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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 50 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 50/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ए॒वा पि॒त्रे वि॒श्वदे॑वाय॒ वृष्णे॑ य॒ज्ञैर्वि॑धेम॒ नम॑सा ह॒विर्भिः॑। बृह॑स्पते सुप्र॒जा वी॒रव॑न्तो व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । पि॒त्रे । वि॒श्वऽदे॑वाय । वृष्णे॑ । य॒ज्ञैः । वि॒धे॒म॒ । नम॑सा । ह॒विःऽभिः॑ । बृह॑स्पते । सु॒ऽप्र॒जाः । वी॒रऽव॑न्तः । व॒यम् । स्या॒म॒ । पत॑यः । र॒यी॒णाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा पित्रे विश्वदेवाय वृष्णे यज्ञैर्विधेम नमसा हविर्भिः। बृहस्पते सुप्रजा वीरवन्तो वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव। पित्रे। विश्वऽदेवाय। वृष्णे। यज्ञैः। विधेम। नमसा। हविऽभिः। बृहस्पते। सुऽप्रजाः। वीरऽवन्तः। वयम्। स्याम। पतयः। रयीणाम् ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 50; मन्त्र » 6
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे बृहस्पते ! यथा वयं यज्ञैर्विश्वदेवाय वृष्णे पित्रे नमसा हविर्भिर्विधेम सुप्रजा वीरवन्तो वयं रयीणां पतयस्स्याम तथैवा त्वं भव ॥६॥

    पदार्थः

    (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (पित्रे) पालकाय (विश्वदेवाय) विश्वस्य प्रकाशकाय (वृष्णे) वृष्टिकराय (यज्ञैः) सङ्गतैः कर्मभिः (विधेम) कुर्य्याम (नमसा) सत्कारेणान्नादिना वा (हविर्भिः) आदातुं योग्यैरुपदेशैर्द्रव्यैर्वा (बृहस्पते) बृहतां पालक (सुप्रजाः) विद्याविनययुक्ताः श्रेष्ठाः प्रजा येषान्ते (वीरवन्तः) वीरपुत्राः (वयम्) (स्याम) (पतयः) स्वामिनः (रयीणाम्) धनानाम् ॥६॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा सूर्य्यो मेघालङ्कारेण सर्वेषां पालको वर्त्तते तथैव वयं वर्त्तित्वाऽत्युत्तमपुरुषा राज्याऽधिपतयो भवेम ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (बृहस्पते) बड़ों के पालन करनेवाले जैसे हम लोग (यज्ञैः) मिले हुए कर्मों से (विश्वदेवाय) संसार के प्रकाशक (वृष्णे) वृष्टि करने और (पित्रे) पालन करनेवाले के लिये (नमसा) सत्कार वा अन्न आदि से (हविर्भिः) ग्रहण करने योग्य उपदेश वा द्रव्यों से (विधेम) करें और अर्थात् क्रिया विधान करें तथा (सुप्रजाः) विद्या और विनयवाली श्रेष्ठ प्रजाओं से युक्त (वीरवन्तः) वीर पुत्रोंवाले (वयम्) हम लोग (रयीणाम्) धनों के (पतयः) स्वामी (स्याम) होवें (एवा) वैसे ही आप हूजिये ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य मेघ के अलङ्कार से सब का पालन करनेवाला है, वैसे ही हम लोग वर्त्ताव करके अति उत्तम पुरुष और राज्य के स्वामी होवें ॥६॥

