ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 54/ मन्त्र 5
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - पूषा
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
पू॒षा गा अन्वे॑तु नः पू॒षा र॑क्ष॒त्वर्व॑तः। पू॒षा वाजं॑ सनोतु नः ॥५॥
स्वर सहित पद पाठपू॒षा । गाः । अनु॑ । ए॒तु॒ । नः॒ । पू॒षा । र॒क्ष॒तु॒ । अर्व॑तः । पू॒षा । वाज॑म् । स॒नो॒तु॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पूषा गा अन्वेतु नः पूषा रक्षत्वर्वतः। पूषा वाजं सनोतु नः ॥५॥
स्वर रहित पद पाठपूषा। गाः। अनु। एतु। नः। पूषा। रक्षतु। अर्वतः। पूषा। वाजम्। सनोतु। नः ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 54; मन्त्र » 5
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
को राज्यं प्राप्नोतीत्याह ॥
अन्वयः
यः पूषा नो वाजं सनोतु यः पूषाऽर्वतो रक्षतु स पूषा नोऽनु गा एतु ॥५॥
पदार्थः
(पूषा) शिल्पिनां पुष्टिकर्त्ता (गाः) पृथिवीर्वाचो वा (अनु) (एतु) (नः) अस्मान् (पूषा) पोषकः (रक्षतु) (अर्वतः) अश्वानिवाऽग्न्यादीन् (पूषा) (वाजम्) धनम् (सनोतु) ददातु (नः) अस्मभ्यम् ॥५॥
भावार्थः
य आदावन्यानुपकरोति पदार्थान् संश्चिनोति स सर्वसहायेन भूमिराज्यादिकं प्राप्नोति ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
कौन राज्य को पाता है, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (पूषा) पुष्टि करनेवाला विद्वान् (नः) हमारे लिये (वाजम्) धन को (सनोतु) देवे जो (पूषा) पुष्टि करनेवाला (अर्वतः) घोड़ों के समान अग्न्यादि पदार्थों की (रक्षतु) रक्षा करे वह (पूषा) शिल्पिजनों की पुष्टि करनेवाला (नः) हम लोगों को तथा (अनु, गाः) अनुकूल पृथिवी और वाणियों को (एतु) प्राप्त हो ॥५॥
भावार्थ
जो पहिले औरों का उपकार करता वा पदार्थों को इकट्टा करता है, वह सब के सहाय से भूमि के राज्य आदि को प्राप्त होता है ॥५॥
विषय
missing
भावार्थ
( पूषा ) राज्य वा प्रजा का पोषक राजा, (गाः ) गौवों को गोपाल के समान ( नः गाः अन्वेतु ) हमारी भूमियों के अनुकूल होकर चले । वह ( अतः न रक्षतु ) अश्वों को सारथिवत् हमारी रक्षा करे । वह (पूषा नः वाजं सनोतु) सर्वपोषक अन्नवत् हमें ऐश्वर्य को न्यायपूर्वक विभक्त करे । इत्येकोनविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः - १, २, ४, ६, ७, ८, ९ गायत्री । ३, १० निचृद्गायत्री । ५ विराङ्गायत्री ।। षड्ज: स्वरः ।।
विषय
गौ-अश्व-वाज
पदार्थ
[१] (पूषा) = वह पोषक प्रभु (नः) = हमारी (गाः) = ज्ञानेन्द्रियरूप गौओं के (अनु एतु) = पीछे चलनेवाला, उनका रक्षण करनेवाला हो। (पूषा) = यह पोषक प्रभु हमारे (अर्वतः) = कर्मेन्द्रियरूप अश्वों का (रक्षतु) = रक्षण करे। [२] इस प्रकार ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों को विषयवासनाओं से आक्रान्त न होने देकर (पूषा) = पोषक प्रभु (नः) = हमारे लिये (वाजं सनोतु) = शक्ति को दें । वस्तुतः इन्द्रिय रक्षण ही शक्ति रक्षण का साधन है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमारी इन्द्रियों का रक्षण करते हुए हमें शक्ति-सम्पन्न बनायें। प्रभु की उपासना ही इन्द्रियों को वासनाओं से आक्रान्त नहीं होने देती और इस प्रकार उपासक को सशक्त बनाती है।
मराठी (1)
भावार्थ
जो प्रथम इतरांवर उपकार करतो किंवा पदार्थांना एकत्रित करतो तो सर्वांच्या मदतीने भूमीचे राज्य प्राप्त करतो. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Let Pusha, patron sustainer and promoter of artists, approve and support the development of lands, cows and words of knowledge. Let Pusha protect and promote horses and other modes of transport. Let Pusha create and provide food, energy and wealth of all kinds for us.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Who can achieve kingdom--is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
May that nourisher of the artists and artisans give us wealth, protect our horses and fire, electricity etc. which take us quickly to distant places and may be given lands and good speech agreeably.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Who gives priority to the welfare of others and collects articles gets land and wealth with the help of all.
Foot Notes
(पूषा) शिल्पिनां पुष्टिकर्ता। = The nourisher of the artists and artisans (अवर्त:) अश्वा निवाऽग्न्यादीन् । अर्वा इति (अश्वनाम) (NG 1,14)। = Fire electricity etc. which are like the rapid going horses. (वाजम) धनम | वज- गतौ । = Wealth. It appears that reference is made to inventors who on the basis of the technology developed by them, after getting Patent Rights from the government, amass great wealth. (Ed.)
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