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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 22/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    भूरि॒ हि ते॒ सव॑ना॒ मानु॑षेषु॒ भूरि॑ मनी॒षी ह॑वते॒ त्वामित्। मारे अ॒स्मन्म॑घव॒ञ्ज्योक्कः॑ ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भूरि॑ । हि । ते॒ । सव॑ना । मानु॑षेषु । भूरि॑ । म॒नी॒षी । ह॒व॒ते॒ । त्वाम् । इत् । मा । आ॒रे । अ॒स्मत् । म॒घ॒ऽव॒न् । ज्योक् । क॒रिति॑ कः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भूरि हि ते सवना मानुषेषु भूरि मनीषी हवते त्वामित्। मारे अस्मन्मघवञ्ज्योक्कः ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भूरि। हि। ते। सवना। मानुषेषु। भूरि। मनीषी। हवते। त्वाम्। इत्। मा। आरे। अस्मत्। मघऽवन्। ज्योक्। करिति कः ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 22; मन्त्र » 6
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किमेष्टव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मघवन् बहुविद्यैश्वर्ययुक्त ! यो मानुषेषु भूरि मनीषी ते सवना भूरि हवते ये हि त्वामित् स्तौति तं ह्यस्मदारे ज्योग्मा कः किन्तु सदाऽस्मत्समीपे रक्षेः ॥६॥

    पदार्थः

    (भूरि) बहूनि (हि) खलु (ते) तव (सवना) सवनानि यज्ञसाधककर्माण्यैश्वर्याणि कर्माणि प्रेरणानि वा (मानुषेषु) मनुष्येषु (भूरि) बहु (मनीषी) मेधावी (हवते) गृह्णाति स्तौति वा (त्वाम्) (इत्) एव (मा) (आरे) दूरे समीपे वा (अस्मत्) (मघवन्) बह्वैश्वर्ययुक्त (ज्योक्) निरन्तरम् (कः) कुर्याः ॥६॥

    भावार्थः

    यो हि मनुष्याणां मध्य उत्तमो विद्वानाप्तः परीक्षको भवेत्तमन्यानध्यापकांश्च सततं प्रार्थयेयुर्भवद्भिरस्माकं निकटे यो धार्मिको विद्वान् भवेत् स एव निरन्तरं रक्षणीयो यश्च मिथ्याप्रियवादी न स्यात् ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या इच्छा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मघवन्) बहुत विद्यारूपी ऐश्वर्य्ययुक्त ! जो (मानुषेषु) मनुष्यों में (भूरि) बहुत (मनीषी) बुद्धिवाला जन (ते) आपके (सवना) यज्ञसिद्धि करानेवाले कर्मों वा प्रेरणाओं को (भूरि) बहुत (हवते) ग्रहण करता तथा जो (त्वाम्) आप की (इत्) ही स्तुति प्रशंसा करता (हि) उसी को (अस्मत्) हम लोगों से (आरे) दूर (ज्योक्) निरन्तर (मा, कः) मत करो, किन्तु सदा हमारे समीप रक्खो ॥६॥

    भावार्थ

    जो निश्चय से मनुष्यों के बीच उत्तम विद्वान् आप्त परीक्षा करनेवाला हो, उसको तथा अन्य अध्यापकों की निरन्तर प्रार्थना करो। आप लोगों को हमारे निकट जो धार्मिक, विद्वान् हो, यही निरन्तर रखने योग्य है, जो मिथ्या प्यारी वाणी बोलनेवाला न हो ॥६॥

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    विषय

    स्तुत्य राजा ।

    भावार्थ

    हे ( मघवन् ) पूज्य ऐश्वर्ययुक्त ! ( ते ) तेरे ( भूरि हि सवना ) बहुत से ऐश्वर्य ( मानुषेषु ) मनुष्यों में हैं । ( मनीषी ) बुद्धिमान् पुरुष ( त्वाम् इत् हवते ) तेरी ही स्तुति करता है, तुझे ही पुकारता है । तू ( अस्मत् ) हम से ( ज्योक् माक: ) विद्वान् पुरुष को वा अपने आपको चिरकाल के लिये दूर मत कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि: । इन्द्रो देवता ।। छन्दः – भुरिगुष्णिक् । २, ७ निचृद्नुष्टुप् । ६ भुरिगनुष्टुप् । ५ अनुष्टुप् । ६, ८ विराडनुष्टुप् । ४ आर्ची पंक्तिः । ९ विराट् त्रिष्टुप् ।। नवर्चं सूक्तम्

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    विषय

    परमात्मा मनीषी विद्वान् की पुकार सुनता है

    पदार्थ

    पदार्थ-हे (मघवन्) = ऐश्वर्ययुक्त ! (ते) = तेरे (भूरि हि सवना) = अनेक ऐश्वर्य (मानुषेषु) = मनुष्यों में हैं। (मनीषी) = बुद्धिमान् व्यक्ति (त्वाम् इत् हवते) = तेरी ही स्तुति करता है। तू (अस्मत्) = हमसे (ज्योक् मा कः) = अपने को दूर मत कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- मनीषी स्तोता ही तुम्हारा आह्वान करता है। हे परमात्मा आप हमसे दूर न हों।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो माणसांमध्ये उत्तम विद्वान परीक्षक असेल त्याची व इतर अध्यापकांची निरंतर प्रार्थना, प्रशंसा करा. जो धार्मिक विद्वान असेल तोच रक्षण करण्यायोग्य आहे. फक्त तो असत्य बोलणारा नसावा. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord of honour and excellence, many are your acts of generosity and magnificence in the world of humanity. Many are the acts of adoration the dedicated wise offer to you. O lord, never let these be alienated from us.

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