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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 94 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 94/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - आर्षीगायत्री स्वरः - षड्जः

    ता हि शश्व॑न्त॒ ईळ॑त इ॒त्था विप्रा॑स ऊ॒तये॑ । स॒बाधो॒ वाज॑सातये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ता । हि । शश्व॑न्तः । ईळ॑ते । इ॒त्था । विप्रा॑सः । ऊ॒तये॑ । स॒ऽबाधः॑ । वाज॑ऽसातये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ता हि शश्वन्त ईळत इत्था विप्रास ऊतये । सबाधो वाजसातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ता । हि । शश्वन्तः । ईळते । इत्था । विप्रासः । ऊतये । सऽबाधः । वाजऽसातये ॥ ७.९४.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 94; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (विप्रासः) मेधाविनः (ऊतये) स्वरक्षायै (इत्था) इत्थं (शश्वन्तः) सदैव (ता हि) निश्चयेन (सबाधः, वाजसातये) विघ्नबाधिता स्वबलाय सुखाय च (ईळते) ज्ञानयोगिनं कर्मयोगिनं च स्तुवन्ति ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सबाधः) पीड़ित हुए (वाजसातये) यज्ञों में (विप्रासः) मेधावी लोग (ऊतये) अपनी रक्षा के लिए (इत्था) इस प्रकार (शश्वन्तः) निरन्तर (ता, हि) निश्चय करके उक्त कर्मयोगी, ज्ञानयोगी की (ईळते) स्तुति करते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    जो लोग इस भाव से यज्ञ करते हैं कि उनकी बाधायें निवृत्त होवें, वे अपने यज्ञों में कर्मयोगी, ज्ञानयोगी विद्वानों को अवश्यमेव बुलायें, ताकि उनके सत्सङ्ग द्वारा ज्ञान और कर्म से सम्पन्न होकर सब बाधाओं को दूर कर सकें ॥५॥

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    विषय

    नायक नायिका जनों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( इत्था ) इस प्रकार ( शश्वन्तः विप्रासः ) बहुत से विद्वान् पुरुष ( सबाधः ) पीड़ित होकर दुःख पीड़ा आदि की चर्चा संदेशादि लेकर (उतये ) अपनी रक्षा के लिये और ( वाजसातये ) संग्राम करने के लिये ( ता हि ईडते ) उन दोनों पूर्वोक्त इन्द्र, अग्नि को अध्यक्ष रूप से चाहते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः—१, ३, ८, १० आर्षी निचृद् गायत्री । २, ४, ५, ६, ७, ९ , ११ आर्षी गायत्री । १२ आर्षी निचृदनुष्टुप् ॥ द्वादर्शं सूक्तम्॥

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    विषय

    विद्वान् का कर्त्तव्य

    पदार्थ

    पदार्थ - (इत्था) = इस प्रकार (शश्वन्तः विप्रास:) = बहुत से विद्वान् पुरुष (सबाध:) = पीड़ित होकर दुःख पीड़ा आदि की चर्चा संदेशादि लेकर (उतये) = अपनी रक्षा और (वाजसातये) = संग्राम करने के लिये (ता हि ईडते) = उन दोनों इन्द्र, अग्नि को अध्यक्ष रूप से चाहते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- विद्वानों व प्रजा जनों को जब भी कोई पीड़ा या शत्रु सेना के आक्रमण की सूचना होवे तो उसके निवारण हेतु राजा व सेनानायक के पास जाकर विद्वान् लोग अपना सन्देश देवें ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Beset with difficulties, saints and sages, scholars and pioneers always look up to them and thus pray for protection and guidance to move further and win their goal.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक आपली विघ्ने नाहीशी व्हावीत या भावनेने यज्ञ करतात त्यांनी आपल्या यज्ञात कर्मयोगी, ज्ञानयोगी विद्वानांना अवश्य बोलवावे. त्यामुळे त्यांच्या सत्संगाद्वारे ते ज्ञान व कर्माने संपन्न बनून सर्व विघ्ने दूर करू शकतील. ॥५॥

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