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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 44/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अवत्सारः काश्यप अन्ये च दृष्टलिङ्गाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    या॒दृगे॒व ददृ॑शे ता॒दृगु॑च्यते॒ सं छा॒यया॑ दधिरे सि॒ध्रया॒प्स्वा। म॒हीम॒स्मभ्य॑मुरु॒षामु॒रु ज्रयो॑ बृ॒हत्सु॒वीर॒मन॑पच्युतं॒ सहः॑ ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या॒दृक् । ए॒व । ददृ॑शे । ता॒दृक् । उ॒च्य॒ते॒ । सम् । छा॒यया॑ । द॒धि॒रे॒ । सि॒ध्रया॑ । अ॒प्ऽसु । आ । म॒हीम् । अ॒स्मभ्य॑म् । उ॒रु॒ऽसाम् । उ॒रु । ज्रयः॑ । बृ॒हत् । सु॒ऽवीर॑म् । अन॑पऽच्युतम् । सहः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यादृगेव ददृशे तादृगुच्यते सं छायया दधिरे सिध्रयाप्स्वा। महीमस्मभ्यमुरुषामुरु ज्रयो बृहत्सुवीरमनपच्युतं सहः ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यादृक्। एव। ददृशे। तादृक्। उच्यते। सम्। छायया। दधिरे। सिध्रया। अपऽसु। आ। महीम्। अस्मभ्यम्। उरुऽसाम्। उरु। ज्रयः। बृहत्। सुऽवीरम्। अनपऽच्युतम्। सहः ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 44; मन्त्र » 6
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    ये ज्रयः सिध्रया छाययाप्स्वस्मभ्यमुरुषां महीमुरु बृहत्सुवीरमनपच्युतं सहः समा दधिरे यैर्यादृग्ददृशे तादृगेवोच्यते तेऽस्माभिः सततं सत्कर्त्तव्याः ॥६॥

    पदार्थः

    (यादृक्) (एव) (ददृशे) दृश्यते (तादृक्) (उच्यते) (सम्) (छायया) (दधिरे) दधति (सिध्रया) मङ्गलया (अप्सु) जलेषु प्राणेषु वा (आ) (महीम्) महतीं वाचम् (अस्मभ्यम्) (उरुषाम्) यो बहून् सनति विभजति तम् (उरु) बहु (ज्रयः) वेगवन्तः (बृहत्) महत् (सुवीरम्) शोभना वीरा यस्मात्तम् (अनपच्युतम्) ह्रासरहितम् (सहः) बलम् ॥६॥

    भावार्थः

    येऽन्येषु विद्याबलं धनसञ्चयञ्च स्थापयन्ति यैर्यादृशमात्मनि वर्त्तते तादृङ् मनसि यादृङ् मनसि तादृग्वाचा भाष्यते त एव आप्ता विज्ञेयाः ॥६॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    जो (ज्रयः) वेगवाले (सिध्रया) मङ्गलस्वरूप (छायया) छाया से (अप्सु) जलों वा प्राणों में (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (उरुषाम्) बहुतों के विभाग करनेवाले को (महीम्) बड़ी वाणी और (उरु) बहुत (बृहत्) बड़े (सुवीरम्) सुन्दर वीर पुरुष जिससे उस (अनपच्युतम्) नाश से रहित (सहः) बल को (सम्, आ, दधिरे) उत्तम प्रकार धारण करते हैं और जिन लोगों से (यादृक्) जैसा (ददृशे) देखा जाता है (तादृक्) वैसा (एव) ही (उच्यते) कहा जाता है, वे हम लोगों से निरन्तर सत्कार करने योग्य हैं ॥६॥

    भावार्थ

    जो अन्य जनों में विद्या के बल और धन के संचय को स्थापित करते हैं और जिनसे जैसा आत्मा में वर्त्तमान है, वैसा मन में और जैसा मन में वैसा वाणी से कहा जाता है, वे ही यथार्थवक्ता जानने योग्य हैं ॥६॥

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    विषय

    वृक्षों के तुल्य शासक जनों को दयालु होने का उपदेश ।

    भावार्थ

    भा०- ( यादृग् एव ) जैसा ही ( ददृशे ) साक्षात् किया जाता है ( तादृग् उच्यते ) वैसा ही यहां वर्णन किया जाता है । वह यह की जिस प्रकार वृक्ष (अप्सु छायया दधिरे ) जलों पर पोषित होकर अपनी छाया से सब जनों को अपने नीचे सुख देते हैं उसी प्रकार शासक लोग भी ( अप्सु ) आप्त अधीन प्रजाओं के ऊपर रहकर भी ( सिध्रया ) मंगलकारिणी, सुखप्रद ( छायया ) अपनी छत्रछाया से ( अस्मभ्यं ) हमारी इस ( उरुषाम् महीम् ) बहुत सुख समृद्धि देने वाली भूमि को (दधिरे ) पालन करें और वे ( ज्रयः ) वेगवान् रहकर ( बृहत् ) बहुत बड़े ( सु-वीरम् ) उत्तम वीरों से युक्त ( अनपच्युतम् ) कभी संग्राम में न भागने वाले ( सहः ) शत्रुविजयी बल को भी ( दधिरे ) धारण करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अवत्सारः काश्यप अन्थे च सदापृणबाहुवृक्तादयो दृष्टलिंगा ऋषयः ॥ विश्वदेवा देवताः ॥ छन्दः–१, १३ विराड्जगती । २, ३, ४, ५, ६ निचृज्जगती । ८, ६, १२ जगती । ७ भुरिक् त्रिष्टुप् । १०, ११ स्वराट् त्रिष्टुप् । १४ विराट् त्रिष्टुप् । १५ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे इतरांना विद्या, बल, धन देतात व ज्यांच्या आत्म्यामध्ये जसे तसे मनामध्ये व जसे मनामध्ये तसेच वाणीमध्ये असते त्यांनाच आप्त म्हणतात. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Who are the sagely divines of humanity? As they see the truth of reality, so do they speak of it. They behold it and stand thereby by the holy reflection of it in divine works of creation or in the visions of their own imagination. And they, men of courage, wide and bold in speech and imagination, bear and bring for us great illuminative speech of knowledge and high and mighty undecaying valour, forbearance and spirit of challenge which creates great heroes in the service of truth and rectitude. They are human divines.

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