Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 26 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 26/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसुयव आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    वी॒तिहो॑त्रं त्वा कवे द्यु॒मन्तं॒ समि॑धीमहि। अग्ने॑ बृ॒हन्त॑मध्व॒रे ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वी॒तिऽहो॑त्रम् । त्वा॒ । क॒वे॒ । द्यु॒ऽमन्त॑म् । सम् । इ॒धी॒म॒हि॒ । अग्ने॑ । बृ॒हन्त॑म् । अ॒ध्व॒रे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वीतिहोत्रं त्वा कवे द्युमन्तं समिधीमहि। अग्ने बृहन्तमध्वरे ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वीतिऽहोत्रम्। त्वा। कवे। द्युऽमन्तम्। सम्। इधीमहि। अग्ने। बृहन्तम्। अध्वरे ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरग्निसादृश्येन विद्वद्गुणानाह ॥

    अन्वयः

    हे कवे अग्ने ! वयमध्वरे [वीतिहोत्रं] द्युमन्तमग्निमिव यं बृहन्तं त्वा समिधीमहि स त्वमस्माञ्छुद्धविद्यया प्रकाशय ॥३॥

    पदार्थः

    (वीतिहोत्रम्) वीतेर्व्याप्तेर्होत्रं ग्रहणं यस्मात् तम् (त्वा) (कवे) विद्वन् (द्युमन्तम्) प्रकाशवन्तम् (सम्) (इधीमहि) सम्यक् प्रकाशयेम (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (बृहन्तम्) महान्तम् (अध्वरे) अहिंसायज्ञे ॥३॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । मनुष्यैः शिल्पविद्यासिद्धयेऽग्निसम्प्रयोगोऽवश्यं कार्य्यः ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर अग्नि के सादृश्य से विद्वान् के गुणों को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (कवे) विद्वन् (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान ! हम लोग (अध्वरे) अहिंसारूप यज्ञ में (वीतिहोत्रम्) व्याप्ति का ग्रहण जिससे उस (द्युमन्तम्) प्रकाशवाले अग्नि के सदृश जिन (बृहन्तम्) महान् (त्वा) आपको (सम्, इधीमहि) उत्तम प्रकार प्रकाशित करें, वह आप हम लागों को शुद्ध विद्या से प्रकाशित करें ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि शिल्पविद्या की सिद्धि के लिये अग्नि का सम्प्रयोग अवश्य करें ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ज्ञानवान् गुरु के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में विद्युत् का वर्णन । उत्तम पुरुष का उच्च पद पर स्थापन ।

    भावार्थ

    भा०—हे (कवे ) क्रान्तदर्शिन् ! हे विद्वन् मेधाविन् ! ( अग्ने ) हे ज्ञानवन् ! अनि के तुल्य प्रकाश वाले ! ( अध्वरे ) इस हिंसारहितः प्रजापालन वा अध्ययन-अध्यापनादि कार्य में ( बृहन्तं ) महान् शक्तिशाली ( वीतिहोत्रं ) रक्षा, कान्ति, दीप्ति के निमित्त ग्रहण करने योग्य वा दीप्ति और रक्षा का दान देने वाले ( द्युमन्तं ) तेजस्वी ( त्वा) तुझ को हम अग्निवत् ही ( सम् इधीमहे ) अच्छी प्रकार प्रदीप्त करें, तुझे अधिक तेजस्वी, ख्यातिमान् और शक्तिशाली बनावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसूयव अत्रिया ऋषयः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः - १, ९ गायत्री | २, ३, ४,५,६,८ निचृद्गायत्री । ७ विराङ्गायत्री ॥ षडजः स्वरः ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    होत्र-ज्ञान-अध्वर

    पदार्थ

    १. हे (कवे क्रान्तदर्शिन्) = सर्वज्ञ प्रभो ! (वीतिहोत्रम्) = कान्त यज्ञोंवाले (द्युमन्तम्) = ज्योतिर्मय (त्वा) = आपको हम अपने हृदयों में (समिधीमहि) = समिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं। आपको समिद्ध करने का उपाय यही तो है कि हम कर्मेन्द्रियों को यज्ञादि उत्तम कर्मों में प्रेरित करके 'वीतिहोत्र' बनने का प्रयत्न करें तथा ज्ञानेन्द्रियों को ज्ञानप्राप्ति में लगाकर 'द्युमान्' बनें । २. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (बृहन्तम्) = महान्-सदावृद्ध आपको (अध्वरे) = हिंसारहित यज्ञों में दीप्त करने के लिए यत्नशील हों। हम अपने जीवनों में अध्वरात्मक कर्मों में व्याप्त होकर आगे और आगे बढ़ें। इसी प्रकार हम आपको अपने जीवनों में दीप्त कर पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु प्राप्ति के लिए हम [क] यज्ञप्रिय हों [ख] ज्ञान को बढ़ाएँ [ग] अध्वरात्मक [अहिंसात्मक] कर्मों में व्याप्त हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी शिल्पविद्येच्या सिद्धीसाठी अग्नी चांगल्या प्रकारे उपयोगात आणावा. ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, creative visionary of the light of heaven, in our yajnic project of love and non-violence, we invoke and enkindle you, universally great, self-refulgent and giver of the gifts of peace and enlightenment.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the Agni ( enlightened persons) are told further.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O enlightened person ! we manifest (praise) you well who are great, like the resplendent and vast fire in a non-violent sacrifice, illuminate us with pure knowledge.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should certainly use Agni (fire or electricity) for the accomplishment of technological works.

    Foot Notes

    (अध्वरे) अहिन्सायज्ञे । अध्वर इति यज्ञनाम । ध्वरतिहिंसाकर्मा तत्प्रतिवेध: (NKT, 3, 8)। = In a non-violent sacrifice.(वीतिहोत्रम्) दीव्यप्तिहोत्रं ग्रहणं यस्यात् तन् । = Vast, pervasive.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top