Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 45 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 45/ मन्त्र 10
    ऋषिः - सदापृण आत्रेयः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    आ सूर्यो॑ अरुहच्छु॒क्रमर्णोऽयु॑क्त॒ यद्ध॒रितो॑ वी॒तपृ॑ष्ठाः। उ॒द्ना न नाव॑मनयन्त॒ धीरा॑ आशृण्व॒तीरापो॑ अ॒र्वाग॑तिष्ठन् ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । सूर्यः॑ । अ॒रु॒ह॒त् । शु॒क्रम् । अर्णः॑ । अयु॑क्त । यत् । ह॒रितः॑ । वी॒तऽपृ॑ष्ठाः । उ॒द्ना । न । नाव॑म् । अ॒न॒य॒न्त॒ । धीराः॑ । आ॒ऽशृ॒ण्व॒तीः । आपः॑ । अ॒र्वाक् । अ॒ति॒ष्ठ॒न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ सूर्यो अरुहच्छुक्रमर्णोऽयुक्त यद्धरितो वीतपृष्ठाः। उद्ना न नावमनयन्त धीरा आशृण्वतीरापो अर्वागतिष्ठन् ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। सूर्यः। अरुहत्। शुक्रम्। अर्णः। अयुक्त। यत्। हरितः। वीतऽपृष्ठाः। उद्ना। न। नावम्। अनयन्त। धीराः। आऽशृण्वतीः। आपः। अर्वाक्। अतिष्ठन् ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 45; मन्त्र » 10
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यत्सूर्यः शुक्रमारुहदर्णोऽयुक्त वीतपृष्ठा हरितो धीरा उद्ना नावं नानयन्तार्वागाशृण्वतीरापोऽतिष्ठन् तत्सर्वं यूयं विजानीत ॥१०॥

    पदार्थः

    (आ) (सूर्य्यः) (अरुहत्) रोहति (शुक्रम्) वीर्य्यम् (अर्णः) उदकम् (अयुक्त) युनक्ति (यत्) (हरितः) ये हरन्त्युदकादिकम् (वीतपृष्ठाः) वीतानि व्याप्तानि लोकलोकान्तराणां पृष्ठानि यैस्ते (उद्ना) उदकेन (न) इव (नावम्) (अनयन्त) नयन्ति (धीराः) ध्यानवन्तो मेधाविनः (आशृण्वतीः) याः समन्ताच्छ्रूयन्ते ताः (आपः) प्राणाः (अर्वाक्) पश्चात् (अतिष्ठन्) तिष्ठन्ति ॥१०॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः सूर्य्यजलादिविद्यां विज्ञाय नावादिकं चालयेयुस्ते श्रीमन्तो जायन्ते ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यत्) जो (सूर्य्यः) सूर्य्य (शुक्रम्) वीर्य का (आ, अरुहत्) आरोहण करता और (अर्णः) उदक का (अयुक्त) योग करता है और (वीतपृष्ठाः) व्याप्त हैं लोकान्तरों के पृष्ठ जिनसे वे (हरितः) जल आदि को हरनेवाले (धीराः) ध्यानवान् बुद्धिमान् जन (उद्ना) जल से (नावम्) नौका को (न) जैसे वैसे (अनयन्त) प्राप्त होते अर्थात् व्यवहार को पहुँचते हैं (अर्वाक्) पीछे (आशृण्वतीः) जो चारों ओर से सुन पड़ते हैं वह (आपः) प्राण (अतिष्ठन्) स्थित होते हैं, उस सब को आप लोग जानें ॥१०॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य सूर्य्य और जल आदि की विद्याओं को जान के नौका आदि को चलावें, वे लक्ष्मीवान् होते हैं ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    तेजस्वी के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०-( सूर्यः) सूर्य जिस प्रकार ( शुक्रम् अर्वा अरुहत् ) अतिदीप्त वा सूक्ष्म जल को ऊपर उठाता है और ( वीतष्पृष्टाः हरितः अयुक्त ) कान्ति युक्त रूप वाली जल हरने वाली मेघमालाओं, वायुओं वा किरणों का योग करता है तब ( आपः अर्वांग् अतिष्ठन् ) जलधाराएं भी मेघ से नीचे आ जाती हैं उसी प्रकार जब ( सूर्यः ) सूर्यवत् तेजस्वी पुरुष ( शुक्रम् अर्णः आ अरुहत् ) शुद्ध कान्तियुक्त ऐश्वर्य को आदरपूर्वक सिंहासन पर विराजता है और (वीतपृष्ठाः) कान्तियुक्त चमकीली पीठ वाले ( हरितः यत् अयुक्त ) किरणों के समान घोड़ों को जब रथ में जोड़ता है, तब (धीराः) बुद्धिमान् पुरुष ( उद्ना नावं न ) जल मार्ग में से नौका के समान ( उद्ना ) उत्तम मार्ग से उस राजा को ( अनयन्त ) ले चलें । और ( आशृण्वतीः आपः ) राजा की आज्ञाओं को आदर से श्रवण करने वाली अन्य प्रजाएं उसके ( अर्वाक्-अतिष्ठन् ) अधीन होकर रहें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सदापृण आत्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द: – १, २ पंक्तिः । ५, ९, ११ भुरिक् पंक्ति: । ८, १० स्वराड् पंक्तिः । ३ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६,७ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'क्रियाशीलता व अन्तर्मुखी वृत्ति' द्वारा ज्ञान प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] (सूर्यः) = यह गतिशील पुरुष (शुक्रम्) = शुद्ध (अर्णः) = ज्ञानजल पर (आ अरुहत्) = आरूढ़ होता है, अर्थात् उत्कृष्ट ज्ञान का अधिष्ठाता बनता है। इसलिये ज्ञान को प्राप्त कर पाता है, (यत्) = क्योंकि (वीतपृष्ठाः) = कान्त पृष्ठवाले, तेजस्वी, (हरितः) = इन्द्रियाश्वों को अयुक्त यह शरीररथ में जोतता है । इन्द्रियों को निर्मल बनाकर क्रियाशील बने रहें, तो ज्ञानेन्द्रियाँ हमें उत्कृष्ट ज्ञान को क्यों न प्राप्त करायेंगी ? [२] (उद्गा न नावम्) = जैसे उदक के हेतु से, पानी को पार करने के हेतु से (नावम्) = नाव को अनयन्त प्राप्त कराते हैं, इसी प्रकार (धीराः) = ज्ञान में रमण करनेवाले लोग [धिवि रमते] तेजस्वी इन्द्रियाश्वों को शरीर-रथ में प्राप्त कराते हैं। इनके द्वारा ही वे ज्ञान को प्राप्त करनेवाले होते हैं। इस प्रकार ज्ञान प्रवृत्तिवाले (आपः) = लोग [आपो वै नरसूनवः] (आशृण्वती:) = हृदयस्थ प्रभु की प्रेरणाओं को सुनते हुए, (अर्वाग् अतिष्ठन्) = अन्तर्मुख वृत्तिवाले होकर ठहरते हैं। ये सदा ध्यान की वृत्तिवाले बनकर ही तो वस्तुतः ज्ञान को प्राप्त कर पाते हैं। जोतनेवाले बनें। इस प्रकार

