ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 32/ मन्त्र 5
अ॒भि गावो॑ अनूषत॒ योषा॑ जा॒रमि॑व प्रि॒यम् । अग॑न्ना॒जिं यथा॑ हि॒तम् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । गावः॑ । अ॒नू॒ष॒त॒ । योषा॑ । जा॒रम्ऽइ॑व । प्रि॒यम् । अग॑न् । आ॒जिम् । यथा॑ । हि॒तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि गावो अनूषत योषा जारमिव प्रियम् । अगन्नाजिं यथा हितम् ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । गावः । अनूषत । योषा । जारम्ऽइव । प्रियम् । अगन् । आजिम् । यथा । हितम् ॥ ९.३२.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 32; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (योषा जारमिव प्रियम्) चन्द्रमिव सर्वप्रियं (आजिम्) प्राप्यं (हितम्) सर्वस्येष्टदं भवन्तं (यथा अगन्) यथा प्राप्ताः स्युः तथा (गावः) इन्द्रियवृत्तयः (अभ्यनूषत) त्वां विषयीकुर्वन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (योषा जारमिव प्रियम्) “योषयति आत्मनि प्रीतिमुत्पादयतीति योषा रात्रिः तस्या जारो जारयिता चन्द्रस्तम्”। चन्द्रमा के समान सर्वप्रिय (आजिम्) प्राप्त करने योग्य (हितम्) सबका हित करनेवाले आप (यथा अगन्) जिस प्रकार प्राप्त हो जायें, उसी प्रकार (गावः) इन्द्रियवृत्तियें (अभ्यनूषत) आपको विषय करती हैं ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में कर्मयोगी और ज्ञानयोगियों की ओर से परमात्मा की प्रार्थना कथन की गयी है और परमात्मनिष्ठप्रियता की तुलना चन्द्रमा के साथ की है अर्थात् जिस प्रकार चन्द्रमा आह्लादक होने से सर्वप्रिय है, इसी प्रकार परमात्मा भी आह्लादक होने से सर्वप्रिय है। कई एक टीकाकार “योषा जारम्” के अर्थ स्त्री के जार के करते हैं अर्थात् जैसे स्त्री को अपना यार प्यारा होता है, उसी प्रकार मुझ उपासक को तुम प्यारे हो। पहले तो यह दृष्टान्त विषम है, क्योंकि स्त्री को सर्वदा यार प्यारा नहीं लगता, किन्तु जब तक मोहमयी युवावस्था रहती है, तभी तक प्यारा लगता है और दूसरे जार शब्द के अर्थ सर्वत्र वेदमन्त्रों में तमोनिवर्तक आह्लादक गुण के हैं, जैसा कि ‘स्वसारं जारोऽभ्येति पश्वात्” इस मन्त्र में जार के अर्थ आह्लादक गुण के ही सब भाष्यकारों ने किये हैं। इससे स्पष्ट सिद्ध है कि ‘योषा जार’ यहाँ चन्द्रमा का नाम है, किसी लम्पट कामी पुरुष का नहीं ॥५॥
विषय
प्रभु-स्मरण व युद्ध
पदार्थ
[१] (गावः) = ज्ञान की वाणियाँ व इन्द्रियाँ उसी प्रकार (अभि अनूषत) = दिन के दोनों ओर प्रातः सायं प्रभु का स्तवन करती हैं, (इव) = जैसे कि कोई (योषा) = स्त्री (प्रियं जारम्) = अपने प्रिय व्यक्ति को स्तुत करती है। वह स्त्री जैसे अपने प्रिय का सर्वभावेन स्मरण करती है, इसी प्रकार इस उपासक की वाणियाँ प्रभु का ही स्तवन करती हैं । [२] ये (यथा) = जैसे प्रभु स्मरण करते हैं, उसी प्रकार (हितं आजिम्) = हितकर संग्राम को वासनाओं के साथ चलनेवाले सात्त्विक संग्राम को (अगन्) = प्राप्त होते हैं। यह संग्राम मनुष्य का वास्तविक हित करनेवाला है, यही सात्त्विक संग्राम है। इस संग्राम में प्रभु स्मरण से ही तो विजय होती है।
भावार्थ
भावार्थ - इस प्रकार प्रातः - सायं प्रभु स्मरण करते हुए हमें इस सात्त्विक संग्राम को करते चलना है।
विषय
पतिव्रता स्त्रीवत् स्वामी के प्रति प्रजा के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(योषा प्रियम् जारम् इव) स्त्री जिस प्रकार प्रिय, जीवन के संगी की स्तुति करती है उसी प्रकार (गावः) वाणियां और प्रजाएं उस की ही (अभि अनूषत) स्तुति करती हैं और वह (हितम्) हितकारी पदार्थ को (आजिम यथा) संग्रामवत् उत्साह से (अगन्) प्राप्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः-१, २ निचृद् गायत्री। ३-६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Just as a maiden admires, longs for and meets her darling lover, so do all perceptions of sense and conceptions of mind with the consciousness concentrate on the divine presence as is their love and faith and reach their end and aim.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात कर्मयोगी व ज्ञानयोगी यांच्याद्वारे परमेश्वराची प्रार्थना केलेली आढळते. तसेच परमात्मनिष्ठ प्रियतेची तुलना चंद्राबरोबर केलेली आहे. ज्या प्रकारे चंद्र आल्हादक असल्यामुळे सर्व प्रिय आहे. त्याचप्रकारे परमात्माही आल्हादक असल्यामुळे सर्व प्रिय आहे. कित्येक टीकाकार ‘‘योषा जारम्’’ चा अर्थ स्त्रीचा जार असा करतात. अर्थात जसे स्त्रीला आपला यार प्रिय असतो त्याच प्रकारे माझ्यासारख्या उपासकाला तू प्रिय आहेस. हा दृष्टांत विषय आहे. कारण स्त्रीला सदैव यार प्रिय वाटत नाही; परंतु जोपर्यंत मोहमयी तारुण्यावस्था असते तोपर्यंतच प्रिय वाटतो व दुसरा जार शब्दाचा अर्थ सर्वत्र वेदमंत्रात तमोनिवर्त्तक आल्हादक गुण असा आहे. जसे ‘‘स्वसारं जारोऽभ्येति पश्चात’’ जार शब्दाचा अर्थ आल्हादक गुण असा सर्व भाष्यकारांनी केलेला आहे. यावरून हे स्पष्ट सिद्ध होते की योषागार चंद्राचे नाव आहे. एखाद्या लम्पटकामी पुरुषाचे नाही ॥५॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal