ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 22/ मन्त्र 6
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
तन्तुं॑ तन्वा॒नमु॑त्त॒ममनु॑ प्र॒वत॑ आशत । उ॒तेदमु॑त्त॒माय्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठतन्तु॑म् । त॒न्वा॒नम् । उ॒त्ऽत॒मम् । अनु॑ । प्र॒ऽवतः॑ । आ॒श॒त॒ । उ॒त । इ॒दम् । उ॒त्त॒माय्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तन्तुं तन्वानमुत्तममनु प्रवत आशत । उतेदमुत्तमाय्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठतन्तुम् । तन्वानम् । उत्ऽतमम् । अनु । प्रऽवतः । आशत । उत । इदम् । उत्तमाय्यम् ॥ ९.२२.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 22; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(प्रवतः) गतिशीलब्रह्माण्डानि (इदम्) उत्तमं (तन्तुम् तन्वानम्) उत्तमं परमाणुप्रबन्धं वर्धयन्ति सन्ति (उत्तमाय्यम्) उत्तमकार्यैः (उत अन्वाशत) व्याप्नुवन्ति ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(प्रवतः) गतिशील ब्रह्माण्ड (तन्तुम् तन्वानम्) उत्तम परमाणुप्रबन्ध को बढ़ाते हुए (इदम्) इतने (उत्तमाय्यम्) उत्तम कार्यों से (उत अन्वाशत) व्याप्त हो रहे हैं ॥६॥
भावार्थ
प्रत्येक ब्रह्माण्ड मानों तन्तुरूप से अर्थात् रचनारूप यज्ञ से परमात्मा की संसृति को बढ़ा रहा है ॥६॥
विषय
उत्तमाय्य का व्यापन
पदार्थ
[१] (उत्तमम्) = सर्वोत्कृष्ट 'यज्ञ-तप-दान' रूप (तन्तुम्) = कर्मतन्तु को (तन्वानम्) = विस्तृत करते हुए इस सोम के अनुरक्षण के अनुसार, अर्थात् जितना-जितना सोम का रक्षण करते हैं उतना-उतना (प्रवतः) = [Height, elevation ] उन्नत स्थितियों को व्याप्त करते हैं । [२] (उत) = और अन्ततोगत्वा (इदम्) = इस (उत्तमाप्यम्) = उत्तम लोगों से प्राप्त होने योग्य मोक्षलोक को व्याप्त करनेवाले होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- शरीर में सुरक्षित सोम हमें उत्तम कर्मों में प्रेरित करता हुआ उन्नत लोकों को प्राप्त कराता है, अन्ततः मोक्ष लोक का हमें अधिकारी बनाता है ।
विषय
जीवों की नाना लोक तथा परम पद तक की गति।
भावार्थ
वे (तन्वानं) विस्तृत (तन्तुं) यज्ञ एवं पिता माता के या देहों में पुत्र सन्तति रूप से विस्तृत वंश क्रमानुसार (प्रवतः उत्तमम्) नीची योनि से लेकर उत्तम जन्म तक (आशत) प्राप्त करते हैं। (उत इदम् उत्तमाय्यम्) और वे ही इस उत्तम जनों से प्राप्य मोक्ष पद को भी (आशत) प्राप्त होते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २ गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ४-७ निचृद गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Moving on with the flow of life across the expansive web of creative existence, they reach the ultimate where life can reach, the infinite.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रत्येक ब्रह्मांड जणू तन्तुरूपाने अर्थात रचनारूपी यज्ञाने परमात्म्याच्या मार्ग प्रवाहाची वृद्धी करत आहे. ॥६॥
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