    भावार्थ

    भावार्थ- हम गतिशील बनकर निर्मल इन्द्रियों को शरीर-रथ में क्रियाशील बनकर ही हम ज्ञान को प्राप्त कर पायेंगे । अन्तर्मुखी वृत्ति भी इस ज्ञान प्राप्ति में सहायक होती है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे सूर्य, जल इत्यादी विद्या जाणून नावा वगैरे चालवितात ती श्रीमंत होतात. ॥ १० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When the sun yokes its far ranging rays of spectrum light to its chariot, it rises over the bright and lustrous ocean of spatial waters, and its intelligent and well directed horses carry it over the orbit like the constant waves of the sea carrying a boat, with the result that the overflowing waters stand around listening and raining down in showers. Similarly when the self- luminous soul yokes the five senses, the five pranas and the mind and intelligence to its purpose of action in yoga yajna, it rises over the bright and blazing world of existence, the seven lights of natural powers, perceptive and well directed by the soul in the state of constancy, carry it over the waters around waiting for its orders, and the soul reaches its destination where it joins the Divine.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The people's duties under such circumstances are mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! the sun ascends with it's strength and comes in contact with water (through its rays). The wise men of meditative disposition pervade the entire worlds by their knowledge, and take water and other things (for proper use ) . They take ferry a boat or ship by the route of the water. Their Pranas always stand by their side, which are conspicuous on all sides. You must know all this.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The navigators acquire knowledge of the science of the sun and the water etc., and thus become wealthy,

    Foot Notes

    (हरितः ) ये हरन्त्युदकादिकम् । इन् हरणे (भ्वा० ) = They who draw water etc. (आप:) प्राणा: । आपों वै प्राणः (Stph 4, 8, 2, 2) जैमिनीयोपनिषद् ब्राह्मणे 3, 1, 9 ) = Pranas (vital breaths).

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top