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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 2/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - आप्रियः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ भार॑ती॒ भार॑तीभिः स॒जोषा॒ इळा॑ दे॒वैर्म॑नु॒ष्ये॑भिर॒ग्निः। सर॑स्वती सारस्व॒तेभि॑र॒र्वाक् ति॒स्रो दे॒वीर्ब॒र्हिरेदं स॑दन्तु ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । भार॑ती । भर॑तीभिः । स॒ऽजोषाः॑ । इळा॑ । दे॒वैः । म॒नु॒ष्ये॑भिः । अ॒ग्निः । सर॑स्वती । सा॒र॒स्व॒तेभिः॑ । अ॒र्वाक् । ति॒स्रः । दे॒वीः । ब॒र्हिः । आ । इ॒दम् । स॒द॒न्तु॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ भारती भारतीभिः सजोषा इळा देवैर्मनुष्येभिरग्निः। सरस्वती सारस्वतेभिरर्वाक् तिस्रो देवीर्बर्हिरेदं सदन्तु ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। भारती। भारतीभिः। सऽजोषाः। इळा। देवैः। मनुष्येभिः। अग्निः। सरस्वती। सारस्वतेभिः। अर्वाक्। तिस्रः। देवीः। बर्हिः। आ। इदम्। सदन्तु ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 8
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स्त्रीपुरुषाः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! यथा भारतीभिर्भारती सजोषा देवैर्मनुष्येभिरिळा सारस्वतेभिस्सरस्वत्यर्वागग्निरिव शुद्धास्तिस्रो देवीरिदं बर्हिरा सदन्तु तथैव यूयं विद्वद्भिः सहाऽऽगच्छध्वम् ॥८॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (भारती) सद्यः शास्त्राणि धृत्वा सर्वस्य पालिका वागिव विदुषी (भारतीभिः) तादृशीभिर्विदुषीभिः (सजोषाः) समानप्रीतिसेविका (इळा) स्तोतुमर्हा (देवैः) सत्यवादिभिर्विद्वद्भिः (मनुष्येभिः) अनृतवादिभिर्जनैः । सत्यमेव देवा अनृतं मनुष्याः (शत०ब्रा०१.१.१.४)(अग्निः) पावक इव (सरस्वती) विज्ञानयुक्ता वाक् (सारस्वतेभिः) सरस्वत्यां कुशलैः (अर्वाक्) पुनः (तिस्रः) त्रिविधाः (देवीः) दिव्याः (बर्हिः) उत्तमं गृहं शरीरं वा (इदम्) प्रत्यक्षम् (सदन्तु) प्राप्नुवन्तु ॥८॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यदि यूयं प्रशस्तां वाणीं प्रज्ञां च प्राप्नुयुस्तर्हि सूर्य्यवत् सुप्रकाशिता भूत्वाऽस्मिञ्जगति कल्याणकरा भवथ ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर स्त्री-पुरुष कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! जैसे (भारतीभिः) तुल्य विदुषी स्त्रियों के साथ (भारती) शीघ्र शास्त्रों को धारण कर, वाणी के तुल्य सब की रक्षक विदुषी (सजोषाः) तुल्य प्रीति को सेवनेवाली (देवैः) सत्यवादी विद्वानों (मनुष्येभिः) और मिथ्यावादी मनुष्यों से (इळा) स्तुति के योग्य (सारस्वतेभिः) वाणी विद्या में कुशलों से (सरस्वती) विज्ञानयुक्त वाणी (अर्वाक्) पुनः (अग्निः) अग्नि के तुल्य शुद्ध (तिस्रः) तीन प्रकार की (देवीः) उत्तम स्त्रियाँ (इदम्) इस (बर्हिः) उत्तम घर वा शरीर को (आ, सदन्तु) अच्छे प्रकार प्राप्त हों, वैसे ही तुम लोग विद्वानों के साथ (आ) आओ ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! यदि तुम लोग प्रशंसित वाणी और बुद्धि को प्राप्त हो तो सूर्य के तुल्य प्रकाशित होकर इस जगत् में कल्याण करनेवाले होओ ॥८॥

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    विषय

    विदुषी देवियों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( भारती ) सब शास्त्रों को अपने में धारण करने वाली, सर्वपालक, विद्या माता के समान वेद वाणी ( भारतीभिः ) विदुषी स्त्रियों के साथ और ( इड़ा ) स्तुति योग्य वाणी ( मनुष्यैः देवैः ) साधारण मनुष्यों और विशेष विद्वानों के साथ और ( सरस्वती ) विज्ञान युक्त वाणी (सारस्वतेभिः ) विज्ञान युक्त वाणी के विद्वानों से ( सजोषाः ) समान प्रीतियुक्त हो । ( तिस्रः देवी: ) तीनों प्रकार की विदुषी स्त्रियां ( इदं बर्हिः सदन्तु ) इस वृद्धियुक्त राष्ट्र में वाक्, मन, प्राण शक्तियों के समान देह में ( अर्वाक् सदन्तु ) सबके समक्ष आदर प्राप्त करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि: ।। आप्रं देवता ॥ छन्दः – १, ९ विराट् त्रिष्टुप् । २, ४ त्रिष्टुप् । ३, ६, ७, ८, १०, ११ निचृत्त्रिष्टुप् । ५ पंक्तिः ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    भारती इडा सरस्वती

    पदार्थ

    ३.४.८ पर अर्थ द्रष्टव्य है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जर तुम्ही प्रशंसित वाणी व बुद्धी प्राप्त करून सूर्याप्रमाणे प्रकाशित झालात तर या जगाचे कल्याणकर्ते व्हाल. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May Bharati, goddess of world speech, knowledge and culture come. May Ila, goddess of divine speech, knowledge and grace come. May Sarasvati, mother dynamics of universal speech, knowledge and culture come. May the three divinities, loving, kind and gracious, come with the enlightened daughters of the earth, men and divines of enlightenment, and dedicated scholars of eternal and historical knowledge, come and grace our sacred seats of yajna. May Agni, lord omniscient, come and bless us in the soul.

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