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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 85/ मन्त्र 12
    ऋषिः - वेनो भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ऊ॒र्ध्वो ग॑न्ध॒र्वो अधि॒ नाके॑ अस्था॒द्विश्वा॑ रू॒पा प्र॑ति॒चक्षा॑णो अस्य । भा॒नुः शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॒ व्य॑द्यौ॒त्प्रारू॑रुच॒द्रोद॑सी मा॒तरा॒ शुचि॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊ॒र्ध्वः । ग॒न्ध॒र्वः । अधि॑ । नाके॑ । अ॒स्था॒त् । विश्वा॑ । रू॒पा । प्र्चति॒ऽचक्षा॑णः । अ॒स्य॒ । भा॒नुः । शु॒क्रेण॑ । शो॒चिषा॑ । वि । अ॒द्यौ॒त् । प्र । अ॒रू॒रु॒च॒त् । रोद॑सी॒ इति॑ । मा॒तरा॑ । शुचिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्ध्वो गन्धर्वो अधि नाके अस्थाद्विश्वा रूपा प्रतिचक्षाणो अस्य । भानुः शुक्रेण शोचिषा व्यद्यौत्प्रारूरुचद्रोदसी मातरा शुचि: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्ध्वः । गन्धर्वः । अधि । नाके । अस्थात् । विश्वा । रूपा । प्र्चतिऽचक्षाणः । अस्य । भानुः । शुक्रेण । शोचिषा । वि । अद्यौत् । प्र । अरूरुचत् । रोदसी इति । मातरा । शुचिः ॥ ९.८५.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 85; मन्त्र » 12
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 11; मन्त्र » 7
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (विश्वा, रूपा, प्रति, चक्षाणोऽस्य) अस्य सूर्य्यमण्डलस्यानेकानि रूपाणि प्रख्यापयन् परमात्मा (अधि, नाके, अस्थात्) सर्वोपरि सुखे विराजमानोऽस्ति। (ऊर्ध्वः) सर्वोपर्य्यस्ति (शुक्रेण) निजबलेन अपि च (शोचिषा) निजतेजसा (भानुः) सूर्य्यमपि (वि, अद्यौत्) प्रकाशयति। अपि च (रोदसी, मातरा) अन्यलोकलोकान्तराणां निर्माता (प्रारूरुचत्) द्यावापृथिव्योः प्रकाशकोऽस्ति (शुचिः) पवित्रोऽस्ति। अपि च (गन्धर्वः) सर्वलोकलोकान्तराणाम् अधिष्ठातास्ति ॥१२॥ इति पञ्चाशीतितमं सूक्तम् एकादशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (विश्वा, रूपा, प्रति चक्षाणोऽस्य) इस सूर्य्यमण्डल के नानाप्रकार के रूपों को प्रख्यात करता हुआ परमात्मा (अधि, नाके, अस्थात्) सर्वोपरि सुख में विराजमान है। (ऊर्ध्वः) सर्वोपरि है और (शुक्रेण) अपने बल से और (शोचिषा) अपनी दीप्ति से (भानुः) सूर्य्य को भी (व्यद्यौत्) प्रकाशित करता है और (रोदसी मातरा) अन्य लोक-लोकान्तरों का निर्माण करता हुआ द्यावापृथिवी को (प्रारूरुचत्) प्रकाशित करनेवाला है। (शुचिः) पवित्र है और (गन्धर्वः) सर्व लोक-लोकान्तरों का अधिष्ठाता है ॥१२॥

    भावार्थ

    परमात्मा अपने प्रकाश से सूर्य्यचन्द्रादिकों का प्रकाशक है और सम्पूर्ण विश्व का निर्माता, विधाता और अधिष्ठाता है, उसी की उपासना सब लोगों को करनी चाहिये ॥१२॥ यह ८५ वें सूक्त का ११ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    सर्वोपरि शक्ति प्रभु। उसका सूर्यवत् वर्णन।

