ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 22/ मन्त्र 8
नू चि॒न्नु ते॒ मन्य॑मानस्य द॒स्मोद॑श्नुवन्ति महि॒मान॑मुग्र। न वी॒र्य॑मिन्द्र ते॒ न राधः॑ ॥८॥
स्वर सहित पद पाठनु । चि॒त् । नु । ते॒ । मन्य॑मानस्य । द॒स्म॒ । उत् । अ॒श्नु॒व॒न्ति॒ । म॒हि॒मान॑म् । उ॒ग्र॒ । न । वी॒र्य॑म् । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । न । राधः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नू चिन्नु ते मन्यमानस्य दस्मोदश्नुवन्ति महिमानमुग्र। न वीर्यमिन्द्र ते न राधः ॥८॥
स्वर रहित पद पाठनु। चित्। नु। ते। मन्यमानस्य। दस्म। उत्। अश्नुवन्ति। महिमानम्। उग्र। न। वीर्यम्। इन्द्र। ते। न। राधः ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 22; मन्त्र » 8
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स राजा कीदृशान् पुरुषान् रक्षेदित्याह ॥
अन्वयः
हे दस्मोग्रेन्द्र ! मन्यमानस्य ते महिमानं नु सज्जना उदश्नुवन्ति तेषु विद्यमानेषु सत्सु ते तव वीर्यं शत्रवो हिंसितुं न शक्नुवन्ति न चित् तत्र नु राधो ग्रहीतुं शक्नुवन्ति ॥८॥
पदार्थः
(नु) सद्यः। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (चित्) अपि (नु) (ते) तव (मन्यमानस्य) (दस्म) दुःखोपक्षयितः (उत्) (अश्नुवन्ति) प्राप्नुवन्ति (महिमानम्) (उग्र) तेजस्विन् (न) निषेधे (वीर्यम्) पराक्रमम् (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त राजन् (ते) तव (न) निषेधे (राधः) धनम् ॥८॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । हे राजन् ! यदि भवान् सुपरीक्षितान् धार्मिकाञ्छूरान् विदुषस्सत्कृत्य सन्निकटे रक्षेत्तर्हि कोऽपि शत्रुर्भवन्तं पीडयितुं न शक्नुयात् सदा वीर्यैश्वर्येण वर्धेत ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह राजा कैसे पुरुषों को रक्खे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (दस्म) दुःख के विनाशनेवाले (उग्र) तेजस्वी (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त राजा ! (मन्यमानस्य) माननीय के माननेवाले (ते) आपके (महिमानम्) बड़प्पन को (नु) शीघ्र सज्जन (उत्, अश्नुवन्ति) उन्नति पहुँचाते हैं उनके विद्यमान होते (ते) आपके (वीर्यम्) पराक्रम को शत्रुजन नष्ट (न) न कर सकते हैं (चित्) और (न) न वहाँ (नु) शीघ्र (राधः) धन ले सकते हैं ॥८॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे राजन् ! आप अच्छी परीक्षा कर सुपरीक्षित, धार्मिक, शूर, विद्वान् जनों को अपने निकट रक्खें तो कोई भी शत्रुजन आपको पीड़ा न दे सके, सदा वीर्य और ऐश्वर्य से बढ़ो ॥८॥
विषय
राजा का अधिकार ।
भावार्थ
हे ( दस्म ) दर्शनीय ! हे शत्रुहिंसक ! हे ( उग्र ) शत्रुभयजनक राजन् ! प्रभो ! ( मन्यमानस्य ) मान करने योग्य ( ते ) तेरे ( महिमानम् ) सहान् सामर्थ्य को (नु चित् नु ) अवश्य सज्जन लोग ( उत् अश्नुवन्ति ) उत्तमता से प्राप्त करें। परन्तु शत्रु जन ( ते महि मानम् न उद् अश्नुवन्तु ) तेरे महान् सामर्थ्य को न पा सकें और वे (न ते वीर्यम्, न ते राधः) न तेरे बल और न तेरे ऐश्वर्य को प्राप्त करें । वे तेरे से अधिक बलवान् और ऐश्वर्यवान् कभी भी न हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषि: । इन्द्रो देवता ।। छन्दः – भुरिगुष्णिक् । २, ७ निचृद्नुष्टुप् । ६ भुरिगनुष्टुप् । ५ अनुष्टुप् । ६, ८ विराडनुष्टुप् । ४ आर्ची पंक्तिः । ९ विराट् त्रिष्टुप् ।। नवर्चं सूक्तम्
विषय
परमात्मा का सामर्थ्य सबसे अधिक बढ़कर
पदार्थ
पदार्थ - हे (दस्म) = दर्शनीय ! हे (उग्र) = प्रचण्ड राजन्! (मन्यमानस्य) = मानने योग्य (ते) = तेरे (महिमानम्) = सामर्थ्य को (नू चित् नु) = अवश्य सज्जन लोग (उद् अश्नुवन्ति) = प्राप्त करें। परन्तु शत्रु (ते महिमानम्) = न तेरे सामर्थ्य को (उद् अश्नुवन्तु) = न पा सकें, (न ते वीर्यम्) = न तेरे बल और न (ते राधः) = न तेरे ऐश्वर्य को प्राप्त करें।
भावार्थ
भावार्थ- हे प्रभो ! तेरे सामर्थ्य को, तेरे बल व ऐश्वर्य को कोई प्राप्त नहीं कर सकता है। क्योंकि तुझसे अधिक बलवान् और ऐश्वर्यवान् कोई नहीं है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा ! जर तू चांगली परीक्षा करून सुपरीक्षित, धार्मिक, शूर, विद्वान लोक आपले रक्षक नेमलेस तर कोणीही शत्रू तुला त्रास देणार नाही. सदैव वीर्य व ऐश्वर्य वाढव. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord of blazing splendour, destroyer of suffering and darkness, adored by the world, the people of the world acknowledge your grandeur but they comprehend it not, much less equal and surpass. Nor can they surpass, equal or even comprehend your power and potential or your munificence.
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