुरवृत्तियों को विनष्ट करते हैं। हव्य-पदार्थों की ओर हमारा झुकाव होता है।

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    विषय

    राष्ट्रपालक राजा और वेदज्ञ विद्वान् का पृथक् २ कर्त्तव्यों का श्लिष्ट वर्णन ।

    भावार्थ

    राष्ट्रपालक राजा और वेदज्ञ विद्वान् का पृथक् २ कर्त्तव्य एक ही मन्त्र से बतलाते हैं। (सः वृहस्पतिः) वह बड़े भारी राष्ट्र का पालक (सु-स्तुभा) उत्तम रीति से शत्रुहिंसा करने में समर्थ, (ऋक्वता) वाणी के पालक (गणेन) सैन्य दल से और (सु-स्तुभा) उत्तम रीति से कंपाने वाले, (ऋक्वता) उत्तम वाणी से युक्त (रवेण) आज्ञा (फलिगं बलं रुरोज) फल वाले, शस्त्रों सहित आक्रमण करने वाले बलशाली, नगररोधी शत्रु का भंग करे। और (हव्य-सूदः) अन्न रत्न आदि उपादेय ऐश्वर्य को प्रचुर मात्रा में देने वाली (उस्त्रियाः) नाना भोग देने वाली, (वावशतीः) निरन्तर कामनाशील, प्रजाओं और सेनाओं को (कनिक्रदत्) खूब गर्जता हुआ, घोषणा करता हुआ (उत् आजत्) उत्तम रीति से गौ आदि पशु संघ के समान अधीन कर उत्तम मार्ग से चलावे। विद्वान् वेदज्ञ क्या करे ? वह भी (सु-स्तुभा ऋक्वता गणेन) उत्तम स्तुतियुक्त ऋचाओं वाले मन्त्र के समूह से और (रवेण) उनके घोष से (फलिगं वलं) भेदबुद्धि से व्यापने वाले आवरक मोह कामादि अज्ञान को तोड़ डाले । और (हव्य-सूदः वावशती: उस्त्रियाः कनिक्रदद् उदाजत्) ज्ञान रस के देने वाली सुन्दर वाणियों का अध्ययन करता हुआ उनका उत्तम रीति से ज्ञान प्राप्त करे और अन्यों को ज्ञान प्रदान करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ १-९ बृहस्पतिः। १०, ११ इन्द्राबृहस्पती देवते॥ छन्द:-१—३, ६, ७, ९ निचृत्त्रिष्टुप् । ५, ४, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ८, १० त्रिष्टुप ॥ धैवतः स्वरः ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा सूर्य वृष्टीद्वारे सर्व प्रजेचे रक्षण करतो व विद्युत गर्जनेने सर्वांना जाणीव करून देतो. तसेच सर्व विद्वानांनी विद्येने सर्वांच्या आत्म्यांना प्रकाशित करावे. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    With a mighty jubilant roar of thunder and terrible shower of electric energy, Brhaspati breaks the crooked cloud, releases the showers, activates the production of food for holy offerings and wins the gratitude of the green earth, fertile cows and rejoicing humanity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of a learned man are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! as the sun makes all oblations put in the fire subtle and creating sound with its admirable rays dissolves the crooked clouds and pleases the people on earth desiring rains, likewise, you should also dispel ignorance by teaching the groups of good students and preaching to the audience.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the sun protects or sustains all subjects by raining down the water and tries the sound of lightning, illumines (warns) all, in the same manner, all enlightened persons should illuminate the souls of all.

    Foot Notes

    (फलिगम् ) मेघम् । फलिग इति मेघनाम (NG 1, 10) = Cloud. (वलम् ) वक्रगतिम् । वल इति मेघनाम (NG 1, 10) = Crooked cloud or movement. (वावशती:) भृशं कामयमानाः प्रजाः । (वावशत्री:) वश कान्तो । (अया) कान्तिः -वामना । = People much desiring rain.

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