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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 94 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 94/ मन्त्र 9
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - आर्षीगायत्री स्वरः - षड्जः

    गोम॒द्धिर॑ण्यव॒द्वसु॒ यद्वा॒मश्वा॑व॒दीम॑हे । इन्द्रा॑ग्नी॒ तद्व॑नेमहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गोऽम॑त् । हिर॑ण्यऽवत् । वसु॑ । यत् । वा॒म् । अश्व॑ऽवत् । ईम॑हे । इन्द्रा॑ग्नि॒ इति॑ । तत् । व॒ने॒म॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गोमद्धिरण्यवद्वसु यद्वामश्वावदीमहे । इन्द्राग्नी तद्वनेमहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गोऽमत् । हिरण्यऽवत् । वसु । यत् । वाम् । अश्वऽवत् । ईमहे । इन्द्राग्नि इति । तत् । वनेमहि ॥ ७.९४.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 94; मन्त्र » 9
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्राग्नी) हे ज्ञानयोगिन् कर्मयोगिन् च ! भवत्सदुपदेशेनाहं (गोमत्) गोसमृद्धम्, (हिरण्यवत्) सुवर्णसमृद्धम् (अश्वावत्) अश्वसमृद्धं च (यद्, वसु) यद्धनं तदवाप्तये (ईमहे) प्रार्थयामहे (तद्, वनेमहि) तदवाप्नुयाम ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्द्राग्नी) हे कर्मयोगी, ज्ञानयोगी विद्वानों ! आप के सदुपदेश से हम (हिरण्यवत्) रत्न, (अश्वावत्) अश्व, (गोमत्) गौवें इत्यादि अनेक प्रकार के (यद् वसु) जो धन हैं, उनकी प्राप्ति के लिए हम (ईमहे) यह प्रार्थना करते हैं कि (तद्, वनेमहि) उनको हम प्राप्त हों ॥९॥

    भावार्थ

    उक्त विद्वानों के सदुपदेश से हम सब प्रकार के धनों को प्राप्त हों ॥९॥

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    विषय

    नायक नायिका जनों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्राग्नी ) सूर्य अग्निवत् तेजस्वी पुरुषो ! हम ( यत् ) जो भी और जिस प्रकार का भी (वाम् ईमहे ) आप दोनों से मांगते हैं ( तत् ) वह (गोमत् ) गौओं, (हिरण्यवत् ) सुवर्णादि बहुमूल्य पदार्थ और ( अश्वावद् ) अश्वों से सम्पन्न ( वसु ) धन ( वनेमहि ) प्राप्त करें और उसका भोग करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः—१, ३, ८, १० आर्षी निचृद् गायत्री । २, ४, ५, ६, ७, ९ , ११ आर्षी गायत्री । १२ आर्षी निचृदनुष्टुप् ॥ द्वादर्शं सूक्तम्॥

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    विषय

    ऐश्वर्यशाली व्यवस्था

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (इन्द्राग्नी) = सूर्य-अग्निवत् तेजस्वी पुरुषो! हम (यत्) = जो और जैसा भी (वाम् ईमहे) = आप दोनों से माँगते हैं (तत्) = वह (गोमत्) = गौओं, (हिरण्यवत्) = सुवर्णादि बहुमूल्य पदार्थ और (अश्वावद्) = अश्वों से सम्पन्न (वसु) = धन (वनेमहि) = प्राप्त करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा अपने राष्ट्र में व्यवस्था करे कि कोई भी निर्धन या दरिद्र न रहे। जब प्रजाजनों को गाय, अश्व, स्वर्ण, अन्न आदि की आवश्यकता होवे तो वे राजा से माँगें और राजा उन्हें आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त करावे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra and Agni, whatever gifts of lands, cows and the language of enlightenment, whatever wealth of gold and gracious manners and culture, horses, transport, initiative and achievement we ask of you and pray for, help and guide us that we may win the desired goal.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    वरील विद्वानांच्या सदुपदेशाने आम्हाला सर्व प्रकारचे धन प्राप्त व्हावे. ॥९॥

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