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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 14/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    शिक्षे॑यमस्मै॒ दित्से॑यं॒ शची॑पते मनी॒षिणे॑ । यद॒हं गोप॑ति॒: स्याम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शिक्षे॑यम् । अ॒स्मै॒ । दित्से॑यम् । शची॑ऽपते । म॒नी॒षिणे॑ । यत् । अ॒हम् । गोऽप॑तिः । स्या॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिक्षेयमस्मै दित्सेयं शचीपते मनीषिणे । यदहं गोपति: स्याम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शिक्षेयम् । अस्मै । दित्सेयम् । शचीऽपते । मनीषिणे । यत् । अहम् । गोऽपतिः । स्याम् ॥ ८.१४.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (शचीपते) हे शक्तिमन् ! (यत्, अहम्) यद्यहम् (गोपतिः, स्याम्) वशीकृतेन्द्रियः स्याम् तदा (अस्मै, मनीषिणे) अस्मै विदुषे (दित्सेयम्) दातुमिच्छेयम् (शिक्षेयम्) दद्यां च। शिक्षतिर्दानकर्मा ॥२॥

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    विषयः

    अनेन मनुष्याशा दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे शचीपते=शचीनां यज्ञादिकर्मणां विज्ञानानाञ्च स्वामिन् ! ईश ! अहम् । अस्मै मनीषिणे=मननशीलाय परमशास्त्रतत्त्वविदे । शिक्षेयम्=बहूनि धनानि दातुमिच्छेयम् । दित्सेयम्=सदा दातुमिच्छेयम् । सर्वस्मै परमविदुषे धनानि दातुमिच्छामीत्यर्थः । यद्=यदि । तवानुग्रहेणाहम् । गोपतिः स्याम्=गवां ज्ञानानां गोप्रभृतिपशूनाञ्च स्वामी स्याम् । ईदृशीमिच्छां मे प्रपूरय ॥२ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (शचीपते) हे शक्तिस्वामिन् योद्धा ! (यत्, अहम्) यदि मैं (गोपतिः, स्याम्) इन्द्रियों का स्वामी हो जाऊँ तो (अस्मै) इस (मनीषिणे) विद्वान् के लिये (दित्सेयम्) इष्ट पदार्थ देने की इच्छा करूँ और (शिक्षेयम्) दान भी करूँ। “शिक्ष धातु दानार्थक” है ॥२॥

    भावार्थ

    प्रजापालक को उचित है कि वह अपनी इन्द्रियों को स्वाधीन करने का प्रयत्न पहिले ही से करे, जो इन्द्रियों की गति के अनुसार सर्वदा चलता है, उसका अधःपात शीघ्र ही होता है, फिर साम्राज्य प्राप्त करने के अनन्तर अपने राष्ट्रिय विद्वानों का अन्न-धनादि अपेक्षित द्रव्यों से सर्वदा सत्कार करता रहे, क्योंकि जिस देश में विद्वानों की पूजा होती है, उस देश की शक्तियें सदा बढ़कर अपने स्वामी को उन्नत करती हैं अर्थात् जिस राजा के राज्य में गुणी पुरुषों का सत्कार होता है, वह राज्य सदैव उन्नति को प्राप्त होता है ॥२॥

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    विषय

    इससे मनुष्य की आशा दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (शचीपते) हे यज्ञादिकर्मों तथा विज्ञानों का स्वामिन् ईश ! मेरी इच्छा सदा ऐसी होती रहती है कि (अस्मै) सुप्रसिद्ध-२ (मनीषिणे) मननशील परमशास्त्रतत्त्वविद् पुरुषों को (शिक्षेयम्) बहुत धन दूँ (दित्सेयम्) सदा ही मैं देता रहूँ (यद्) यदि (अहम्) मैं (गोपतिः+स्याम्) ज्ञानों को तथा गो प्रभृति पशुओं का स्वामी होऊँ । मेरी इस इच्छा को पूर्ण कर ॥२ ॥

    भावार्थ

    हे भगवन् ! मुझको धनवान् और दाता बना, जिससे दरिद्रों और विद्वानों को मैं वित्त दूँ, इस मेरी इच्छा को पूर्ण कर ॥२ ॥

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    विषय

    गोपति होने की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे ( शचीपते ) शक्तियों और वाणियों के स्वामिन् ! ( यद् अहं गोपतिः स्याम् ) जो मैं 'गोपति', भूमिपति, वाणियों का स्वामी विद्वान् एवं धनुर्धर होऊं तो ( अस्मै मनीषिणे ) इस मन पर वश करने वाले मनस्वी शिष्य को ( शिक्षेयं ) ज्ञान की शिक्षा दूं। ( अस्मै मनीषिणे ) इस ज्ञान के देने वाले विद्वान् को ( दित्सेयं ) धनादि देने की इच्छा करूं और ( शिक्षेयं ) दूं भी।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ ऋषी॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ११ विराड् गायत्री। २, ४, ५, ७, १५ निचृद्गायत्री। ३, ६, ८—१०, १२—१४ गायत्री॥ पञ्चदशं सूक्तम्॥

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    विषय

    दित्सेयं-शिक्षेयम्

    पदार्थ

    [१] हे (शचीपते) = सब शक्तियों के स्वामिन् प्रभो ! (यद् अहम्) = जब मैं (गोपतिः) = गौवों का स्वामी (स्याम्) = होऊँ, अर्थात् धन-सम्पन्न बनूँ तो (अस्मै) = इस मनीषिणे मन को वश में करनेवाले प्राज्ञ मनुष्य के लिये (दित्सेयम्) = देने की कामना करूँ और (शिक्षेयम्) = प्रार्थित धन को अवश्य दूँ। [२] हे प्रभो ! मैं आपका सेवक बनकर आप से दिये गये धन का ठीक प्रकार से वितरण करनेवाला बनूँ। सब धन को आपका समझता हुआ मैं उस धन को आपके भक्तों में ही वितरण करनेवाला बनूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु के अनुग्रह से धन-सम्पन्न हों, तो उस धन को पात्र पुरुषों में वितीर्ण करनेवाले बनें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord and master of world power and prosperity, Indra, if I were master of knowledge and controller of power, I would love to share and give wealth and knowledge to this noble minded person of vision and wisdom.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे भगवान! मला धनवान व दाता बनव. ज्यामुळे दरिद्री व विद्वानांना मी वित्त देऊ शकेन. माझी इच्छा पूर्ण कर. ॥२॥

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