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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 19/ मन्त्र 12
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    जनं॑ वज्रि॒न्महि॑ चि॒न्मन्य॑मानमे॒भ्यो नृभ्यो॑ रन्धया॒ येष्वस्मि॑। अधा॒ हि त्वा॑ पृथि॒व्यां शूर॑सातौ॒ हवा॑महे॒ तन॑ये॒ गोष्व॒प्सु ॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जन॑म् । व॒ज्रि॒न् । महि॑ । चि॒त् । मन्य॑मानम् । ए॒भ्यः । नृऽभ्यः॑ । र॒न्ध॒य॒ । येषु॑ । अस्मि॑ । अध॑ । हि । त्वा॒ । पृ॒थि॒व्याम् । शूर॑ऽसातौ । हवा॑महे । तन॑ये । गोषु॑ । अ॒प्ऽसु ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जनं वज्रिन्महि चिन्मन्यमानमेभ्यो नृभ्यो रन्धया येष्वस्मि। अधा हि त्वा पृथिव्यां शूरसातौ हवामहे तनये गोष्वप्सु ॥१२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जनम्। वज्रिन्। महि। चित्। मन्यमानम्। एभ्यः। नृऽभ्यः। रन्धय। येषु। अस्मि। अध। हि। त्वा। पृथिव्याम्। शूरऽसातौ। हवामहे। तनये। गोषु। अप्ऽसु ॥१२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 19; मन्त्र » 12
    अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे वज्रिन् राजंस्त्वमेभ्यो नृभ्यस्तं महि मन्यमानं जनं रन्धयाऽधा येषु शूरसातावहमस्मि तं रक्षा, हि पृथिव्यां गोष्वप्सु तनये यं त्वा हवामहे स त्वं चिदस्मान्त्सत्कुरु ॥१२॥

    पदार्थः

    (जनम्) (वज्रिन्) प्रशस्तशस्त्रास्त्रधारिन् (महि) महान्तम् (चित्) अपि (मन्यमानम्) अभिमानिनम् (एभ्यः) (नृभ्यः) सुशिक्षितेभ्यो नायकेभ्यः (रन्धया) हिंसय। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (येषु) (अस्मि) (अधा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हि) यतः (त्वा) त्वाम् (पृथिव्याम्) विस्तीर्णायां भूमौ (शूरसातौ) शूराः सनन्ति विभजन्ति यस्मिन्त्संग्रामे तस्मिन् (हवामहे) आदद्महि (तनये) अपत्याय (गोषु) पृथिवीषु धनेषु वा (अप्सु) जलेषु प्राणेषु वा ॥१२॥

    भावार्थः

    हे राजजना यो मिथ्याभिमानी सत्पुरुषान् पीडयेत्तं दण्डयत, युद्धविद्यया सर्वेषां रक्षणं विधत्त यतो भूमौ युष्माकं प्रशंसा प्रसिद्धा भवेत् ॥१२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (वज्रिन्) अच्छे शस्त्र और अस्त्र के धारण करनेवाले राजन् ! आप (एभ्यः) इन (नृभ्यः) उत्तम प्रकार शिक्षित अग्रणी मनुष्यों के लिये उस (महि) महान् (मन्यमानम्) अभिमान करनेवाले (जनम्) मनुष्य का (रन्धया) नाश करिये और (अधा) इसके अनन्तर (येषु) जिनके निमित्त (शूरसातौ) शूरवीर विभक्त होते हैं जिस संग्राम में उसमें (अस्मि) हूँ उसकी रक्षा कीजिये (हि) जिससे (पृथिव्याम्) विस्तीर्ण भूमि में (गोषु) पृथिवियों वा धनों में और (अप्सु) जलों वा प्राणों में (तनये) सन्तान के लिये जिन (त्वा) आपको (हवामहे) स्वीकार करते हैं, वह आप (चित्) भी हम लोगों का सत्कार कीजिये ॥१२॥

    भावार्थ

    हे राजसम्बन्धी जनो ! जो मिथ्या अभिमान करनेवाला जन श्रेष्ठ पुरुषों को पीड़ा देवे, उसको दण्ड दीजिये और युद्धविद्या से सम्पूर्ण जनों का रक्षण करिये, जिससे भूमि में आप लोगों की प्रशंसा प्रसिद्ध होवे ॥१२॥

