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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 54/ मन्त्र 9
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - पूषा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पूष॒न्तव॑ व्र॒ते व॒यं न रि॑ष्येम॒ कदा॑ च॒न। स्तो॒तार॑स्त इ॒ह स्म॑सि ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पूष॑न् । तव॑ । व्र॒ते । व॒यम् । न । रि॒ष्ये॒म॒ । कदा॑ । च॒न । स्तो॒तारः॑ । ते॒ । इ॒ह । स्म॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूषन्तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन। स्तोतारस्त इह स्मसि ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूषन्। तव। व्रते। वयम्। न। रिष्येम। कदा। चन। स्तोतारः। ते। इह। स्मसि ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 54; मन्त्र » 9
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    के कस्मिन्नहिंस्राः स्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे पूषन् ! यस्य त इह स्तोतारो वयं स्मसि तस्य तव व्रते कदा चन न रिष्येम ॥९॥

    पदार्थः

    (पूषन्) पालक (तव) (व्रते) कर्मणि (वयम्) (न) (रिष्येम) हिंस्याम (कदा) (चन) अपि (स्तोतारः) विद्यास्तावकाः (ते) तव (इह) (स्मसि) ॥९॥

    भावार्थः

    ये सत्यविद्यानां प्रशंसका मनुष्याः स्युस्ते विद्वत्कर्मणि हिंसका न स्युः ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    कौन किसमें अहिंसक हों, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (पूषन्) पालन करनेवाले धर्मात्मन् ! जिस (ते) आपके (इह) इस संसार में (स्तोतारः) विद्या की स्तुति करनेवाले (वयम्) हम लोग (स्मसि) हैं उस (तव) आपके (व्रते) कर्म में (कदा, चन) कभी भी हम लोग (न, रिष्येम) नष्टकर्त्ता न होवें ॥९॥

    भावार्थ

    जो सत्यविद्याओं की प्रशंसा करनेवाले मनुष्य हों, वे विद्वानों के काम में हिंसा करनेवाले न हों ॥९॥

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (पूषन् ) पोषण करने वाले पालक ! ( तव व्रते ) तेरे काम में लगे हुए ( वयं ) हम ( कदा चन न रिष्येम ) कभी भी पीड़ित न हों । हम ( ते स्तोतारः ) तेरे गुणों वा विद्या आदि का कथन करते हुए ( इह ) इस राष्ट्र में ( स्मसि ) रहें ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः - १, २, ४, ६, ७, ८, ९ गायत्री । ३, १० निचृद्गायत्री । ५ विराङ्गायत्री ।। षड्ज: स्वरः ।।

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    विषय

    पूषा के व्रत में

    पदार्थ

    [१] हे (पूषन्) = पोषक प्रभो ! (तव व्रते) = आपकी प्राप्ति के साधन भूत 'जप-तप-ध्यान' आदि कर्मों में लगे हुए (वयम्) = हम कदाचन कभी भी (न रिष्येम) = वासना व्याघ्रों से हिंसित न किये जायें। इन कर्मों में लगे हुए हम कभी विषयों के शिकार न हों । [२] हे प्रभो ! (इह) = इस जीवन में हम (ते) = आपके (स्तोतारः स्मसि) = स्तवन करनेवाले हों । प्रभु स्तवन करते हुए वैसा ही बनने का प्रयत्न करें ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु प्राप्ति के लिए किये जानेवाले 'जप-तप-ध्यान' आदि कर्मों में हम प्रवृत्त रहें। सदा प्रभु स्तवन करते हुए प्रभु जैसा बनने के लिये यत्नशील हों।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे सत्य विद्येचे प्रशंसक असतील त्यांनी विद्वानांच्या कार्यात विघ्न आणू नये. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Lord of life, we are your devotees, celebrants here in life. Let us never suffer in the observance of your laws and discipline.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Who should be non-violent to whom is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O nourisher ! may we, who are admirers of true knowledge never resort to violence or harm your work, living under your protection.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those, who are admirers of men of true knowledge, should not harm or obstruct the work commenced by the enlightened persons.

    Translator's Notes

    The mantra is equally applicable to God who is nourisher of the whole world, 'May we never suffer harm living under the protection of God and being His devotees.

    Foot Notes

    (व्रते) कर्मणि । व्रतमिति कर्मनाम (NG 2, 1) व्रतमिति कर्मनाम निवृत्तिकर्म वारयतीति सत इदमभीतरद् व्रतमेतस्मादेव वृणातीति (NKT 2, 4, 13) = In good work. (स्तोतारः) विद्यास्तावकाः। = Admirers of true knowledge.

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