ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 43/ मन्त्र 11
आ नो॑ दि॒वो बृ॑ह॒तः पर्व॑ता॒दा सर॑स्वती यज॒ता ग॑न्तु य॒ज्ञम्। हवं॑ दे॒वी जु॑जुषा॒णा घृ॒ताची॑ श॒ग्मां नो॒ वाच॑मुश॒ती शृ॑णोतु ॥११॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । दि॒वः । बृ॒ह॒तः । पर्व॑तात् । आ । सर॑स्वती । य॒ज॒ता । ग॒न्तु॒ । य॒ज्ञम् । हव॑म् । दे॒वी । जु॒जु॒षा॒णा । घृ॒ताची॑ । श॒ग्माम् । नः॒ । वाच॑म् । उ॒श॒ती । शृ॒णो॒तु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो दिवो बृहतः पर्वतादा सरस्वती यजता गन्तु यज्ञम्। हवं देवी जुजुषाणा घृताची शग्मां नो वाचमुशती शृणोतु ॥११॥
स्वर रहित पद पाठआ। नः। दिवः। बृहतः। पर्वतात्। आ। सरस्वती। यजता। गन्तु। यज्ञम्। हवम्। देवी। जुजुषाणा। घृताची। शग्माम्। नः। वाचम्। उशती। शृणोतु ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 43; मन्त्र » 11
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे विद्यार्थिनो ! यथेयं यजता सरस्वती दिवो बृहतो नोऽस्मान् पर्वताज्जलमिवाऽऽगन्तु घृताची जुजुषाणा देव्युशती कामयमाना विदुषी स्त्री नो यज्ञं हवं शग्मां वाचं नोऽस्मांश्चऽऽशृणोतु तथैव युष्मानपि प्राप्ता सतीयं युष्माकं कृत्यं शृणुयात् ॥११॥
पदार्थः
(आ) (नः) अस्मान् (दिवः) कामयमानान् (बृहतः) महाशयान् (पर्वतात्) मेघात् (आ) (सरस्वती) विज्ञानयुक्ता वाक् (यजता) सङ्गन्तव्या (गन्तु) प्राप्नोतु (यज्ञम्) विद्याव्यवहारम् (हवम्) वक्तव्यं श्रोतव्यं वा (देवी) दिव्यगुणशास्त्रबोधयुक्ता (जुजुषाणा) सम्यक् सेवमाना (घृताची) या घृतमुदकमञ्चति (शग्माम्) सुखमयीम् (नः) अस्माकम् (वाचम्) वाणीम् [(उशती)] कामयमाना (शृणोतु) ॥११॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । तानेव दिव्या वाक् प्राप्नोति ये सत्यकामा महाशयाः परोपकारप्रिया धर्मिष्ठा विद्यार्थिनां परीक्षकाः स्युः ॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्यार्थी जनो ! जैसे यह (यजता) उत्तम प्रकार प्राप्त होने योग्य (सरस्वती) विज्ञानयुक्त वाणी (दिवः) कामना करते हुए (बृहतः) महदाशययुक्त (नः) हम लोगों को (पर्वतात्) मेघ से जल के सदृश (आ, गन्तु) सब प्रकार प्राप्त होवे (घृताची) घृत को प्राप्त होनेवाली (जुजुषाणा) उत्तम प्रकार से सेवन की गई (देवी) श्रेष्ठ गुण और शास्त्र के बोध से युक्त (उशती) कामना करती हुई विद्यायुक्त स्त्री (नः) हम लोगों के (यज्ञम्) विद्याव्यवहार को (हवम्) कहने-सुनने योग्य व्यवहार को वा (शग्माम्) सुखमयी (वाचम्) वाणी को और हम लागों को (आ, शृणोतु) अच्छे प्रकार सुने, वैसे आप लोगों को भी प्राप्त हुई यह आप लोगों के कृत्य को सुने ॥११॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । उन्हीं को श्रेष्ठ वाणी प्राप्त होती है, जो सत्य की कामना करनेवाले, महाशय, परोपकारप्रिय, धर्मिष्ठ और विद्यार्थियों के परीक्षक होवें ॥११॥
विषय
नदीवत् वाणी और स्त्री का वर्णन । अधिकार, न्याय- शासन योग्य पुरुष ।
भावार्थ
भा०- ( बृहतः पर्वतात् सरस्वती ) बड़े भारी पर्वत से जिस प्रकार वेगवती जल भरी नदी आती है उसी प्रकार ( बृहतः दिवः ) बड़े भारी तेजस्वी और ज्ञानप्रकाशक विद्वान् से ( यजता सरस्वती ) दान देने और सत्संग से प्राप्त करने योग्य वाणी (नः यज्ञम् ) हमारे सत्संङ्ग वा आत्मा को ( आ गन्तु ) प्राप्त हो । हमें ज्ञानदायक वाणी मिले। और ( घृताची ) घृत, जल, तेज आदि धारण करने वाली, ( जुजुषाणा देवी ) प्रेम करने वाली स्त्री ( नः हवम् ) हमारे यज्ञ को प्राप्त हो, वह ( उशती ) उत्तम कामना से युक्त होकर प्रेमपूर्वक ( नः ) हमारी ( शग्मां वाचं शृणोतु ) सुखप्रद वाणी को सुने ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अत्रिर्ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:–१, ३, ६, ८, ९, १७ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ४, ५, १०, ११, १२, १५ त्रिष्टुप् । ७, १३ विराट् त्रिष्टुप् । १४ भुरिक्पंक्ति: । १६ याजुषी पंक्तिः ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
