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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 87 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 87/ मन्त्र 7
    ऋषिः - एवयामरुदात्रेयः देवता - मरूतः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    ते रु॒द्रासः॒ सुम॑खा अ॒ग्नयो॑ यथा तुविद्यु॒म्ना अ॑वन्त्वेव॒याम॑रुत्। दी॒र्घं पृ॒थु प॑प्रथे॒ सद्म॒ पार्थि॑वं॒ येषा॒मज्मे॒ष्वा म॒हः शर्धां॒स्यद्भु॑तैनसाम् ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । रु॒द्रासः॑ । सुऽम॑खाः । अ॒ग्नयः॑ । य॒था॒ । तु॒वि॒ऽद्यु॒म्नाः । अ॒व॒न्तु॒ । ए॒व॒याम॑रुत् । दी॒र्घम् । पृ॒थु । प॒प्र॒थे॒ । सद्म॑ । पार्थि॑वम् । येषा॑म् । अज्मे॑षु । आ । म॒हः । शर्धां॑सि । अद्भु॑तऽएनसाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते रुद्रासः सुमखा अग्नयो यथा तुविद्युम्ना अवन्त्वेवयामरुत्। दीर्घं पृथु पप्रथे सद्म पार्थिवं येषामज्मेष्वा महः शर्धांस्यद्भुतैनसाम् ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते। रुद्रासः। सुऽमखाः। अग्नयः। यथा। तुविऽद्युम्नाः। अवन्तु। एवयामरुत्। दीर्घम्। पृथु। पप्रथे। सद्म। पार्थिवम्। येषाम्। अज्मेषु। आ। महः। शर्धांसि। अद्भुतऽएनसाम् ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 87; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 34; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! ते सुमखा रुद्रासो यथाऽग्नयस्तुविद्युम्ना अस्मानवन्तु येषामद्भुतैनसामज्मेषु शर्धांसि महो दीर्घं पृथु पार्थिवं सद्मैवयामरुदाऽऽपप्रथे ॥७॥

    पदार्थः

    (ते) (रुद्रासः) मध्यमा विद्वांसः (सुमखाः) शोभनन्यायाचरणयज्ञानुष्ठातारः (अग्नयः) अग्निवद्वर्त्तमानाः (यथा) येन प्रकारेण (तुविद्युम्नाः) बहुधनयशोन्विताः (अवन्तु) (एवयामरुत्) (दीर्घम्) (पृथु) विस्तीर्णं प्रख्यातं वा (पप्रथे) प्रख्यापयति (सद्म) सीदन्ति यस्मिन् (पार्थिवम्) पृथिव्यां विदितम् (येषाम्) (अज्मेषु) अजन्ति गच्छन्ति येषु सङ्ग्रामेषु (आ) (महः) (शर्धांसि) बलानि (अद्भुतैनसाम्) अद्भुतानि महान्त्येनांसि पापानि येषान्ते ॥७॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्या अग्निवत्पापप्रणाशकाः सत्यप्रकाशकाः दुष्टानां रोदयितारः श्रेष्ठानां पालकाः सन्ति त एवातुलकीर्त्तयो भवन्ति ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (ते) वे (सुमखाः) सुन्दर न्यायाचरण और यज्ञ के करनेवाले (रुद्रासः) मध्यम विद्वान् जन (यथा) जैसे (अग्नयः) अग्नि के सदृश वर्त्तमान (तुविद्युम्नाः) बहुत धन और यश से युक्त हुए हम लोगों की (अवन्तु) रक्षा करें (येषाम्) जिन (अद्भुतैनसाम्) अद्भुत बड़े पापवालों के (अज्मेषु) संग्रामों में (शर्धांसि) बलों और (महः) बड़े (दीर्घम्) लम्बे (पृथु) विस्तृत वा प्रसिद्ध (पार्थिवम्) पृथिवी में विदित (सद्म) ठहरते हैं जिसमें उस स्थान को (एवयामरुत्) बुद्धिमान् पुरुष (आ, प्रपथे) अच्छे प्रकार प्रसिद्ध करता है ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य अग्नि के सदृश पाप के नाश करने, सत्य के प्रकाश करने और दुष्टों के रुलानेवाले, श्रेष्ठों के पालक हैं, वे ही अधिक कीर्त्तिवाले होते हैं ॥७॥

