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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 26/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसुयव आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स॒मि॒धा॒नः स॑हस्रजि॒दग्ने॒ धर्मा॑णि पुष्यसि। दे॒वानां॑ दू॒त उ॒क्थ्यः॑ ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्ऽइ॒ध॒नः । स॒ह॒स्र॒ऽजि॒त् । अग्ने॑ । धर्मा॑णि । पु॒ष्य॒सि॒ । दे॒वाना॑म् । दू॒तः । उ॒क्थ्यः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समिधानः सहस्रजिदग्ने धर्माणि पुष्यसि। देवानां दूत उक्थ्यः ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्ऽइधानः। सहस्रऽजित्। अग्ने। धर्माणि। पुष्यसि। देवानाम्। दूतः। उक्थ्यः ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 6
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरग्निसादृश्येन विद्वद्विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे अग्ने ! यथा समिधानः पावको देवानां दूतोऽस्ति तथा सहस्रजिदुक्थ्यो देवानां समिधानो दूतः सन् यतो धर्म्माणि पुष्यसि तस्मात् सत्कर्तव्योऽसि ॥६॥

    पदार्थः

    (समिधानः) देदीप्यमानः (सहस्रजित्) असङ्ख्यानां विजेता (अग्ने) अग्निरिव दुष्टदाहक (धर्म्माणि) धर्म्याणि कर्माणि (पुष्यसि) (देवानाम्) (दूतः) यो दुनोति समाचारं दूरं दूराद्वा गमयत्यागमयति (उक्थ्यः) प्रशंसनीयः ॥६॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्या विद्यया विज्ञाय कार्यसिद्धये यमग्निं सम्प्रयुञ्जते सोऽग्निर्मनुष्यवत् कार्यसिद्धिं करोति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर अग्निसादृश्य से विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) अग्नि के सदृश दुष्टों के जलानेवाले ! जैसे (समिधानः) निरन्तर प्रकाशित हुआ अग्नि (देवानाम्) विद्वानों के (दूतः) समाचार को दूर व्यवहरता वा दूर पहुँचाता और ले आता है, वैसे (सहस्रजित्) असङ्ख्यों के जीतनेवाले (उक्थ्यः) प्रशंसा करने योग्य विद्वानों का निरन्तर प्रकाश करने, समाचार को दूर व्यवहरने वा दूर पहुँचाने और लानेवाले होते हुए जिससे (धर्म्माणि) धर्म्मसम्बन्धी कर्म्मों को (पुष्यसि) पुष्ट करते हो, इससे सत्कार करने योग्य हो ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य विद्या से अग्नि के गुणों को जान के कार्य्य की सिद्धि के लिये जिस अग्नि का सम्प्रयोग करते हैं, वह अग्नि मनुष्य के तुल्य कार्य्य की सिद्धि को करता है ॥६॥

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    विषय

    ज्ञानवान् गुरु के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में विद्युत् का वर्णन । उत्तम पुरुष का उच्च पद पर स्थापन ।

    भावार्थ

    भा०- ( समिधानः अग्निः सहस्रजित् ) खूब प्रदीप्त अग्नि जिस प्रकार सहस्रों सैन्यों को जीतता, सहस्रों रोगों पर वश करता और ( देवानां दूतः ) प्रकाशों, किरणों सहित प्रतापयुक्त एवं दूतवत् संदेश को भी दूर देश तक पहुंचाने वाला है उसी प्रकार हे ( अग्ने ) अग्निवत् तेजस्विन् ! तू भी ( सम्-इधानः ) अच्छी प्रकार प्रदीप्त, तेजस्वी होकर (सहस्रजित् ) सहस्रों बलवान् शत्रुओं को जीतने वाला हो । तू (धर्माणि ) समस्त धर्मयुक्त कर्मों को ( पुष्यसि ) पुष्ट करता है । तू ( देवानां ) विद्वान् पुरुशों के बीच उनका ( उक्थ्यः ) स्तुति योग्य, उत्तम वचन कहने हारा ( दूतः ) संदेश - हर और प्रतापी हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसूयव अत्रिया ऋषयः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः - १, ९ गायत्री | २, ३, ४,५,६,८ निचृद्गायत्री । ७ विराङ्गायत्री ॥ षडजः स्वरः ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    धार्मिक जीवन

    पदार्थ

    १. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (समिधान:) = हृदयदेश में समिद्ध किये जाते हुए आप (सहस्रजित्) = सहस्रशः वासनाओं को पराजित करनेवाले हैं। इन काम, क्रोध आदि को आप ही भस्म करते हैं । इन्हें भस्म करके (धर्माणि) = 'देवपूजा-संगतिकरण- दान' रूप प्रथम धर्मों का (पुष्यसि) = आप ही हमारे जीवनों में पोषण करते हैं । २. (देवानां दूत:) = देववृत्तियों के लिए आप ही ज्ञानसन्देश का वहन करते हैं और आप ही (उक्थ्यः) = स्तुति के योग्य हैं। आपका स्तवन करते हुए हम [क] वासनाओं को पराजित करते हैं [ख] धर्म का अपने में पोषण करते हैं और [ग] ज्ञान को प्राप्त करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु का स्तवन करें। वासनाओं से आक्रान्ता न होते हुए धर्म में प्रवृत्त रहकर, ज्ञान को प्राप्त करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसे विद्येद्वारे अग्नीचे गुण जाणून कार्यसिद्धीसाठी ज्या अग्नीचा उपयोग करतात तो अग्नी माणसांप्रमाणे कार्यसिद्धी करतो. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, burning and blazing, winning a thousand forces over, you protect and promote the universal values of knowledge and practical conduct in cooperation. Surely you are the adorable harbinger of the bounties of God and nature for humanity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of the Agni (learned persons) are further highlighted.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O burner of the wickeds ! you are like the fire. A kindled and bright (in the form of energy and electricity) Agni acts like the messenger of the learned scientists transmitting the news to distant places and receiving them back, in the same manner, you support all righteous actions, being victor of thousands of foes and admirable, and brighten the divine virtues within. You are, therefore, worthy of honor.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    When men use Agni with scientific knowledge (energy and electricity) for the accomplishment of various purposes, it accomplishes the works like a thoughtful man.

    Foot Notes

    (अग्ने) अग्निरिव दुष्टदाहक । = Burner of the wickeds like Agni (energy or electricity). (दूत:) यो दुनोति समाचारं दूरं दूराद्वा गमयत्यागमयति दु-गतौ (भ्वा० ) । = Who transmits the news to distant places or receives.

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