पर्वत से सरस्वती का प्रवाह
पदार्थ
[१] (नः) = हमारे (यज्ञम्) = इस जीवनयज्ञ में (दिवः) = प्रकाशमय, (बृहतः) = गुण प्रवृद्ध, (पर्वतात्) = अपना पूरण करनेवाले आचार्य से (सरस्वती) = यह वाग्देवी, ज्ञान की अधिष्ठातृ देवता (आगन्तु) = सर्वथा प्राप्त हो। हम ज्ञानी गुरुओं से ज्ञान को प्राप्त करें। यह सरस्वती सचमुच (यजता) = उपासनीय है। सरस्वती की आराधना ही हमें प्रभु का प्रिय बनाती है 'ज्ञानी त्वात्मैव मे मतः'। यह (देवी) = प्रकाशमय सरस्वती (हवम्) = हमारी पुकार को (जुजुषाणा) = प्रीतिपूर्वक सेवन करती हुई (न:) = हमारे लिये (घृताची) = ज्ञानदीप्ति को प्राप्त करानेवाली है यह (उशती) = हमारे हित को चाहती हुई (शग्माम्) = सुखकारी (वाचम्) = इस प्रभु की वाणीरूप वेदवाणी को (शृणोतु) = सुने । अर्थात् सरस्वती की कृपा से सदा हम ज्ञान की वाणियों को सुनने में प्रवृत्त हों। ये ज्ञानवाणियाँ ही अन्ततः हमारा कल्याण करनेवाली होती हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- हम ज्ञानी आचार्यों से ज्ञान का प्राप्त करें। सदा ज्ञान की वाणियों का श्रवण करें। यह श्रवण ही हमारे लिये सुखकर होगा। आचार्य 'पर्वत' है, ज्ञान का पूरण करनेवाला है। उससे विद्यार्थी की ओर ज्ञान का प्रवाह ही 'सरस्वती का प्रवाह' है ।
मराठी (1)
भावार्थ
जे सत्याची कामना करणारे, परोपकार प्रिय, धार्मिक व विद्यार्थ्यांची परीक्षा घेणारे असतात त्यांनाच श्रेष्ठ वाणी प्राप्त होते. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May Sarasvati, divine mother of knowledge and language in the cosmic flow, loving and responsive to her children, come to bless our yajna, bearing ghrta and waters of life’s energy and inspiration from heaven, the vast skies, clouds and mountains. May she join us like a mother overflowing with love, listen to our words of prayer for peace and pious advancement and give us the vision.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties and attributes of an enlightened person are cited.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O students ! this speech is full of knowledge which is worthy of attainment. Let it come to us who are desirous and of loft ideas, like water from the cloud. A learned lady is of peaceful disposition like water, who serves the public well, is endowed with the divine virtues and the knowledge of the shastras and desirous of the welfare of all. Let her listen to our dealing of knowledge, our invocation or request, and our speech which confers happiness. Let her listen and know also to what you do or learn, when she approaches you.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is only those persons whose desires are truthful, carry the most lofty ideas, lovers and doing good to others, are righteous and examiners of the students that attain the divine speech.
Foot Notes
(दिव:) कामयमानान् । दिवु-क्रीडाविजिगीषाव्यवहार- द्युतिस्तुति मोदमदस्वप्न कान्ति गतिषु । अत्र कान्त्यर्थः । कान्तिः कामना । = Desirous. (यज्ञम् ) विद्याव्यवहारम् । = The dealing of knowledge. (सरस्वती) विज्ञानयुक्ता वाक् । सरस्वतीति वाङ्नाम (NG 1, 11) सु-गतौ गतेरत्र ज्ञानार्थः । = The speech is full of the special knowledge. (घृताची) या घृतमुदकमंर्चति । घृत-मित्युदकनाम (NG 1, 12 ) अंचु गतिपूजनयोः । = She who is of peaceful disposition like water and who uses water for domestic work. (देवी) दिव्यगुणशास्त्रबोधयुक्ता । देवी इत्यत्र विद्वांसो हि देवाः (Stph 3, 7, 3, 10 ) अतो देवी विदुषी स्त्री। = Endowed with the divine virtues and the knowledge of the Shastras. (उशती) कामयमाना । उशती-वश-कान्तौ । कान्तिः कामना। = Desiring the welfare of all.
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