ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 103/ मन्त्र 6
गोमा॑यु॒रेको॑ अ॒जमा॑यु॒रेक॒: पृश्नि॒रेको॒ हरि॑त॒ एक॑ एषाम् । स॒मा॒नं नाम॒ बिभ्र॑तो॒ विरू॑पाः पुरु॒त्रा वाचं॑ पिपिशु॒र्वद॑न्तः ॥
स्वर सहित पद पाठगोऽमा॑युः । एकः॑ । अ॒जऽमा॑युः । एकः॑ । पृश्निः॑ । एकः॑ । हरि॑तः । एकः॑ । ए॒षा॒म् । स॒मा॒नम् । नाम॑ । बिभ्र॑तः । विऽरू॑पाः । पु॒रु॒ऽत्र । वाच॑म् । पि॒पि॒शुः॒ । वद॑न्तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
गोमायुरेको अजमायुरेक: पृश्निरेको हरित एक एषाम् । समानं नाम बिभ्रतो विरूपाः पुरुत्रा वाचं पिपिशुर्वदन्तः ॥
स्वर रहित पद पाठगोऽमायुः । एकः । अजऽमायुः । एकः । पृश्निः । एकः । हरितः । एकः । एषाम् । समानम् । नाम । बिभ्रतः । विऽरूपाः । पुरुऽत्र । वाचम् । पिपिशुः । वदन्तः ॥ ७.१०३.६
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 103; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
उक्तवचस एकत्वमधस्तेन मन्त्रेण सम्यग् निरूप्यते।
पदार्थः
(एषाम्) एषां जलजन्तूनां मध्ये (एकः, गोमायुः) कश्चित् गौरिव शब्दं करोति तथा (एकः, अजमायुः) कश्चिदजवन्नदति (पृश्निः, एकः) कश्चित्तेषु पृश्निवर्णः (एकः हरितः) कश्चिद्धरितवर्णः तथा (पुरुत्रा, विरूपाः) विविधवर्णा विविधाकृतय एते (समानम्, नाम, बिभ्रतः) एकमेव नाम धारयन्तः (वाचम्, वदन्तः) समानामेव वाचं ब्रुवन्तः (पिपिशुः) आविर्भवन्ति ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
उक्त वाणी के एकत्व को निम्नलिखित मन्त्र से भलीभाँति वर्णन करते हैं।
पदार्थ
(एषाम्) इन जलजन्तुओं में (एकः, गोमायुः) एक तो गौ के समान स्वर से बोलता है और (एकः, अजमायुः) दूसरा कोई अजा के समान स्वरवाला है और (पृश्निः, एकः) कोई-कोई विचित्र वर्णवाला और (एकः, हरितः) कोई हरित वर्ण का है, तथा (पुरुत्रा) बहुत से भेदवाले छोटे-बड़े (विरूपाः) अनेक रूपवाले होकर भी (समानं, नाम, बिभ्रतः) एक नाम को धारण करते हुए (वाचम्, वदन्तः) और एक ही वाणी को बोलते हुए (पिपिशुः) प्रकट होते हैं ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि जिस प्रकार जन्तु भी स्वरभेद, आकारभेद और वर्णभेद रखते हुए जातिभेद और वाणीभेद नहीं रखते, इस प्रकार हे मनुष्यों ! तुमको प्राकृत जन्तुओं से शिक्षा लेकर भी वाणी का एकत्व और जाति का एकत्व दृढ़ करना चाहिये। जो पुरुष वाणी के एकत्व को और जाति के एकत्व को दृढ़ नहीं रख सकता, वह अपने मनुष्यत्व को भी नहीं रख सकता ॥६॥
विषय
मण्डूकों के दृष्टान्त से ब्रह्मज्ञानी, तपस्वी और नाना विद्याओं के विद्वानों के कर्त्तव्यों का वर्णन ।
भावार्थ
( एषाम् ) इन विद्वान् ब्राह्मणों में से ( एकः ) एक (गो-मायु: ) वेद वाणियों को उत्तम रीति से प्रवचन करने में समर्थ होता है । ( एकः अज-मायुः ) एक विद्वान् अजन्मा, आत्मा और परमेश्वर के विषय में प्रवचन-उपदेश करने में समर्थ होता है । ( एक पृश्नि: ) एक प्रश्नोत्तर करने और उनका समाधान करने में कुशल होता है। ( एक हरितः ) इनमें से एक ज्ञानों को ग्रहण करने में कुशल होता है। ये सब ( समानं ) एक समान ( नाम ) 'ब्राह्मण' नाम धारण करते हुए भी ( वि-रूपाः ) विविध रूप विद्याओं को धारण करते हैं । वे ( वदन्तः ) उपदेश-प्रवचन करते हुए ( पुरुत्रा वाचं पिपिशुः ) नाना प्रकार से वाणी को प्रकट करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ मण्डूका देवताः॥ छन्दः—१ आर्षी अनुष्टुप् । २, ६, ७, ८, १० आर्षी त्रिष्टुप्। ३, ४ निचृत् त्रिष्टुप्। ५, ९ विराट् त्रिष्टुप् ॥ तृचं सूक्तम्॥
विषय
विद्वानों की विभिन्न श्रेणियाँ
पदार्थ
पदार्थ - (एषाम्) = इन विद्वानों में से (एकः) = एक (गो-मायुः) = वेदवाणियों के प्रवचन में समर्थ होता है। (एकः अज-मायु:) = एक विद्वान् अजन्मा, परमेश्वर के प्रवचन में समर्थ है। एक (पृश्निः) = एक प्रश्नोत्तर करने में कुशल है। एक (हरितः) = एक ज्ञानों को ग्रहण करने में कुशल है। ये सब (समानं) = एक समान (नाम) ='ब्राह्मण' 'विद्वान्' नाम धारण करते हुए भी (वि-रूपाः) = विविध विद्याओं को धारण करते हैं। वे (वदन्तः) = प्रवचन करते हुए (पुरुत्रा वाचं पिपिशुः) = नाना प्रकार से वाणी को प्रकट करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र में कुछ विद्वान् वेदवाणी का प्रवचन करें, कुछ योगी बनकर योग सिखावें तथा परमात्मा का साक्षात्कार करावें, कुछ शोध करें, कुछ ज्ञान ग्रहण करके विभिन्न विद्याओं पर प्रयोग करें। इस प्रकार राष्ट्र में विविध विद्याओं का प्रचार होकर राष्ट्र समृद्ध बनेगा।
इंग्लिश (1)
Meaning
One of them croaks like a cow, another like a goat, one of them is spotted, another is green. Of different voice and colour, they bear the same one name, the “manduka”, the celebrant, but they seem to communicate in many different languages.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की ज्या प्रकारे जंतूही स्वरभेद, आकारभेद व वर्णभेद राखूनही जातिभेद व वाणीभेद ठेवत नाहीत त्या प्रकारे हे माणसांनो! तुम्ही प्राकृत जंतूपासून शिक्षण घेऊन वाणी व जातीची एकता दृढ करा. जो पुरुष वाणीचे एकत्व व जातीचे एकत्व दृढ करीत नाही तो माणुसकीही राखू शकत नाही. ॥६॥
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