ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 22/ मन्त्र 3
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒ते पू॒ता वि॑प॒श्चित॒: सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः । वि॒पा व्या॑नशु॒र्धिय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । पू॒ताः । वि॒पः॒ऽचितः॑ सोमा॑सः । दधि॑ऽआशिरः । वि॒पा । वि । आ॒न॒शुः॒ । धियः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एते पूता विपश्चित: सोमासो दध्याशिरः । विपा व्यानशुर्धिय: ॥
स्वर रहित पद पाठएते । पूताः । विपःऽचितः । सोमासः । दधिऽआशिरः । विपा । वि । आनशुः । धियः ॥ ९.२२.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पूताः) पवित्राणि (एते सोमासः) इमानि ब्रह्माण्डानि (दध्याशिरः) सर्वस्य धातॄणि (विपा) ज्ञानद्वारा (विपश्चितः) विदुषां (धियः) बुद्धीनां (व्यानशुः) विषयीभूतानि भवन्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पूताः) पवित्र (एते सोमासः) ये सब उत्पन्न हुए ब्रह्माण्ड (दध्याशिरः) सबके धारक आश्रयभूत (विपा) ज्ञानद्वारा (विपश्चितः) विद्वानों की (धियः) बुद्धि का (व्यानशुः) विषय होते हैं ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा की रचना में जो कोटानुकोटि ब्रह्माण्ड हैं, वे सब ज्ञानी विज्ञानियों के ही समझ में आ सकते हैं, अन्यों के नहीं ॥३॥
विषय
विपश्चितः दध्याशिरः
पदार्थ
[१] (एते) = ये (सोमास:) = सोमकण (पूता:) = शुद्ध रखे जाने पर इनमें वासनाओं का उबाल न आने देने पर (विपश्चितः) = ये ज्ञानी होते हैं, अर्थात् हमें ज्ञानी बनाते हैं। सोमरक्षण करनेवाला पुरुष विशेषरूप से बारीकी से देखता हुआ चिन्तनशील होता है। ये सोमकण (दध्याशिरः) = [ धत्ते बलं इति दधि, आशृणाति] बल को धारण करनेवाले व रोगकृमियों का विनाश करनेवाले होते हैं । [२] ये सोमकण (धियः) = हमारे ज्ञानपूर्वक किये जानेवाले इन कर्मों को (विपा) = [विप् Hymns] स्तोत्रों से (व्यानशुः) = व्याप्त कर देते हैं । अर्थात् सोमरक्षण करने पर हम [क] कर्मशील होते हैं, [ख] कर्मों को बुद्धिपूर्वक करते हैं, [ग] उन कर्मों को प्रभु स्मरण के साथ करते हैं। ऐसा करने से हमारे कर्म पवित्र बने रहते हैं और हमें उन कर्मों का अहंकार नहीं होता ।
भावार्थ
भावार्थ- शरीर में सुरक्षित पवित्र सोमकण हमारा धारण करते हैं । रोगकृमियों का विनाश करते हैं। सोमरक्षण करने पर हम कर्मों को ज्ञानपूर्वक प्रभु स्मरण के साथ करते हैं ।
विषय
विद्वानों का ज्ञानपूर्वक कर्म करना।
भावार्थ
(एते) वे (पूताः) पवित्र आचारवान् (विपश्चितः) ज्ञानवान्, (सोमासः) विद्या-स्नात जन (दध्याशिरः) ध्यान, धारणा बल से युक्त (विपा) ज्ञानसहित (धियः) कर्मों को (वि आनशुः) मिला कर विविध प्रकार से करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २ गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ४-७ निचृद गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
These living floods of energy, vibrant courses, soothing moons, blazing suns and whirling galaxies, pure somas all blest by light and will divine of the centre hold of life, inspire the will and awareness of thinking men.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या रचनेत जे कोटी कोटी ब्रह्मांड आहेत ते सर्व ज्ञानी-विज्ञानी जाणू शकतात इतर नव्हे. ॥३॥
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