ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 75/ मन्त्र 4
ए॒षा स्या यु॑जा॒ना प॑रा॒कात्पञ्च॑ क्षि॒तीः परि॑ स॒द्यो जि॑गाति । अ॒भि॒पश्य॑न्ती व॒युना॒ जना॑नां दि॒वो दु॑हि॒ता भुव॑नस्य॒ पत्नी॑ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षा । स्या । यु॒जा॒ना । प॒रा॒कात् । पञ्च॑ । क्षि॒तीः । परि॑ । स॒द्यः । जि॒गा॒ति॒ । अ॒भि॒ऽपश्य॑न्ती । व॒युना॑ । जना॑नाम् । दि॒वः । दु॒हि॒ता । भुव॑नस्य । पत्नी॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एषा स्या युजाना पराकात्पञ्च क्षितीः परि सद्यो जिगाति । अभिपश्यन्ती वयुना जनानां दिवो दुहिता भुवनस्य पत्नी ॥
स्वर रहित पद पाठएषा । स्या । युजाना । पराकात् । पञ्च । क्षितीः । परि । सद्यः । जिगाति । अभिऽपश्यन्ती । वयुना । जनानाम् । दिवः । दुहिता । भुवनस्य । पत्नी ॥ ७.७५.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 75; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एषा) इयमुषाः (जनानाम्) मनुष्यान् (वयुना) प्राप्य (अभिपश्यन्ती) सम्यक् पश्यन्ती (दिवः दुहिता) द्युलोकस्य कन्या तथा च (भुवनस्य पत्नी) संसारस्य पत्नीरूपा अस्ति (स्या) सैवोषाः (युजाना स्या) योगं लभमाना (पराकात्) दूरस्थदेशात् (पञ्चक्षितीः) पृथिवीस्थान् पञ्चधा मनुष्यान् (परिसद्यः) शश्वदर्थं (जिगाति) प्राप्नोति। जिगातीति गतिकर्म्मसु पठितम्। निघ० २।१४ ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उषा को रूपकालङ्कार से वर्णन करते हैं।
पदार्थ
(एषा) यह उषा (जनानां) मनुष्यों को (वयुना) प्राप्त होकर (अभिपश्यन्ती) भले प्रकार देखती हुई (दिवः दुहिता) द्युलोक की कन्या और (भुवनस्य पत्नी) संसार की पत्नीरूप है। (स्या) वह उषा (युजाना स्या) योग को प्राप्त होती हुई (पराकात्) दूर देश से (पञ्च क्षितीः) पृथिवीस्थ पाँच प्रकार के मनुष्यों को (परिसद्यः) सदा के लिये (जिगाति) जागृति उत्पन्न करती है ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उषा को द्युलोक की कन्या और संसार की पत्नीस्थानीय माना गया है, जिसका तात्पर्य यह है कि इसको द्युलोक से उत्पन्न होने के कारण “कन्या” और पृथिवीलोक पर आकर सर्वभोग्या=सबके भोगने योग्य होने से “पत्नी” कथन की गयी है। उषा में पत्नी भाव का आरोप करने से तात्पर्य यह है कि यह प्रतिदिन प्रातःकाल सब संसारी जनों को उद्बोधन करती है कि तुम उठकर जागो, परमात्मा में जुड़ो और अपनी दिनचर्या में प्रवृत्त होकर अपने-अपने कार्यों को विधिवत् करो, यह मन्त्र का भाव है। पृथिवीस्थ पाँच प्रकार के मनुष्यों का वर्णन पीछे कर आये हैं, इसलिये यहाँ आवश्यकता नहीं ॥४॥
विषय
पत्नी के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
(एषा ) यह ( स्या ) वह ( दिवः दुहिता ) सूर्य की पुत्रीवत् उषा काल के समान तेजस्वी पुरुष की कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ ( पराकात् युजाना ) दूर देश से विवाह बन्धन में संयुक्त होकर विदुषी स्त्री शासक शक्ति के समान ( सद्यः ) अति शीघ्र ही अपने गुणों से ( पञ्चक्षिती: ) पांचों प्रकार के निवासियों, पञ्चजनों को ( परि जिगाति ) मात करती है, सबको अपने वश करती है। वह ( जनानां ) मनुष्यों वा जन्म लेने वाली प्रजाओं के ( वयुना ) ज्ञानों और कर्मों को न्यायपूर्वक ( अभि पश्यन्ती ) देखती हुई और ( भुवनस्य ) भुवन, जन समूह का (पत्नी) पालन करने वाली हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, ८ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ४, ५ विराट् त्रिष्टुप् । ३ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप् । ६, ७ आर्षी त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
पत्नि के कर्त्तव्य
पदार्थ
पदार्थ- (एषा) = यह (स्या) = वह (दिवः दुहिता) = सूर्य की पुत्रीवत् उषा के समान तेजस्वी पुरुष की कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ (पराकात् युजाना) = दूर देश से विवाह बन्धन में संयुक्त होकर विदुषी स्त्री, शासक-शक्ति के समान (सद्यः) = अति शीघ्र गुणों से (पञ्चक्षिती:) = पाँचों प्रकार के निवासियों को (परि जिगाति) = वश करती है। वह (जनानां) = प्रजाओं के (वयुना) = ज्ञानों और कर्मों को (अभिपश्यन्ती) = देखती हुई और भुवनस्य भुवन, जन समूह का पत्नी पालन करनेवाली हो।
भावार्थ
भावार्थ - विदुषी स्त्री दूर देश में रहनेवाले श्रेष्ठ शासक से उत्तम रीति से विवाह करके अपने विद्वत्ता, प्रियता आदि गुणों के द्वारा समस्त परिजनों व प्रजाजनों को वश में करके उत्तम ज्ञान और कर्मों के द्वारा प्रजा पालन के कार्य में पति को सहयोग व सम्मति प्रदान करे।
इंग्लिश (1)
Meaning
This is that light divine, child of heaven arising at dawn from afar, which instantly and always awakens and illuminates all children of the earth, whatever their class or status, and unites the human soul with the divine. It watches the ways and karmas of people and sustains and inspires life across the universe.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उषेला द्युलोकाची कन्या व संसाराची पत्नी म्हटलेले आहे. याचे तात्पर्य हे, की द्युलोकापासून उत्पन्न झाल्यामुळे ‘कन्या’ व पृथ्वीवर सर्व भोग्या=सर्वांनी भोगण्यायोग्य असल्यामुळे ‘पत्नी’ म्हटलेले आहे. उषेमध्ये पत्नीभावाचा आरोप यासाठी केलेला आहे, की ती प्रत्येक दिवशी प्रात:काळी सर्व संसारी लोकांना उद्बोधन करते, की तुम्ही उठा, जागृत व्हा, परमात्म्याशी संबंध जोडा व आपल्या दिनचर्येत प्रवृत्त होऊन व्यवस्थित कार्य करा. हा मंत्राचा भाव आहे. पृथ्वीवरील पाच प्रकारच्या माणसांचे वर्णन यापूर्वी केलेले आहे. ॥४॥
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