    भावार्थ

    (ऊर्ध्वः) सब से ऊंचा, (गन्धर्वः) भूमि आदि लोकों, और सब को चलाने वाली शक्ति को धारण करने वाला, (नाके अधि अस्यात्) परम सुखमय, सूर्यवत् देदीप्यमान रूप में सब संसार का अध्यक्ष होकर विराजता है। वह (अस्य) इस जगत् के (विश्वा रूपा प्रतिचक्षाणः) समस्त रूपों को प्रतिक्षण देखता और प्रकट करता रहता है। वह (शुक्रेण) अतिदीप्त (शोचिषा) सर्व शुद्धकारी कान्ति से (वि अद्यौत्) विशेष रूप से चमकता है, विविध लोकों को प्रकाशित कर रहा है। वह (भानुः) कान्तिमान्, (शुचिः) शुद्ध पवित्र (रोदसी) आकाश वा सूर्य, और भूमिवत् जगत् को सीमाओं में रोक रखने वाले (मातरौ) जगत् की रचना करने वाले आत्मा और प्रकृति, दोनों तत्वों को (प्र अरू-रुचत्) बहुत बहुत चमकाता है, प्रकृति को चमकाता, और जीव को उस की रुचि के अनुसार विहार करने देता है। इत्येकादशो वर्गः। इति चतुर्थोऽनुवाकः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वेनो भार्गव ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ५, ९, १० विराड् जगती। २, ७ निचृज्जगती। ३ जगती॥ ४, ६ पादनिचृज्जगती। ८ आर्ची स्वराड् जगती। ११ भुरिक् त्रिष्टुप्। १२ त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    विश्वारूपा प्रतिवक्षाणः

    पदार्थ

    [१] (गन्धर्वः) = ज्ञान की वाणियों को धारण करनेवाला यह सोम (ऊर्ध्वः) = शरीर में ऊर्ध्वगतिवाला होता हुआ (नाके) = मोक्ष सुख में (अधि अस्थात्) = स्थित होता है। यह सोम (अस्य) = अपने रक्षक के (विश्वारूपा) = सब रूपों को (प्रतिचक्षाण:) = एक-एक करके देखता हुआ होता है, इसके एक- एक अंग का ध्यान करता है। [२] (भानुः) = दीप्ति को देनेवाला यह सोम (शुक्रेण शोचिषा) = उज्ज्वल ज्ञानदीप्ति के साथ (व्यद्यौत्) = चमकता है। (शुचि) = यह पवित्र सोम (मातरा) = माता पितृभूत (रोदसी) = द्यावापृथिवी को (प्रारूरुचत्) = खूब दीप्त बना देता है। मस्तिष्क ही द्यावा है, शरीर ही पृथिवी है । सोम मस्तिष्क को ज्ञान से, शरीर को तेजस्विता से दीप्त करनेवाला है। दोनों को दीप्त करके यह हमारा निर्माण [माता] व [पिता] के समान करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमारे अंग-प्रत्यंग को ठीक बनाता हुआ मोक्ष को सिद्ध करता है। दीप्त ज्ञान ज्योति को प्राप्त कराता है, मस्तिष्क व शरीर दोनों को दीप्त करनेवाला है । अगले सूक्त के प्रथम १० मन्त्रों में 'अकृष्टाः' विषयों से अनाकृष्ट 'माषाः' [मष् to kill ] काम, क्रोध आदि को नष्ट करनेवाले ऋषि प्रार्थना करते हैं- पञ्चमोऽनुवाकः

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    High over the regions of light, freedom and bliss abides the sustainer of earth and space in motion, illuminating and revealing all manifestive forms of existence. Thus the sun shines pure and radiant with the power of divine splendour illuminating both mother earth and mother heaven and the middle regions.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर आपल्या प्रकाशाने सूर्यचंद्र इत्यादींचा प्रकाशक आहे व संपूर्ण विश्वाचा निर्माता, विधाता व अधिष्ठाता आहे. त्याचीच उपासना सर्व लोकांनी केली पाहिजे. ॥१२॥

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