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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 54/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - पूषा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    समु॑ पू॒ष्णा ग॑मेमहि॒ यो गृ॒हाँ अ॑भि॒शास॑ति। इ॒म ए॒वेति॑ च॒ ब्रव॑त् ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । ऊँ॒ इति॑ । पू॒ष्णा । ग॒मे॒म॒हि॒ । यः । गृ॒हान् । अ॒भि॒ऽशास॑ति । इ॒मे । ए॒व । इति॑ । च॒ । ब्रव॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समु पूष्णा गमेमहि यो गृहाँ अभिशासति। इम एवेति च ब्रवत् ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। ऊँ इति। पूष्णा। गमेमहि। यः। गृहान्। अभिऽशासति। इमे। एव। इति। च। ब्रवत् ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 54; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैः कस्य सङ्गः सततं विधेय इत्याह ॥

    अन्वयः

    य इम इत्थमेवेति ब्रवदु च गृहानभिशासति तेन पूष्णा सह वयं सङ्गमेमहि ॥२॥

    पदार्थः

    (सम्) (उ) (पूष्णा) पुष्टिकर्त्रा वैद्येन सह (गमेमहि) गच्छेम (यः) (गृहान्) गृहस्थान् (अभिशासति) आभिमुख्ये शासनं करोति (इमे) (एव) (इति) (च) (ब्रवत्) ब्रूयात् ॥२॥

    भावार्थः

    यो विद्वान् निश्चयेन पृथिव्यादिविद्याऽध्यापनोपदेशाभ्यां हस्तक्रियया च साक्षात्कर्तुं शक्नुयाद् राजनीत्यादिव्यवहाराननुशिष्यात् तस्यैव विदुषः सङ्गं वयं सदा कुर्य्याम ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को किसका सङ्ग निरन्तर विधान करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (यः) जो विद्वान् (इमे) ये पदार्थ (एव) इसी प्रकार हैं (इति) ऐसा (ब्रवत्) कहे (उ) और (च) भी (गृहान्) गृहस्थों को (अभिशासति) सन्मुख होकर शिक्षा दे उस (पूष्णा) पुष्टि करनेवाले वैद्य विद्वान् जन के साथ हमलोग (सम्, गमेमहि) सङ्ग करें ॥२॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् जन निश्चय से पृथिव्यादि पदार्थों की विद्या को, अध्यापन और उपदेश से तथा हस्तक्रिया से साक्षात् कर सके तथा राजनीति आदि व्यवहारों की अनुकूलता से शिक्षा दे, उसी विद्वान् का सङ्ग हम लोग सदा करें ॥२॥

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    विषय

    उसका सत्संग ।

    भावार्थ

    ( यः ) जो ( गृहान् ) गृहस्थ स्त्री पुरुषों को ( अभि शासति ) साक्षात् उपदेश करता है और ( ब्रवत् च ) बतलाता है कि( इमे एव इति ) ये ही ठीक २ पदार्थ इस २ प्रकार से ग्रहण करने योग्य हैं ऐसे ( पूष्णा ) पोषक पालक के साथ ( सं गमेमहि ) हम सत्संग किया करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः - १, २, ४, ६, ७, ८, ९ गायत्री । ३, १० निचृद्गायत्री । ५ विराङ्गायत्री ।। षड्ज: स्वरः ।।

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    विषय

    गृहस्थ के कर्त्तव्यों का उपदेश

    पदार्थ

    [१] (पूष्णा) = उस पोषक प्रभु के द्वारा प्रभु के अनुग्रह से (उ) = निश्चयपूर्वक संगमेमहि हम उस विद्वान् के साथ संगत हों, (यः) = जो कि (गृहान् अभिशासति) = इन शरीर रूप गृहों का लक्ष्य करके उपदेश देता है अथवा जो (गृहान्) = गृहस्थ के कर्त्तव्यों के विषय में उपदेश देता है । [२] (च) = और उस विद्वान् के साथ हमारा सम्पर्क हो जो (इमे एव) = 'ये ही तुम्हारे जीवन के नियम हैं ' (इति ब्रवत्) = यह उपदेश देता है। = भावार्थ- प्रभु कृपा से हमारे साथ उन विद्वानों का सम्पर्क हो जो कि हमें गृहों को सुन्दर बनाने के नियमों का उपदेश करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो विद्वान निश्चयपूर्वक पृथ्वी इत्यादी पदार्थविद्येला जाणतो व अध्यापन आणि उपदेशाने हस्तक्रियेद्वारे साक्षात करू शकतो, तसेच राजनीती इत्यादी व्यवहाराचे शिक्षण देतो त्याच विद्वानाची आम्ही संगती धरावी. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let us go forward in life with that teacher, giver of nourishment for body, mind and soul, that family physician, who rules the home and governs home life, saying with confidence and definiteness: This is it, this way and not otherwise.

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