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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 54/ मन्त्र 8
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - पूषा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    शृ॒ण्वन्तं॑ पू॒षणं॑ व॒यमिर्य॒मन॑ष्टवेदसम्। ईशा॑नं रा॒य ई॑महे ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शृ॒ण्वन्त॑म् । पू॒षण॑म् । व॒यम् । इर्य॑म् । अन॑ष्टऽवेदसम् । ईशा॑नम् । रा॒यः । ई॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शृण्वन्तं पूषणं वयमिर्यमनष्टवेदसम्। ईशानं राय ईमहे ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शृण्वन्तम्। पूषणम्। वयम्। इर्यम्। अनष्टऽवेदसम्। ईशानम्। रायः। ईमहे ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 54; मन्त्र » 8
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैः कस्माद्धनं प्राप्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यथा वयमिर्यमनष्टवेदसमीशानं शृण्वन्तं पूषणं प्राप्य राय ईमहे तथैनं प्राप्य यूयं धनं याचध्वम् ॥८॥

    पदार्थः

    (शृण्वन्तम्) (पूषणम्) पुष्टिकर्त्तारम् (वयम्) (इर्यम्) प्रेरणीयम् (अनष्टवेदसम्) अनष्टविज्ञानधनम् (ईशानम्) ईशनशीलम् (रायः) (ईमहे) याचामहे ॥८॥

    भावार्थः

    यः सुपात्रकुपात्रयोर्विद्वदविदुषोर्धार्मिकाऽधार्मिकयोः परीक्षकः स्यात्तस्मादेव पुरुषार्थेन धनं प्राप्तव्यम् ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को किससे धन पाने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (वयम्) हम लोग (इर्यम्) प्रेरणा देने योग्य (अनष्टवेदसम्) अक्षतविज्ञानधन तथा (ईशानम्) ईश्वरता का शील रखने और (शृण्वन्तम्) सुनने और (पूषणम्) पुष्टि करनेवाले सज्जन विद्वान् को प्राप्त होकर (रायः) धनों को (ईमहे) माँगते हैं, वैसे इसको प्राप्त होकर तुम सब धन को माँगो ॥८॥

    भावार्थ

    जो सुपात्र और कुपात्र, विद्वान् और अविद्वान् तथा धार्मिक और अधार्मिक की परीक्षा करनेवाला हो, उसी के सकाश से पुरुषार्थ से धन पाना चाहिये ॥८॥

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    विषय

    उससे न्याय की याचना ।

    भावार्थ

    ( वयम् ) हम ( इर्यम् ) प्रजा को सन्मार्ग में चलाने वाले और स्वयं भी बड़ों द्वारा सन्मार्ग में प्रेरित, ( अनष्ट-वेदसम् ) ज्ञान और धन से सम्पन्न, ( ईशानं ) राष्ट्र पर प्रभुत्व करने में समर्थ, ( शृण्वन्तं ) प्रजा के न्याय्य कथन को सुनने वाले ( पूषणं ) सर्वपोषक राजा से ( रायः ) नाना ऐश्वर्यों की ( ईमहे ) याचना करते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः - १, २, ४, ६, ७, ८, ९ गायत्री । ३, १० निचृद्गायत्री । ५ विराङ्गायत्री ।। षड्ज: स्वरः ।।

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    विषय

    'इर्य-अनष्टवेदस्-ईशान' प्रभु

    पदार्थ

    [१] (वयम्) = हम (शृण्वन्तम्) = हमारी प्रार्थनाओं को सुननेवाले (पूषणम्) = पोषक प्रभु से (रायः ईमहे) = धनों की याचना करते हैं। [२] उस प्रभु से धनों की याचना करते हैं जो (इर्यम्) = दारिद्र्य को दूर प्रेरित करनेवाले [भगानेवाले] हैं। (अनष्टवेदसम्) = अनष्ट धनोंवाले हैं और (ईशानम्) = सब धनों के स्वामी हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु से धनों की याचना करते हैं। प्रभु दारिद्र्य को दूर करनेवाले, अनष्ट धन व सब धनों के स्वामी हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो सुपात्र व कुपात्र, विद्वान व अविद्वान तसेच धार्मिक व अधार्मिक यांना ओळखणारा परीक्षक असेल त्याच्या साह्याने धन प्राप्त केले पाहिजे. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Pusha, lord of nourishment and growth, is listening, inspiring and all round ruler and guardian of indestructible wealth and knowledge. We pray to the lord for wealth and honour of permanent nature.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    From whom should men get money-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! as we solicit wealth having got a nourishing master, who is to be urged to do noble deeds only, who listens attentively to what we say and who has not lost the wealth, knowledge and wisdom, so you should also approach him and ask for wealth.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    We should get wealth with industriousness only from a discreet man, who can truly distinguish between a person, who deserves and who does not deserve, a highly learned man and an ignorant man, a righteous and an un-righteous person.

    Foot Notes

    (इयंम्) प्र ेरणीयम् । इर-गतौ जम्पने च (अदा.) अत्र गत्यर्थः । = Worthy of being urged. (अनष्टवेदसम्) अनष्टविज्ञानधनम् ।वेद इति धननाम (NG 2, 10) विदलु-लाभे (तुदा) इति धातो विद-ज्ञाने (अदा.) तस्माद् वेदो ज्ञानम् अत्रोभयार्थ ग्रहणम् | = To him who has not lost the wealth, knowledge and wisdom.

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