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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 43/ मन्त्र 13
    ऋषिः - अत्रिः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ ध॑र्ण॒सिर्बृ॒हद्दि॑वो॒ ररा॑णो॒ विश्वे॑भिर्ग॒न्त्वोम॑भिर्हुवा॒नः। ग्ना वसा॑न॒ ओष॑धी॒रमृ॑ध्रस्त्रि॒धातु॑शृङ्गो वृष॒भो व॑यो॒धाः ॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ध॒र्ण॒सिः॒ । बृ॒हत्ऽदि॑वः । ररा॑णः । विश्वे॑भिः । ग॒न्तु॒ । ओम॑ऽभिः । हु॒वा॒नः । ग्नाः । वसा॑नः । ओष॑धीः । अमृ॑ध्रः । त्रि॒धातु॑ऽशृङ्गः । वृ॒ष॒भः । व॒यः॒ऽधाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ धर्णसिर्बृहद्दिवो रराणो विश्वेभिर्गन्त्वोमभिर्हुवानः। ग्ना वसान ओषधीरमृध्रस्त्रिधातुशृङ्गो वृषभो वयोधाः ॥१३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। धर्णसिः। बृहत्ऽदिवः। रराणः। विश्वेभिः। गन्तु। ओमऽभिः। हुवानः। ग्नाः। वसानः। ओषधीः। अमृध्रः। त्रिधातुऽशृङ्गः। वृषभः। वयःऽधाः ॥१३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 43; मन्त्र » 13
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! यथा धर्णसिर्बृहद्दिवो रराणो विश्वेभिरोमभिर्हुवानो ग्ना वसान ओषधीरमृध्रस्त्रिधातुशृङ्गो वयोधा वृषभस्सूर्य्यो जगदुपकारी वर्त्तते तथैव भवान् जगदुपकारायाऽऽगन्तु ॥१३॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (धर्णसिः) धर्त्ता (बृहद्दिवः) बृहतः प्रकाशस्य (रराणः) ददन् (विश्वेभिः) सर्वैः (गन्तु) प्राप्नोतु (ओमभिः) रक्षणादिकारकैः सह (हुवानः) आददानः (ग्नाः) वाचः। ग्नेति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (वसानः) आच्छादयन् (ओषधीः) सोमलताद्याः (अमृध्रः) अहिंसकः (त्रिधातुशृङ्गः) त्रयो धातवो शुल्करक्तकृष्णगुणाः शृङ्गवद्यस्य सः (वृषभः) वर्षकः (वयोधाः) यो वयः कमनीयमायुर्दधाति सः ॥१३॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये विद्वांसः त्रिगुणयुक्तप्रकृतिबोधका वाग्विज्ञापका अहिंस्रा औषधै रोगनिवारका ब्रह्मचर्य्यादिबोधेनायुर्वर्धका भवन्ति त एव जगत्पूज्या जायन्ते ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! जैसे (धर्णसिः) धारण करनेवाला (बृहद्दिवः) बड़े प्रकाश का (रराणः) दान करता हुआ (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (ओमभिः) रक्षण आदि के करनेवालों के साथ (हुवानः) ग्रहण करता और (ग्नाः) वाणियों को (वसानः) आच्छादित करता हुआ (ओषधीः) सोमलता आदि का (अमृध्रः) नहीं नाश करनेवाला (त्रिधातुशृङ्गः) तीन धातु अर्थात् शुक्ल, रक्त, कृष्ण गुण शृङ्गों के सदृश जिसके और (वयोधाः) सुन्दर आयु को धारण करनेवाला (वृषभः) वृष्टिकारक सूर्य्य संसार का उपकारी है, वैसे ही आप संसार के उपकार के लिये (आ, गन्तु) उत्तम प्रकार प्राप्त हूजिये ॥१३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्वान् तीन गुणों से युक्त प्रकृति के जानने, वाणी के जानने, नहीं हिंसा करने, औषधों से रोगों के निवारने और ब्रह्मचर्य्य आदि के बोध से अवस्था के बढ़ानेवाले होते हैं, वे ही संसार के पूज्य होते हैं ॥१३॥

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    विषय

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    भावार्थ

    भा०- ( धर्णसिः ) राष्ट्र के कार्य-भार को धारण करने वाला, ( बृहद्दिवः ) बड़े भारी तेज को सूर्यवत् धारण करने और देने वाला, ( रराणः ) दानशील, ( वृषभः) धार्मिक ( त्रिधातु-शृङ्गः ) तीनों धातुओं के से बड़े सींगों से सुशोभित बड़े वृषभ के सदृश सुदृढ़, तीनों धातुओं की वाणों की किरणों से सुशोभित, एवं तीन धातु ताम्र, लोह, सुवर्ण आदि के बने हिंसाकारक शस्त्रास्त्रों से युक्त ( वयोधाः ) बल,दीर्ध आयु और ज्ञान को धारण करने वाला, ( अमृध्रः ) प्रजाओं की हिंसा न करने वाला, अहिंसक, दयालु पुरुष ( आहुवानः ) आदर पूर्वक बुलाया जाकर वा आमन्त्रित होकर (ग्ना:) गमनशील जंगम प्रजाओं और ( ओषधीः ) अन्न, लता, वृक्ष आदि स्थावर प्रजाओं को भी ( वसानः ) बसाता हुआ, उनकी भली प्रकार अपने राष्ट्र में रक्षा करता हुआ, एवं (ग्नाः) गमन करने योग्य भूमियों, प्रजाओं और स्त्रियों की एवं ( ओषधीः ) कान्ति, तेज और शत्रुदाहक सामर्थ्य को धारण करने वाली सेनाओं को भी बसाता हुआ, ( ओमभिः) रक्षा साधनों सहित ( आ गन्तु ) हमें प्राप्त हो ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अत्रिर्ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:–१, ३, ६, ८, ९, १७ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ४, ५, १०, ११, १२, १५ त्रिष्टुप् । ७, १३ विराट् त्रिष्टुप् । १४ भुरिक्पंक्ति: । १६ याजुषी पंक्तिः ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    'धर्णसि' प्रभु [ना: ओषधीः वसानः]

    पदार्थ

    [१] वे प्रभु (धर्णसि:) = सब के धारक हैं। (बृहद्दिवः) = अत्यन्त प्रवृद्ध दीप्तिवाले | (रराणः) = सर्वत्र रममाण हैं व हमारे लिये सब कुछ देनेवाले हैं। (हुवानः) = पुकारे जाते हुए वे प्रभु (विश्वेभिः) = सब (ओमभिः) = रक्षणों से (आगन्तु) = हमें प्राप्त हों। [२] वे प्रभु हमें (ग्नाः) = वेदवाणियों से (वसानः) = आच्छादित करते हैं तथा (ओषधी:) = ओषधियों को हमारे लिये प्राप्त कराते हैं । (अमृध्रः) = अहिंसित हैं । वस्तुत: जो भी मनुष्य इन वेदवाणियों के ज्ञान को प्राप्त करता है तथा ओषधियों का सेवन करता है, वह अहिंसित ही होता है। (त्रिधातु शृंगः) ='धन, शक्ति व ज्ञान' तीनों धारणीय वस्तुओं के वे प्रभु शृंग हैं। तीनों की दृष्टिकोण से सर्वोन्नत है। सर्वैश्वर्यवाले सर्वशक्तिमान् व सर्वज्ञ हैं। (वृषभः) = शक्तिशाली हैं व सब सुखों का वर्षण करनेवाले हैं। वयोधा उत्कृष्ट जीवन का हमारे लिये धारण करानेवाले हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु का उपासन करने से ही हमारा जीवन उत्कृष्ट बनता है। प्रभु ही धारक हैं, प्रकाशक हैं, सर्वप्रद हैं, सब प्रकार से रक्षा करनेवाले हैं। हमारे लिये वेदवाणियों को [मस्तिष्क के लिये] व ओषधियों को [शरीर के लिये] प्राप्त कराते हैं । शरीर, मन व बुद्धि के दृष्टिकोण से हमें उन्नत करके सुखी व सुन्दर जीवनवाला बनाते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्वान, त्रिगुणयुक्त प्रकृतीला जाणणारे, विज्ञानयुक्त वाणी असणारे, औषधींनी रोग नष्ट करणारे, ब्रह्मचर्य इत्यादींचा बोध करून दीर्घायुषी करणारे असतात तेच जगात पूज्य असतात. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May the wielder and sustainer of existence, mighty refulgent and blissful, invoked, enkindled and raised in the vedi come and bless our yajna with all means of protection and progress, the lord illuminating our voices of praise and prayer, vitalising herbs and vegetation, kind and loving, lord of nature’s three modes of thought (sattva), energy (rajas) and matter (tamas) which are transparent, red and dark green, the lord generous as showers and giver of health and age.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The theme of a learned person is dealt.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! the sun is upholder and gives away (spreads) the great light with all its protective capabilities and accepts the beings. Pervading the speeches and never decaying the herbs like Soma resembles with three basic substances like white red and black horns. It gives beautiful life (span of life) and nourishes the whole world with the rays and is thus benefactor. You should also come forward in a nice way for the benefit of the world.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Here is a simile. The learned person who knows well the three qualities of the nature, tells about the ideal speech and never commits violence. He is able to cure the diseases of the people with his medicines and tells the merits of the Brahmacharya and thus prolongs the age of people. He is ever respected in the world.

    Foot Notes

    (धर्णासिः) धर्त्ता | = Upholder. (बृहद्दिव:) वृहतः प्रकाशस्य | = Of the great light. (ओमभि:) रक्षणादिकारकैः सह । = Along with protective capabilities. (ग्नाः) वाच: । ग्नेति वाङ्नाम (NG 1, 11)। = The speeches. (त्रिधातुराङ्ग) त्रयो धातवो शुक्लारक्तकृष्ण गुणाः शुङ्गवद्यस्य सः । = Three basic substances of white, red and black colured horns. (वयोधाः ) यो वयः कमनीयमायुर्दधाति सः । = One who prolongs ideal span of life.

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