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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 103 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 103/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मण्डूकाः छन्दः - आर्षीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ब्रा॒ह्म॒णास॑: सो॒मिनो॒ वाच॑मक्रत॒ ब्रह्म॑ कृ॒ण्वन्त॑: परिवत्स॒रीण॑म् । अ॒ध्व॒र्यवो॑ घ॒र्मिण॑: सिष्विदा॒ना आ॒विर्भ॑वन्ति॒ गुह्या॒ न के चि॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रा॒ह्म॒णासः॑ । सो॒मिनः॑ । वाच॑म् । अ॒क्र॒त॒ । ब्रह्म॑ । कृ॒ण्वन्तः॑ । प॒रि॒व॒त्स॒रीण॑म् । अ॒ध्व॒र्यवः॑ । घ॒र्मिणः॑ । सि॒स्वि॒दा॒नाः । आ॒विः । भ॒व॒न्ति॒ । गुह्याः॑ । न । के । चि॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्राह्मणास: सोमिनो वाचमक्रत ब्रह्म कृण्वन्त: परिवत्सरीणम् । अध्वर्यवो घर्मिण: सिष्विदाना आविर्भवन्ति गुह्या न के चित् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्राह्मणासः । सोमिनः । वाचम् । अक्रत । ब्रह्म । कृण्वन्तः । परिवत्सरीणम् । अध्वर्यवः । घर्मिणः । सिस्विदानाः । आविः । भवन्ति । गुह्याः । न । के । चित् ॥ ७.१०३.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 103; मन्त्र » 8
    अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोमिनः, ब्राह्मणासः) सौम्यचित्ता ब्राह्मणाः (परिवत्सरीणम्) संवत्सरान्ते (ब्रह्म, कृण्वन्तः) ब्रह्मयशः प्रकाशयन्तः (वाचम्, अक्रत) वेदमुच्चारयेयुः (केचित्, गुह्या, अध्वर्यवः) केचिदेकाकिनो व्रतं धारयन्तः (घर्मिणः, सिस्विदानाः) घर्मेण स्विन्नशरीरा अपि (न, आविर्भवन्ति)  बहिर्भूताः पराङ्मुखा न भवन्ति ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोमिनः, ब्राह्मणासः) सौम्यचित्तवाले ब्राह्मण (परिवत्सरीणम्) वर्ष के उपरान्त (ब्रह्म, कृण्वन्तः) ब्रह्म के यश को प्रकाशित करते हुए (वाचम्, अक्रत) वेदवाणी का उच्चारण करते हैं, (केचित्, गुह्याः, अध्वर्यवः) कोई एकान्त स्थल में बैठे व्रत करते हुए ब्राह्मण (घर्मिणः, सिस्विदानाः) उष्णता से सिक्त शरीर होकर भी (न, आविर्भवन्ति) बहिर्भूत नहीं होते ॥८॥

    भावार्थ

    वेदव्रती ब्राह्मण ब्रह्म के यश को गायन करने के लिये एकान्त स्थान में बैठें और वे शीतोष्णादि द्वन्द्वों को सहते हुए तितिक्षु और तपस्वी बन कर अपने व्रत को पूर्ण करें ॥८॥

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    विषय

    मण्डूकों के दृष्टान्त से ब्रह्मज्ञानी, तपस्वी और नाना विद्याओं के विद्वानों के कर्त्तव्यों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( सोमिनः ब्राह्मणासः ) सोमयाग करने वाले वा अपने अधीन सोम, ब्रह्मचारियों को शिक्षा देने वाले विद्वान् ब्रह्मवेत्ता लोग ( परि वत्सरीणम् ) वर्ष भर ( ब्रह्म कृण्वन्तः ) वेद का उपदेश करते हुए ( वाचम् अक्रत ) उत्तम प्रवचन करें। ( अध्वर्यवः ) यज्ञ-कर्त्ता ( धर्मिणः ) सूर्यवत् तेजस्वी या धर्म, प्रवर्ग्येष्टि करने हारे ( सिष्विदानाः ) स्वेद युक्त होकर भी ( केचित् ) कुछ विद्वान् लोग ( गुह्या न ) गुहा में बैठे तपस्वियों के समान ( गुह्याः ) गुहा, बुद्धि ज्ञान या हृदय-गुहा में ही रमण करते हुए ( आविर्भवन्ति ) प्रकट होते हैं या ( न आविर्भवन्ति ) नहीं प्रकट होते हैं । वे गुप्त प्रभाव से ही रहते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ मण्डूका देवताः॥ छन्दः—१ आर्षी अनुष्टुप् । २, ६, ७, ८, १० आर्षी त्रिष्टुप्। ३, ४ निचृत् त्रिष्टुप्। ५, ९ विराट् त्रिष्टुप् ॥ तृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    वर्षभर वेदोपदेश

    पदार्थ

    पदार्थ- (सोमिनः ब्राह्मणासः) = सोमयाग करनेवाले, वा ब्रह्मचारियों को शिक्षा देनेवाले विद्वान् लोग (परि वत्सरीणम्) = वर्ष भर (ब्रह्म कृण्वन्तः) = वेदोपदेश करते हुए (वाचम् अक्रत) = प्रवचन करें। (अध्वर्यवः) = यज्ञकर्त्ता (घर्मिणः) = सूर्यवत् तेजस्वी, (सिष्विदाना:) = स्वेदयुक्त होकर भी (केचित्) = कुछ विद्वान् लोग (गुह्याः न) = गुहा में बैठे तपस्वियों के तुल्य (गुह्या:) = बुद्धि, ज्ञान या हृदय- गुहा में रमण करते हुए (आविर्भवन्ति) = प्रकट होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- विद्वान् लोग अपने ब्रह्मचारी शिष्यों को वर्षभर वेदोपदेश करते रहें। यज्ञ कराते रहें तथा गुफाओं में बैठकर तपस्या करते हुए ब्रह्म को भी जानें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Brahmanas engaged in the yearly soma yajna for peace and harmony conduct the yajna in honour of the Supreme Brahman and chant the Vedic mantras at the end of the first year. The priests facing the fire and soaked in sweat emerge as if from seclusion in the cave.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    वेदव्रती ब्राह्मणांनी ब्रह्माच्या यशाचे गान गाण्यासाठी एकांत स्थानी बसावे व शीतोष्ण इत्यादी द्वंद्व सहन करीत तितिक्षु व तपस्वी बनून आपले व्रत पूर्ण करावे. ॥८॥

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