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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 49/ मन्त्र 13
    ऋषिः - ऋजिश्वाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यो रजां॑सि विम॒मे पार्थि॑वानि॒ त्रिश्चि॒द्विष्णु॒र्मन॑वे बाधि॒ताय॑। तस्य॑ ते॒ शर्म॑न्नुपद॒द्यमा॑ने रा॒या म॑देम त॒न्वा॒३॒॑ तना॑ च ॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । रजां॑सि । वि॒ऽम॒मे । पार्थि॑वानि । त्रिः । चि॒त् । विष्णुः॑ । मन॑वे । बा॒धि॒ताय॑ । तस्य॑ । ते॒ । शर्म॑न् । उ॒प॒ऽद॒द्यमा॑ने । रा॒या । म॒दे॒म॒ । त॒न्वा॑ । तना॑ । च॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो रजांसि विममे पार्थिवानि त्रिश्चिद्विष्णुर्मनवे बाधिताय। तस्य ते शर्मन्नुपदद्यमाने राया मदेम तन्वा३ तना च ॥१३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। रजांसि। विऽममे। पार्थिवानि। त्रिः। चित्। विष्णुः। मनवे। बाधिताय। तस्य। ते। शर्मन्। उपऽदद्यमाने। राया। मदेम। तन्वा। तना। च ॥१३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 49; मन्त्र » 13
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं ज्ञातव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यो विष्णुर्बाधिताय मनवे पार्थिवानि रजांसि त्रिश्चिद् विममे तस्य सम्बन्धे त उपदद्यमाने शर्मन् शर्मणि तना राया तन्वा च सह वयं मदेम ॥१३॥

    पदार्थः

    (यः) (रजांसि) लोकान् (विममे) रचयति (पार्थिवानि) पृथिव्यां भवानि (त्रिः) त्रिवारम् (चित्) अपि (विष्णुः) यो वेवेष्टि स जगदीश्वरः (मनवे) मनुष्याय (बाधिताय) पीडिताय (तस्य) (ते) तव (शर्मन्) शर्म्मणि गृहे (उपदद्यमाने) उपादीयमाने (राय) धनेन (मदेम) आनन्देम (तन्वा) शरीरेण (तना) विस्तृतेन (च) ॥१३॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यो जगदीश्वरः सर्वं जगन्निर्माय मनुष्याद्युपकारं करोति तस्याश्रयेणैव वयं धनवन्तश्चिरायुषो भवेम ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या जानने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यः) जो (विष्णुः) चराचर में प्रवेश होता वह जगदीश्वर (बाधिताय) पीड़ित (मनवे) मनुष्य के लिये (पार्थिवानि) पृथिवी में सिद्ध हुए (रजांसि) लोकों को (त्रिः) तीन वार (चित्) ही (विममे) रचता है (तस्य) उसके सम्बन्ध में (ते) आपके (उपदद्यमाने) समीप ग्रहण किये (शर्मन्) घर में (तना) विस्तृत (राया) धन (तन्वा, च) और शरीर के साथ हम लोग (मदेम) आनन्दित हों ॥१३॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो जगदीश्वर सब जगत् का निर्माण करके मनुष्यादिकों का उपकार करता है, उसके आश्रय से ही हम लोग धनवान् और बहुत आयुवाले हों ॥१३॥

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    विषय

    व्यापक प्रभु की स्तुति प्रार्थना ।

    भावार्थ

    ( यः ) जो ( विष्णुः ) व्यापक परमेश्वर (बाधिताय मनवे ) कर्म बन्धनों से पीड़ित मनुष्य के मनन, ज्ञान वाले, चेतना से युक्त जीवगण के उपकार के लिये ( त्रिः चित् पार्थिवानि रजांसि ) तीनों पार्थिव आदि लोक (वि ममे) विरचता है, हे प्रभो ! (तस्य ते ) उस तेरे (उपदद्य माने ) दिये गये ( शर्मन्) सुख, शरण में हम ( तना ) विस्तृतः (राया ) ऐश्वर्य और ( तन्वा ) शरीर से ( मदेम ) सुखी हों ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋजिश्वा ऋषिः ॥ विश्वे देवा देवता ॥ छन्दः - १, ३, ४, १०, ११ त्रिष्टुप् । ५,६,९,१३ निचृत्त्रिष्टुप् । ८, १२ विराट् त्रिष्टुप् । २, १४ स्वराट् पंक्तिः । ७ ब्राह्मयुष्णिक् । १५ अतिजगती । पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    राया तन्वा तना च

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो प्रभु (बाधिताय) = आसुरभावों से पीड़ित किये जानेवाले (मनवे) = मनुष्य के रक्षण के लिये (पार्थिवानि रजांसि) = इन पार्थिव लोकों को (चित्) = निश्चय से (त्रिः विममे) = 'इन्द्रियों, मन व बुद्धि' के क्रम से तीन बार (विममे) = विशिष्टरूप से बनाता है। अर्थात् इन्द्रियों, मन व बुद्धि रूप उपकरणों को प्राप्त कराके मनुष्यों का कल्याण करता है । [२] (तस्य) = उस (ते) = तेरे द्वारा (उपदद्यमाने) = दिये जा रहे (शर्यन्) = इस गृह में (राया) = साधनभूत धनों से (तन्वा) = शक्तियों के विस्तार से युक्त नीरोग शरीर से (च) = तथा (तना) = उत्तम सन्तानों के साथ (मदेम) = आनन्द का अनुभव करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमें उत्तम इन्द्रियों, मन व बुद्धि को प्राप्त कराते हैं। प्रभु से दिये गये इस गृह में हम 'धन, शक्ति विस्तार व उत्तम सन्तानों' के साथ आनन्दयुक्त होकर रहें ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जो जगदीश्वर सर्व जगाची निर्मिती करून माणसांवर उपकार करतो त्याच्या आश्रयानेच आम्ही सर्वांनी श्रीमंत व दीर्घायु व्हावे. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O lord all pervasive, Vishnu, who have created the three regions of the universe for humanity and sustain the three to save us from the limitations of suffering and darkness, we pray that with the abundant and expansive gifts of health and wealth we may live and enjoy life in this vast home given by you.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men know-is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! by the grace of that Omnipresent God, who creates the earth and other worlds for the benefit of the suffering man, let us enjoy happiness at our home under the shelter provided by Him and with vast wealth and our bodies.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men ! let us be wealthy and long lived by taking shelter in that God, who does great good to men and other living being by creating this world.

    Foot Notes

    (विष्णु:) यो वेषेष्टि स जगदीश्वरः । विषलृ- व्याप्तौ (जुहो.) । = That God who pervades this world. (तना) विस्तृतेन । तना इति धननाम (NG 2, 10 )। = Vast.

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