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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 85/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वेनो भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    स्वा॒दुः प॑वस्व दि॒व्याय॒ जन्म॑ने स्वा॒दुरिन्द्रा॑य सु॒हवी॑तुनाम्ने । स्वा॒दुर्मि॒त्राय॒ वरु॑णाय वा॒यवे॒ बृह॒स्पत॑ये॒ मधु॑माँ॒ अदा॑भ्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वा॒दुः । प॒व॒स्व॒ । दि॒व्याय॑ । जन्म॑ने । स्वा॒दुः । इन्द्रा॑य । सु॒हवी॑तुऽनाम्ने । स्वा॒दुः । मि॒त्राय॑ । वरु॑णाय । वा॒यवे॑ । बृह॒स्पत॑ये । मधु॑ऽमान् । अदा॑भ्यः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वादुः पवस्व दिव्याय जन्मने स्वादुरिन्द्राय सुहवीतुनाम्ने । स्वादुर्मित्राय वरुणाय वायवे बृहस्पतये मधुमाँ अदाभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वादुः । पवस्व । दिव्याय । जन्मने । स्वादुः । इन्द्राय । सुहवीतुऽनाम्ने । स्वादुः । मित्राय । वरुणाय । वायवे । बृहस्पतये । मधुऽमान् । अदाभ्यः ॥ ९.८५.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 85; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अदाभ्यः) अदम्भनीयपरमेश्वर ! (बृहस्पतये) वाक्पतये विदुषे (मधुमान्) भवान् मधुरोऽस्ति। (मित्राय) सुहृदे (वरुणाय) वरणीयाय (वायवे) ज्ञानयोगिने (स्वादुः) स्वादयुतोऽस्ति। भवान् (दिव्याय, जन्मने) पवित्रजन्मने मां (स्वादुः) प्रियतां प्रणीय (पवस्व) पवित्रयतु। अथ च (इन्द्राय) कर्मयोगिने मां (स्वादुः) प्रियं विदधातु। तथा (सुहवीतुनाम्ने) कर्मयोगिने मां पवित्रयतु ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अदाभ्यः) हे अदम्भनीय परमात्मन् ! (बृहस्पतये) वाणियों के पति विद्वान् के लिये आप (मधुमान्) मीठे हैं। (मित्राय) सर्वमित्र (वरुणाय) वरणीय (वायवे) ज्ञानयोगी के लिये (स्वादुः) सर्वप्रिय बनाकर (दिव्याय, जन्मने) पवित्र जन्म के लिये (स्वादुः) प्रियता का प्रणयन करके (पवस्व) हमको पवित्र करें और (इन्द्राय) कर्म्मयोगी के लिये आप हमको (स्वादुः) प्रिय बनायें और (सुहवीतुनाम्ने) कर्म्मयोगी के लिये आप हमको पवित्र बनायें ॥६॥

    भावार्थ

    जो पुरुष परमात्मा का उपासन करते हैं, उनकी कुटिलतायें ज्ञानयोग से दग्ध हो जाती हैं, इसलिये वे सर्वप्रिय हो जाते हैं ॥६॥ १०॥

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    विषय

    शासक को उत्तरोत्तर वृद्धि का आदेश।

    भावार्थ

    हे उत्तम शासक ! तू (मधुमान्) बल और मधुर स्वभाव से युक्त होकर (स्वादुः) अपने जनों और ऐश्वर्यों को लेता, संग्रह करता हुआ, (दिव्याय जन्मने) अन्न भोक्ता जीव के तुल्य दिव्य जन्म के लिये (पवस्व) आगे बढ़ और (इन्द्राय स्वादुः) इन्द्र के पद के लिये अपने आपको समर्थ करता हुआ और (सुहवीतु-नाम्ने) सुगृहीत नाम वाले, पुण्यशील (वरुणाय) सर्वश्रेष्ठ, (वायवे) वायुवत् बलशाली, प्राणवत्, प्रिय, (बृहस्पतये) वेदवाणी या बड़े राष्ट्र के पालक पद के लिये (स्वादुः) सर्वप्रिय, मधुर एवं सर्वस्व प्रदानशील (अदाभ्यः) अविनाशी, अजर अमरवत् (पवस्व) यत्न कर, आगे बढ़। इति दशमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वेनो भार्गव ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ५, ९, १० विराड् जगती। २, ७ निचृज्जगती। ३ जगती॥ ४, ६ पादनिचृज्जगती। ८ आर्ची स्वराड् जगती। ११ भुरिक् त्रिष्टुप्। १२ त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'स्वादुः ' सोमः

    पदार्थ

    [१] यह सोम (स्वादुः) = जीवन के सब व्यवहारों को मधुर बनानेवाला है । हे सोम ! तू (दिव्याय जन्मने) = दिव्य जन्म के लिये, दिव्यगुणों से युक्त जीवन के लिये, पवस्व हमें प्राप्त हो । (सुहवीतुनाम्ने) = प्रभु के नामों का उत्तमता से उच्चारण करनेवाले इस प्रभु स्तोता (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (स्वादु:) = तू जीवन को मधुर बनानेवाला हो । [२] तू (मित्राय) = सब के प्रति स्नेह करनेवाले, वरुणाय निर्देष पुरुष के लिये (स्वादुः) = जीवन को मधुर बना । अपने रक्षक को मित्र व वरुण बनाकर आनन्दित कर । (वायवे) = क्रियाशील के लिये और बृहस्पतये ज्ञानी के लिये तू स्वादु हो। अपने रक्षक को ज्ञानी व क्रियाशील बनाकर आनन्दित करनेवाला हो। तू (मधुमान्) = मधुवाला है, जीवन को अत्यन्त मधुर बनानेवाला है। (अदाभ्यः) = तू हिंसित होनेवाला नहीं। शरीर में तेरे रक्षित होने पर रोगों व वासनाओं के आक्रमण का सम्भव नहीं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमारे जीवन को दिव्य बनाता है, हमें प्रभु स्तवन की वृत्तिवाला बनाता है। हमारे में 'स्नेह - निर्देषता- क्रियाशीलता व ज्ञान' को भरकर हमारे जीवन को अहिंसित व मधुर बनाता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, delicious ecstasy of divine presence, continue to flow for the soul reborn into divine self- realisation, delicious for the karma yogi of high status who can invoke your presence at will. Flow to the ecstasy of the soul of universal love, for the soul of discriminative intelligence and awareness, for the vibrant potent soul, for the soul attained to the presence of Infinity. Flow delicious as honey, bring freedom from fear, admit no distraction, no obstruction at all.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पुरुष परमेश्वराची उपासना करतात. त्यांची कुटिलता ज्ञानयोगाने दग्ध होते, त्यामुळे ते सर्वप्रिय होतात. ॥६॥

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