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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 39/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आग्ने॒ गिरो॑ दि॒व आ पृ॑थि॒व्या मि॒त्रं व॑ह॒ वरु॑ण॒मिन्द्र॑म॒ग्निम्। आर्य॒मण॒मदि॑तिं॒ विष्णु॑मेषां॒ सर॑स्वती म॒रुतो॑ मादयन्ताम् ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒ग्ने॒ । गिरः॑ । दि॒वः । आ । पृ॒थि॒व्याः । मि॒त्रम् । व॒ह॒ । वरु॑णम् । इन्द्र॑म् । अ॒ग्निम् । आ । अ॒र्य॒मण॑म् । अदि॑तिम् । विष्णु॑म् । ए॒षा॒म् । सर॑स्वती । म॒रुतः॑ । मा॒द॒य॒न्ता॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आग्ने गिरो दिव आ पृथिव्या मित्रं वह वरुणमिन्द्रमग्निम्। आर्यमणमदितिं विष्णुमेषां सरस्वती मरुतो मादयन्ताम् ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। अग्ने। गिरः। दिवः। आ। पृथिव्याः। मित्रम्। वह। वरुणम्। इन्द्रम्। अग्निम्। आ। अर्यमणम्। अदितिम्। विष्णुम्। एषाम्। सरस्वती। मरुतः। मादयन्ताम् ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 39; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वांसः किं विज्ञाय किं ज्ञापयेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे अग्ने त्वं दिवः पृथिव्या गिर आ वह मित्रं वरुणमिन्द्रमग्निमर्यमणमदितिं विष्णुमावहैषां सरस्वती तां च विदित्वाऽस्मदर्थमा वह, हे विद्वांसो ! मरुत एतद्विद्यां दत्वाऽस्मान् भवन्तो मादयन्ताम् ॥५॥

    पदार्थः

    (आ) (अग्ने) विद्वन् (गिरः) सुशिक्षिता वाचः (दिवः) विद्युत् सूर्यादेर्विद्याप्रकाशिकाः (आ) (पृथिव्याः) भूम्यादेः (मित्रम्) सखायम् (वह) (वरुणम्) अतिश्रेष्ठम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (अग्निम्) पावकम् (आ) (अर्यमणम्) न्यायाधीशम् (अदितिम्) अन्तरिक्षम् (विष्णुम्) व्यापकं वायुम् (एषाम्) (सरस्वती) विद्यायुक्ता वाणी (मरुतः) मनुष्याः (मादयन्ताम्) आनन्दयन्तु ॥५॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या विद्युदादिविद्यां प्राप्यान्यान् प्रापयन्ति ते सर्वेषामानन्दकरा भवन्ति ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् जन क्या जान कर क्या दूसरों को जतलावें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (दिवः) बिजुली और सूर्यादि प्रकाशवान् पदार्थों की विद्या का प्रकाश करनेवाली वा (पृथिव्याः) भूमि आदि पदार्थों का प्रकाश करनेवाली (गिरः) सुन्दर शिक्षित वाणियों को (आ, वह) प्राप्त कीजिये (मित्रम्) मित्र (वरुणम्) अतिश्रेष्ठ (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवान् राजा (अग्निम्) अग्नि (अर्यमणम्) न्यायाधीश (अदितिम्) अन्तरिक्ष (विष्णुम्) व्यापक वायु को (आ) प्राप्त कीजिये और जो (एषाम्) इनकी (सरस्वती) विद्यायुक्त वाणी उस को जान कर हमारे अर्थ (आ) प्राप्त कीजिये, हे (मरुतः) विद्वान् मनुष्यो ! उक्त विद्या को देकर हम लोगों को आप (मादयन्ताम्) आनन्दित कीजिये ॥५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य बिजुली आदि की विद्या को प्राप्त होकर औरों को प्राप्त कराते हैं, वे सब का आनन्द करनेवाले होते हैं ॥५॥

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    भावार्थ

    हे (अग्ने ) विद्वन् ! ( दिवः ) विद्युत् सूर्य आदि के और ( पृथिव्याः) पृथिवी के सम्बन्ध की ( गिर: ) ज्ञान वाणियों को ( आ वह ) धारण कर । तू ( मित्रं ) मित्र, प्राण वायु (वरुणं ) उदान वायु ( इन्द्रं ) आत्मा और ( अग्निम् ) जाठर अग्नि और ( अर्यमणम् ) स्वामिवत् नियन्ता मन और ( अदितिं ) अविनाशी ( विष्णुम् ) व्यापक परमेश्वर को ( आ वह ) धारण कर । ( एषां सरस्वती ) इन सबके सम्बन्ध की वेदवाणी से हे ( मरुतः ) विद्वान् पुरुषो ! आप लोग ( मादयन्ताम् ) स्वयं प्रसन्न होवो अन्यों को भी प्रसन्न करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, २, ५, ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ३ स्वराट् त्रिष्टुप्। ४, ६ विराट् त्रिष्टुप् ।। सप्तर्चं सूक्तम ॥

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    विषय

    सदा आनन्दित रहो

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (अग्ने) = विद्वन् ! (दिवः) = विद्युत्, सूर्य आदि और (पृथिव्याः) = पृथिवी के सम्बन्ध की (गिरः) = ज्ञान-वाणियों को (आ वह) = धारण कर तू (मित्रं) = मित्र, प्राण वायु (वरुणं) = उदान वायु (इन्द्रं) = आत्मा, (अग्निम्) = जाठर अग्नि, (अर्यमणम्) = स्वामिवत् नियन्ता मन और (अदितिं) = अविनाशी (विष्णुम्) = परमेश्वर को (आ वह) = धारण कर । (एषां सरस्वती) = इन सबके सम्बन्ध की वेदवाणी से हे (मरुतः) = विद्वान् पुरुषो! आप (मादयन्ताम्) = प्रसन्न होवो, अन्यों को प्रसन्न करो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- विद्वान् जन राष्ट्र में सूर्य और पृथिवी के सम्बन्धों का विज्ञान, प्राण विज्ञान, आत्मज्ञान, शरीर विज्ञान, मनोविज्ञान तथा ब्रह्म ज्ञान को प्रतिष्ठित करें। इन विज्ञानों से सम्बन्धित वेदवाणी का प्रचार करते हुए सदैव आनन्दित रहें तथा अन्य लोगों को भी आनन्दित करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे विद्युत इत्यादी विद्या प्राप्त करून इतरांना प्राप्त करवितात ती सर्वांना आनंद देणारी असतात. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O sage and scholar, bring us the knowledge and the language of the knowledge of heaven and earth. Bring us the gifts of Mitra, sun and pranic energy, Varuna, water and air, Indra, electric energy, and Agni, fire and light, of Aryaman, cosmic gravitation, Aditi, nature’s constancy, Vishnu, omnipresent cosmic intelligence, so that Sarasvati, corresponding language of their expression may grow and children of the earth may rejoice with enlightenment.

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