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    विषय

    यज्ञैः नमसा हविभिः

    पदार्थ

    [१] गतमन्त्र के अनुसार वलासुर को विनष्ट करके हम (एवा) = सचमुच उस (पित्रे) = पालक (विश्वदेवाय) = सब दिव्यगुणों के पुञ्ज (वृष्णे) = शक्तिशाली व सुखवर्षक प्रभु के लिए (यज्ञैः) = श्रेष्ठतम कर्मों से, (नमसा) = उन कर्मों के अहंकार को छोड़कर नम्रभाव से (हविभिः) = सदा दानपूर्वक अदन से (विधेम) = पूजा को करें। [२] हे (बृहस्पते) = ज्ञान के स्वामिन् प्रभो! इस प्रकार आपका यज्ञों, नमन व हवियों से पूजन करते हुए (वयम्) = हम (सुप्रजा:) = उत्तम प्रजाओंवाले (वीरवन्तः) = वीरत्व की भावनावाले तथा (रयीणां पतयः) = धनों के स्वामी [न कि दास] स्याम हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ– यज्ञों, नम्रता व हवियों से प्रभुपूजन करते हुए हम 'उत्तम सन्तान, वीरता व धन का स्वामित्व' प्राप्त करें। यज्ञों से उत्तम प्रजा को प्रभु के प्रति नमन से वीरता को तथा हवियों से धन के स्वामित्व को प्राप्त करनेवाले हों ।

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    विषय

    पितृ तुल्य राजा और गुरु की शुश्रूषा का उपदेश ।

    भावार्थ

    हम लोग (एव) इस प्रकार (पित्रे) सर्वपालक (विश्व-देवाय) समस्त विश्व के प्रकाशक, सब को जीवन, अन्न, ऐश्वर्य देने वाले, सबके उपास्य देव (वृष्णे) सब सुखों के वर्षक, सर्व-प्रबन्धक, सबसे महान् पुरुष परमेश्वर की (यज्ञैः) यज्ञों, सत्संगों से और (नमसा) नमस्कार पूर्वक और (हविर्भिः) उत्तम अन्नों और वचनों से (विधेम) भक्ति करें । इस प्रकार सर्व पालक, सब से अधिक विद्वान् पितृतुल्य, आचार्य ज्ञानवर्षक की और सब के दाता, पालक पितृतुल्य राजा की हम सत्संगों, नमस्कारों और भेटों आदि से सेवा करें। हे (वृहस्पते) बड़े राष्ट्र और ज्ञान के पालक (वयं) हम (सु-प्रजाः) उत्तम प्रजा से युक्त (वीरवन्तः) उत्तम वीरों वा पुत्रों से युक्त और (रयीणां पतयः) ऐश्वर्यों के स्वामी (स्याम) होवें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ १-९ बृहस्पतिः। १०, ११ इन्द्राबृहस्पती देवते॥ छन्द:-१—३, ६, ७, ९ निचृत्त्रिष्टुप् । ५, ४, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ८, १० त्रिष्टुप ॥ धैवतः स्वरः ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो, जसा सूर्य मेघांद्वारे सर्वांचे पालन करणारा आहे, तसेच वर्तन आम्ही करावे व अति उत्तम पुरुषाला राज्याचा स्वामी बनवावे. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Thus do we, O lord Brhaspati, offer homage to the father, divine giver of light and rain showers, with food, and salutations, yajnas and oblations of fragrant havis, and we pray that we may be blest with noble and brave progeny, and we may be masters of the wealths of life.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of duties of a learned person is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O protector of the great sun-like O king ! as father (protector) you are illuminator of the world, showerer of bliss and peace, we perform our non-violent sacrifices in the form of joint actions and salutation, and acceptable sermons or oblations. Full of energy and rich in heroic offspring, endowed with knowledge and humility, may we become masters of the felicities. Likewise you should also do.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! as the sun is the protector of all by raining down water through the clouds, same way let us be very good rulers of the State.

    Translator's Notes

    (यज्ञै) यज-देवपूजा सङ्गतिकरणदानेषु । अत्र सङ्गतिकरणमर्थमादाय सङ्मति कर्मभिरिति व्याख्या । (हविर्भिः ) हु-दानादनयोः आदाने व अत्र- द्यादानार्थग्रहणम् (विश्वदेवाय) दिवु धातोदयुत्यर्थग्रहणमत्र । Shri Aurobindo has translated विश्वदेवाय as universal Godhead नमः Has been translated by him as submission. (see on the Vedas p.359).

    Foot Notes

    (यज्ञेः ) सङ्गतै: कर्मभिः । = By united actions. (हविर्भिः ) आदातुं योग्यैरुपदेशैद्रेव्यैर्वा । =By acceptable sermons or oblations. (विश्वदेवाय ) विश्वस्य प्रकाशकाय । = Illuminator of the world.

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