ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 52/ मन्त्र 5
यो नो॑ दा॒ता स न॑: पि॒ता म॒हाँ उ॒ग्र ई॑शान॒कृत् । अया॑मन्नु॒ग्रो म॒घवा॑ पुरू॒वसु॒र्गोरश्व॑स्य॒ प्र दा॑तु नः ॥
स्वर सहित पद पाठयः । नः॒ । दा॒ता । सः । नः॒ । पि॒ता । म॒हान् । उ॒ग्रः । ई॒शा॒न॒ऽकृत् । अया॑मन् । उ॒ग्रः । म॒घऽवा॑ । पु॒रु॒ऽवसुः॑ । गोः । अश्व॑स्य । प्र । दा॒तु॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो नो दाता स न: पिता महाँ उग्र ईशानकृत् । अयामन्नुग्रो मघवा पुरूवसुर्गोरश्वस्य प्र दातु नः ॥
स्वर रहित पद पाठयः । नः । दाता । सः । नः । पिता । महान् । उग्रः । ईशानऽकृत् । अयामन् । उग्रः । मघऽवा । पुरुऽवसुः । गोः । अश्वस्य । प्र । दातु । नः ॥ ८.५२.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 52; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 20; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 20; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
He who is the giver of every thing for us, he is our father, great, illustrious, ruler and creator of ruling glory, unretreating, blazing brave, glorious, universal shelter and treasure home of wealth. May he, we pray, give us the wealth of lands and cows, knowledge and culture, and horses, achievements, success and constant progress.
मराठी (1)
भावार्थ
पापी माणसाला परमेश्वराच्या गुणगानाचा कोणताही लाभ होऊ शकत नाही. आम्ही कुमार्गी न बनता त्याच्या गुणांना धारण करण्याचे सामर्थ्य उत्पन्न केले पाहिजे. ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यः) जो प्रभु (नः) हमें (दाता) ऐश्वर्य प्रदान करता है, (सः) वही (नः पिता) हमारा पालन कर्ता है, महान् (उग्रः) नितान्त तेजस्वी है और (ईशानकृत्) अभावग्रस्त को भी ऐश्वर्य का शासक बना देता है और (अयामन्) अगन्तव्य मार्ग पर चलने वाले पापकर्मा के प्रति वह उग्र भयानक रूप धारण करता है। वह (पुरूवसुः) बहुतों को बसाने वाला (मघवा) स्वयं ऐश्वर्य युक्त (नः) हमें (गोः अश्वस्य) गौ, अश्व आदि ( प्र दातु) सम्पन्नता प्रदान करे॥५॥
भावार्थ
पाप के मार्ग पर चलने वाले को प्रभु के गुणगान से कोई लाभ नहीं हो सकता; अतः हम कुपथगामी न हों और उसके गुणों को धारने का सामर्थ्य पैदा करें॥५॥
विषय
महान् शासक परमेश्वर इन्द्र।
भावार्थ
( यः नः दाता ) जो हमें देता है, ( सः नः पिता ) वही हमें पालन करता है। वह (महान् उग्रः) बड़ा भारी, बलवान् ( ईशानकृत् ) समस्त ऐश्वर्य को बनाने वाला शासक है। वह ( उग्रः ) बलवान् ( मघवा ) उत्तम धनाढ्य होकर ( पुरु-वसु अयामन् ) बहुत धन प्रदान करता है और वह ( गोः अश्वस्य नः प्रदातु ) गौ अश्व आदि हमें देवे। इति विंशो वर्ग॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
आयुः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ७ निचृद् बृहती। ३, बृहती। ६ विराड् बृहती। २ पादनिचृत् पंक्तिः। ४, ६, ८, १० निचृत् पंक्तिः॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
गोः अश्वस्य प्रदातु नः
पदार्थ
[१] (यः) = जो (नः) = हमारे लिए (दाता) = सबकुछ देनेवाले हैं, (सः) = वे (नः) = हमारे (पिता) = पिता हैं। (महान्) = पूजनीय हैं। (उग्र:) = तेजस्वी हैं। (ईशानकृत्)= ऐश्वर्य को करनेवाले हैं। [२] वे प्रभु (उग्र:) = तेजस्वी व (मघवा) = ऐश्वर्यशाली हैं। वे हमारे लिए (अयामन्) = इन धनों को देते हैं। वे (पुरूवसुः) = पालक व पूरक वसुओं के देनेवाले प्रभु (नः) = हमारे लिए (गोः) = ज्ञानेन्द्रियों व (अश्वस्य) = कर्मेन्द्रियों को (प्रदातु) = देनेवाले हों।
भावार्थ
भावार्थ- - प्रभु सर्वप्रद हैं। हमारे लिए वे ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों को तथा पालक व पूरक धनों को देनेवाले हों।
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