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    विषय

    अभ्युदयादि । प्रजा की नाना कामनाएं ।

    भावार्थ

    हे ( वज्रिन्) शत्रुओं के वर्जन करने में समर्थ ! अस्त्र बल के स्वामिन् ! एवं हे अज्ञान के वर्जन में समर्थ ज्ञान के पालक ! मैं (येषु अस्मि) जिनके बीच में रहता हूं (एभ्यः नृभ्यः) उन उत्तम जनों के हित के लिये ( मन्यमानं जनं ) अभिमान करने हारे पुरुष को ( रन्धय ) वश कर और उसी प्रकार ( महिचित् ) बड़े भारी, पूजनीय (मन्यमानं ) अन्यों से मान आदर पाने योग्य ( जनं ) उत्तम मनुष्य को ( रंधयः ) अच्छी प्रकार आदर सत्कारपूर्वक आराधना कर । ( अध हि ) और हम ( पृथिव्याम् ) इस भूमि पर ( शूर-सातौ ) शूरवीरों के एकत्र होने योग्य महासंग्राम में ( तनये, गोषु, अप्सु ) पुत्र, गौ आदि पशु और प्राणों के निमित्त हम ( त्वा हवामहे ) तुझे प्राप्त करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्द:- १, ३, १३ भुरिक्पंक्ति: । ९ पंक्तिः । २, ४,६,७ निचृत्त्रिष्टुप् । ५, १०, ११, १२ विराट् त्रिष्टुप् ॥ ८ त्रिष्टुप्॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    उत्तम 'सन्तान, इन्द्रियाँ व कर्म'

    पदार्थ

    [१] एक व्यक्ति अपने सारे परिवार व समाज के कल्याण की कामना करता हुआ प्रार्थना करता है कि हे (वज्रिन्) = वज्रहस्त प्रभो! (येषु अस्मि) = जिन लोगों में मैं भी एक सदस्य हूँ, (एभ्यः नृभ्यः) = इन लोगों के लिए, इनके रक्षण के लिए उस (जनम्) = मनुष्य को (रन्धया) = वशीभूत करिए जो कि (चित्) = निश्चय से (महि मन्यमानम्) = बहुत ही अभिमान करता है। अभिमान के कारण जो औरों की परेशानी का कारण बनता है, उसको वशीभूत करके आप सबका कल्याण करिये । [२] (अधा) = अब (हि) = निश्चय से (त्वा) = आपको (पृथिव्याम्) = इस पृथिवी पर, इस शरीर में निवास करते हुए (शूंरसातौ) = शूरों से सम्भजनीय संग्राम में (हवामहे) = पुकारते हैं जिससे (तनये) = उत्तम सन्तानों को हम प्राप्त कर सकें [= उत्तम तनयों के निमित्त] (गोषु) = उत्तम इन्द्रियों के निमित तथा अप्सु उत्तम कर्मों के निमित्त हम आपको पुकारते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ– हे प्रभो ! इस जीवन में हम किसी अभिमानी पुरुष से दब न जायें। जीवन-संग्राम में आपका स्मरण करते हुए उत्तम सन्तानों, इन्द्रियों व कर्मों को प्राप्त करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजजनांनो ! जो मिथ्या अभिमान करणारा माणूस श्रेष्ठ पुरुषांना त्रास देत असेल तर त्याला दंड द्या व युद्धविद्येने संपूर्ण लोकांचे रक्षण करा, ज्यामुळे जगात तुमची प्रशंसा व्हावी. ॥ १२ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O lord of the thunderbolt of power, justice and punishment, humble that man who proudly holds himself as the greatest and mightiest against these people among whom I live and justify my existence. And now, O lord, for the sake of these very people on earth and in the battles of the brave for victory, we invoke, invite and celebrate you among our children, our cows, our lands and waters, and in the onward flow of our life and progress.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    More about the people is mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king ! wielder of the thunderbolt- like good arms and missiles, smite down this mighty and haughty person for the welfare of the well-educated and cultured leaders and protect those in the battle (where heroes are divided) among whom I am also one. We call on you on earth, for wealth and kine for the welfare of our children and safety of our Pranas (live) or purity of waters.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O king and officers of the State ! punish that person who being haughty, troubles good men. Protect all with the knowledge of military science, so that you may have good reputation everywhere on the face of the earth.

    Foot Notes

    (शूरसातौ) शूरां सनन्ति विभजन्ति यस्मिन्त्संग्रामे तस्मिन् । शूरसातौ इति संग्रामनाम (NG 2, 17 )। = In the battle where heroes are divided in two parties. (नृभ्यः) नृभ्यस्सुशिक्षितेभ्यो नायकेभ्यः । नी-प्रापणे (भ्वा०) नृत्यन्तीतिनरः नेतारः नायका वा । = Well educated and cultured leaders. (अप्सु) जलेषु प्राणेषु वा । प्रापो वै प्राणाः भेषजम् (काण्व शतपथे 4,8,2,2)। = In waters or Pranas. (रन्धया) हिंसया रध-हिंसासंराध्योः (दिवा०) अत्रहिन्सार्थ। = Through violence.

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