ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 54/ मन्त्र 5
ऋषिः - मातरिश्वा काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्बृहती
स्वरः - मध्यमः
यदि॑न्द्र॒ राधो॒ अस्ति॑ ते॒ माघो॑नं मघवत्तम । तेन॑ नो बोधि सध॒माद्यो॑ वृ॒धे भगो॑ दा॒नाय॑ वृत्रहन् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । इ॒न्द्र॒ । राधः॑ । अस्ति॑ । ते॒ । माघो॑नम् । म॒घ॒व॒त्ऽत॒म॒ । तेन॑ । नः॒ । बो॒धि॒ । स॒ध॒ऽमाद्यः॑ । वृ॒धे । भगः॑ । दा॒नाय॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यदिन्द्र राधो अस्ति ते माघोनं मघवत्तम । तेन नो बोधि सधमाद्यो वृधे भगो दानाय वृत्रहन् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । इन्द्र । राधः । अस्ति । ते । माघोनम् । मघवत्ऽतम । तेन । नः । बोधि । सधऽमाद्यः । वृधे । भगः । दानाय । वृत्रऽहन् ॥ ८.५४.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 54; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord of highest glory among the powerful, your munificence and power of accomplishment under control of your majesty is great. By that power of majesty, O lord of honour and liberal grandeur, friend of the house of yajnic celebration, destroyer of evil and want, enlighten us for advancement and inspire us with the spirit of charity.
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा आम्ही सर्व ऐश्वर्य खऱ्या स्वामीचे (ईश्वराचे) समजू तेव्हाच तो आमच्या ऐश्वर्यसंपन्नतेत सहभागी होतो. त्या ऐश्वर्याचा उपयोग आम्ही परमेश्वराकडून प्राप्त होणाऱ्या निर्देशानुसार करत राहू. हे निर्देश प्रभूचे गुणकीर्तन व सिद्ध पुरुषांच्या उपदेशाने प्राप्त होतात. ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (मघवत्तम) माननीय ऐश्वर्य स्वामियों में से श्रेष्ठतम, (इन्द्र) प्रभो! (यत् ते राधः) जो आपका सिद्धिप्रद वैभव (माघोनम्) मघवा--ऐश्वर्य के वास्तविक स्वामी आप से शासित (अस्ति) है, हे (वृत्रहन्) विघ्नहर्ता प्रभो! आप (सधमाद्यः) साथ-साथ ही प्रसन्न होने वाले एवं (भगः) सहभागी होकर (वृधे) हमें बढ़ाने हेतु तथा (दानाय) दानशीलता के लिये, (तेन) उस उपर्युक्त ऐश्वर्य का (नः बोधि) हमें बोध दें॥५॥
भावार्थ
परम प्रभु ऐश्वर्यजनित हमारी प्रसन्नता में सहभागी तभी होता है जब हम ऐश्वर्य को उसके वास्तविक स्वामी द्वारा शासित समझें--उसका उपयोग परमेश्वर से प्राप्त निर्देशानुसार करते रहें। ये निर्देश हमें परमात्मा के गुणगान तथा सिद्ध पुरुषों के उपदेशों से प्राप्त होते हैं॥५॥
विषय
परमेश्वर की स्तुति प्रार्थनाएं।
भावार्थ
हे ( इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! हे ( मघवत्तम ) पूज्य धन के स्वामियों में सर्वश्रेष्ठ ! ( यत् ते राधः ) जो तेरा धन ( माधोनं ) धन स्वामी बनाने वाला है, तू ( सधमाद्यः ) सब के साथ मिलकर प्रसन्न होने वाला होकर ( तेन ) उस धन से ( नः ) हमें भी ( वृधे ) बढ़ाने और ( नः दानाय ) हमें प्रदान करने के लिये ( बोधि ) जान, हे ( वृत्रहन् ) विघ्नों के नाशक ! तू ( भगः ) ऐश्वर्यवान् , सर्वसेवनीय है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मातरिश्वा काण्व ऋषिः॥ १, २, ५—८ इन्द्रः । ३, ४ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, ५ निचृत् बृहती। ३ बृहती। ७ विराड बृहती। २, ४, ६, ८ निचृत् पंक्तिः॥
विषय
माघोनं राधः
पदार्थ
[१] हे (मघवत्तम) = अतिशयेन ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! (यत्) = जो (ते) = आपका (माघोनं) = हमें [मघ-मख] यज्ञशील बनानेवाला (राध:) = ऐश्वर्य (अस्ति) = है, (तेन) = उस ऐश्वर्य से (नः बोधि) = हमें जानिये, अर्थात् उस ऐश्वर्य को हमें प्राप्त कराइये। [२] हे (वृत्रहन्) = वासनाओं को विनष्ट करनेवाले प्रभो! आप (सधमाद्यः) = हमारे साथ होते हुए हमें आनन्दित करनेवाले हैं और (वृधे) = हमारी वृद्धि के लिए होते हैं। (भगः) = ऐश्वर्य के पुञ्ज आप (दानाय) = हमें सब ऐश्वर्यों के देने के लिए होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ-प्रभु से दिया गया धन हमें यज्ञशील बनाता है। हमारे साथ होते हुए प्रभु हमें आनन्दित करते हैं। हमारी वासनाओं को विनष्ट करते हुए हमारा वर्धन करते हैं।
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