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    विषय

    अग्निवत्, वायुवत् वीर पुरुषों का वर्णन । उनके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०- ( येषाम् ) जिन ( अद्भुत-एनसाम् ) अपराधरहित, निष्पाप जनों के ( महः शर्धासि ) बड़े शत्रु हिंसक बल, सैन्य आदि हैं और जिनके ( अज्मेषु ) संग्रामों के अवसरों पर ( दीर्घं ) अति दीर्घ, (पृथु ) विस्तृत, ( पार्थिवम् ) पृथिवीमय, वा पृथिवी पर बना हुआ (सद्म ) घर है ( ते ) वे ( रुद्रासः ) दुष्टों को दण्ड देकर रुलाने हारे, सज्जनों को उत्तम उपदेश करने हारे वीर और विद्वान् जन ( यथा ) जिस प्रकार ( सुमखाः) उत्तम यज्ञशील ( अग्नयः ) अग्नियों के तुल्य ( तुविद्युम्नाः ) बहुत प्रकाशमान् होकर ( एवयामरुत् ) रथादि साधनों से जाने वाले वीर पुरुषों तथा ज्ञान मार्गों से जाने वाले विद्वान् पुरुषों की रक्षा करे उसी प्रकार वे भी हमारी रक्षा करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    एवयामरुद्रात्रेय ऋषिः । मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १ अति जगती । २, ८ स्वराड् जगती। ३, ६, ७ भुरिग् जगती । ४ निचृज्जगती । ५, ९ विराड् जगती॥ नवर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    निष्पाप दीर्घजीवन

    पदार्थ

    [१] (ते) = वे प्राण (रुद्रास:) = [रुत् द्र] सब रोगों का द्रावण करनेवाले हैं। (सुमखा:) = उत्तम यज्ञोंवाले हैं। प्राणसाधना से शरीर नीरोग बनता है और हमारी वृत्ति यज्ञों के करने की होती है। इस प्रकार नीरोग यज्ञशील बनकर हम यथा (अग्नयः) = अग्नियों के समान होते हैं। (तुविद्युम्नाः) = ये प्राण प्रभूत = ज्योतिवाले हैं। प्राणसाधना से बुद्धि की तीव्रता होकर ज्ञान वृद्धि होती है। ऐसे ये प्राण (एवयामरुत्) [तं] = मार्ग पर चलनेवाले इस प्राणसाधक को (अवन्तु) = रक्षित करें। [२] वे प्राण इस एवयामरुत् की रक्षा करें, (येषाम्) = जिनके (अज्मेषु) = गमनों में, रेचक व पूरक प्राणायामों में गति के होने पर यह (पार्थिवं सद्म) = पार्थिव शरीर (दीर्घम्) = दीर्घकाल तक (पृथु) = विस्तृत शक्तियोंवाला होता हुआ (पप्रथे) = विस्तृत होता है। इन (अद्भुतैनसाम्) = [अभूत पापानां] पापशून्य प्राणों के मार्गों में (महः शर्धांसि) = महान् बल (आ) = [गच्छन्ति ] प्राप्त होते हैं। प्राणसाधना से जीवन निष्पाप व शक्ति-सम्पन्न बनता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना के होने पर हमारा जीवन 'नीरोग, यज्ञमय, प्रभूत-ज्योतिवाला, तेजस्वी ' बनता है। हम निष्पाप दीर्घजीवन को प्राप्त करते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे अग्नीप्रमाणे पापनाशक, सत्यप्रकाशक, दुष्टांना रडविणारे, श्रेष्ठांचे पालक असतात तीच अधिक कीर्तिमान असतात. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Heroes of the winds, scholars of the middle order, dispensers of justice and punishment, performers of holy creative actions, commanding power and glory like flames of fire may protect and promote us and the sagely scholar of vision and dynamic performance. Wide and lofty grows the earthly abode of humanity by virtue of those whose grandeur grows high and onslaughts grow terrible in the battles against the evil and wickedness of unimaginable order.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The character of deserving persons to be honored is defined.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! may the Rudra Brahmacharis (who have observed Brahmacharya up to the age of 44 years), who are performers of good Yajnas and just with splendid brilliancy like fires, endowed with much wealth and good reputation, be our protectors. They are the noble persons whom none can suspect of sin. In the battles with great sinners, their strength is manifested and their great and spacious dwelling place becomes famous.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons only become glorious and renowned who like fires; are destroyers of sins, illuminators of truth, punishers of the wicked making them to weep and protectors of the righteous men.

    Foot Notes

    (रुद्रास:) मध्यमा विद्वास: । = Highly learned persons of middle grade, observing Brahmacharya up to the age of 44 years, the first grade being of those who observed Brahamcharya upto the age of 48 years known as Adityas. ( अज्मेषु) अजन्ति गच्छन्ति येषु संङ्ग्रामसु । अज्मेति संग्रामनाम (NG_2, 17)। = In the battles. (सुमखाः) शोभनन्यायाचरणयज्ञानुष्ठातारःमख इति यज्ञ नाम (NG 3, 17 ) मख इत्येतद् यज्ञनामधेयं छिद्रप्रतिबन्धसामर्थ्यात् । छिद्र ं खमित्युक्त तस्य मेति प्रतिबन्धः । मा यज्ञं छिद्रं करिष्यतीति । ( गोपथ ब्राह्मणे ) 1, 2,5) इति बहुनाम (NG 3, 1) = Performers of Yajnas and just . ( तुविद्युम्ना) बहुधनयशोन्विता । घुम्नम् इति धननाम (NG 2,10 ) धुम्नं द्योततेर्यशोवा अन्नं वा (NKT 5, 1, 5)। = Endowed with much wealth and good reputation.

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