ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 91/ मन्त्र 2
अ॒सौ य एषि॑ वीर॒को गृ॒हंगृ॑हं वि॒चाक॑शद् । इ॒मं जम्भ॑सुतं पिब धा॒नाव॑न्तं कर॒म्भिण॑मपू॒पव॑न्तमु॒क्थिन॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒सौ । यः । एषि॑ । वी॒र॒कः । गृ॒हम्ऽगृ॑हम् । वि॒ऽचाक॑शत् । इ॒मम् । जम्भ॑ऽसुतम् । पि॒ब॒ । धा॒नाऽव॑न्तम् । क॒र॒म्भिण॑म् । अ॒पू॒पऽव॑न्तम् । उ॒क्थिन॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
असौ य एषि वीरको गृहंगृहं विचाकशद् । इमं जम्भसुतं पिब धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनम् ॥
स्वर रहित पद पाठअसौ । यः । एषि । वीरकः । गृहम्ऽगृहम् । विऽचाकशत् । इमम् । जम्भऽसुतम् । पिब । धानाऽवन्तम् । करम्भिणम् । अपूपऽवन्तम् । उक्थिनम् ॥ ८.९१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 91; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
The invigorating juice of soma which gives strength and vigour of health and radiates from person to person, family to family, O maiden, O youth, drink. It is expressed and invigorated to the last drop. It is delicious, nourishing, seasoned with delicacies, fresh and exhilarating, and invigorating with pranic energies.
मराठी (1)
भावार्थ
सोमलता इत्यादी औषधींचा सोमरस मुखाने चावता येतो. त्यात पौष्टिक व दिव्य गुणयुक्त पदार्थांचे मिश्रण आहे. तसेच ते दुर्गंधयुक्त नसतो व सडत नाही. प्राणशक्तीचा प्रदाता आहे. निर्बल कन्येला पतिवरणापूर्वी अशा सोमचे सेवन केले पाहिजे. ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(असौ) वह जो (वीरकः) [पूर्णशरीरात्मबलप्रदः ऋ० द० ऋ० १-४०-३] शरीर तथा आत्मा को पूर्ण बलशाली बनाने वाला [सोमरस] (गृहं गृहम्) प्रत्येक घर अर्थात् जीवात्मा के निवासभूत शरीर को (विचाकशत्) विशेष रूप से कान्तिमान बनाता हुआ (एषि) सक्रिय है, (इमम्) इसे हे इन्द्र! रोगादि दुःखों को काटने के लिए कृतसंकल्प मेरे आत्मा! (पिब) सेवन कर; यह जो (जम्भसुतम्) औषधि को मुख में ग्रसकर निकाला गया है; (धानावन्तम्) पुष्टिप्रद है (करम्भिणम्) सभी दिव्य पदार्थों से मिश्रित है (अपूपवन्तम्) दुर्गन्धित न होने के पदार्थ युक्त है और जो (उक्थिनम्) उक्थ अर्थात् प्राण की शक्ति से संयुक्त है, शरीर को स्फूर्ति प्रदाता है [शरीर को उठाने वाली प्राणशक्ति का नाम ही उक्थ है--सोमरस में भी वही शक्ति है]॥२॥
भावार्थ
सोमलता इत्यादि ओषधियों का जो रस=सोम यहाँ अभिप्रेत है, वह मुँह में चाबा जाता है; उसमें पौष्टिक तथा दिव्य गुण वाले पदार्थों का मिश्रण है; साथ ही वह ताप आदि से विश्लिष्ट हो दुर्गन्ध नहीं देता और प्राणशक्ति का दाता है निर्बल कन्या पतिवरण से पूर्व ऐसे सोम का सेवन करे॥२॥
विषय
वधू की ओर से वरण और आशंसा।
भावार्थ
(असौ) वह दूर देश का (यः) जो ( वीरकः ) वीर्य युक्त पुरुष ( एषि ) प्राप्त होता है वह तू ( गृहं-गृहं ) प्रत्येक गृह को ( विचाकशत् ) प्रकाशित करता है। हे विद्वन् ! तू ( इमं ) इस ( जम्भ-सुतं ) जन्म से ही दीप्तियुक्त वा जाया, स्त्री और उसके भरणकर्त्ता पति दोनों से उत्पन्न ( धानावन्तं ) आधान संस्कार से युक्त ( करम्भिणम् ) क्रियाकुशल, शौर्ययुक्त और ( अपूपवन्तं ) गृह से दूर और गुरु आचार्य आदि के समीप जाने वाले ( उक्थिनं ) उत्तम बालक का ( पिब ) पालन कर।
टिप्पणी
करोतेरम्बच् प्रत्ययः ( उणा० ) ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अपालात्रेयी ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१ आर्ची स्वराट् पंक्तिः। २ पंक्ति:। ३ निचृदनुष्टुप्। ४ अनुष्टुप्। ५, ६ विराडनुष्टुप्। ७ पादनिचृदनुष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
विषय
जम्भसुत का पान
पदार्थ
[१] हे प्रभो! (यः) = जो आप (वीरकः) = शत्रुओं को अतिशयेन कम्पित करके करनेवाले दूर हैं [वि + ईर] (असौ) = वे आप (एषि) = प्राप्त होते हैं और (गृहंगृहं विचाकशत्) = प्रत्येक गृह को दीप्त करनेवाले होते हैं। हमारे हृदयों में प्रभु का प्रकाश होते ही सारा शरीरगृह चमक उठता है। [२] हे प्रभो ! (इमम्) = इस (जम्भसुतम्) = जबड़ों के द्वारा उत्पन्न किये गये जबड़ों से चबाकर खाये गये भोजन से उत्पन्न होनेवाले सोम को (पिब) = शरीर में ही पीने का अनुग्रह करिये। यह सोम (धानावन्तम्) = शरीर के धारण करनेवाला है। (करम्भिणम्) = [क+रम्भ] आनन्द के साथ आलिंगनवाला है - जीवन को आनन्दमय बनाता है । (अपूपवन्तम्) = [अपूप-Honey-comb] शहद के छत्तेवाला है, अर्थात् वाणी को शहद के समान मधुर बनानेवाला है । (उक्थिनम्) = स्तोत्रोंवाला है - यह सोम सुरक्षित होकर इस रक्षक पुरुष को प्रभुस्तवन की वृत्तिवाला बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का प्रकाश होते ही यह शरीरगृह चमक उठता है। शरीर में सोमरक्षण होकर जीवन 'स्थिर शक्तिवाला, आनन्दमय, मधुर व प्रभुस्तवन की वृत्तिवाला' बनता है।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal