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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 85/ मन्त्र 7
    ऋषिः - वेनो भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    अत्यं॑ मृजन्ति क॒लशे॒ दश॒ क्षिप॒: प्र विप्रा॑णां म॒तयो॒ वाच॑ ईरते । पव॑माना अ॒भ्य॑र्षन्ति सुष्टु॒तिमेन्द्रं॑ विशन्ति मदि॒रास॒ इन्द॑वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अत्य॑म् । मृ॒ज॒न्ति॒ । क॒लशे॑ । दश॑ । क्षिपः॑ । प्र । विप्रा॑णाम् । म॒तयः॑ । वाचः॑ । ई॒र॒ते॒ । पव॑मानाः । अ॒भि । अ॒र्ष॒न्ति॒ । सु॒ऽस्तु॒तिम् । आ । इन्द्र॑म् । वि॒श॒न्ति॒ । म॒दि॒रासः॑ । इन्द॑वः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अत्यं मृजन्ति कलशे दश क्षिप: प्र विप्राणां मतयो वाच ईरते । पवमाना अभ्यर्षन्ति सुष्टुतिमेन्द्रं विशन्ति मदिरास इन्दवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अत्यम् । मृजन्ति । कलशे । दश । क्षिपः । प्र । विप्राणाम् । मतयः । वाचः । ईरते । पवमानाः । अभि । अर्षन्ति । सुऽस्तुतिम् । आ । इन्द्रम् । विशन्ति । मदिरासः । इन्दवः ॥ ९.८५.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 85; मन्त्र » 7
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (मदिरासः, इन्दवः) आनन्दवर्द्धकज्ञानप्रकाशकस्वभावा हि (इन्द्रं, आ, विशन्ति) कर्मयोगिनं प्राप्नुवन्ति। कथम्भूतं कर्मयोगिनं प्राप्नुवन्ति, तथाहि (सुस्तुतिं) शोभनस्तुतिकर्तारम्, तं कर्मयोगिनं (पवमानाः) परमेश्वरस्य पवित्रतरा भावाः (अभि, अर्षन्ति) प्राप्ता भवन्ति। तस्य (कलशे) अन्तःकरणे (दश क्षिपः) दश प्राणाः (अत्यं) गतिशीलं परमात्मानं (मृजन्ति) साक्षात्कुर्वन्ति (विप्राणां, मतयः) विज्ञानिजनानां बुद्धयः (वाचः, ईरते) तस्मिन् परमात्मनि वाण्याः प्रयोगं कुर्वन्ति ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (मदिरास इन्दवः) आनन्द के वर्द्धक और ज्ञान के प्रकाशस्वभाव (इन्द्रमाविशन्ति) कर्म्मयोगी को आकर प्राप्त होते हैं। जो कर्म्मयोगी (सुस्तुतिं) सुन्दरस्तुति करनेवाला है, उसको (पवमानः) परमात्मा के पवित्रभाव (अभ्यर्षन्ति) प्राप्त होते हैं। उसके (कलशे) अन्तःकरण में (दश क्षिपः) दश प्राण (अत्यं) गतिशील परमात्मा को (मृजन्ति) साक्षात्कार करते हैं। (विप्राणां मतयः) विज्ञानी पुरुषों की बुद्धियें (वाच ईरते) उस परमात्मा में वाणियों का प्रयोग करती हैं ॥७॥

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    विषय

    प्रजाओं द्वारा राजा की स्तुति, उसी प्रकार प्रभु के प्रति भक्तजनों का जाना।

    भावार्थ

    (दश क्षिपः) दशों उत्तम प्रेरक अध्यक्ष जन, (अत्यं) सबसे परे, सर्वोपरि को (कलशे) मंगल कलश के समीप, वा राष्ट्र के बीच (मृजन्ति) अभिषिक्त करते, सुशोभित करते हैं। और (विप्राणां मतयः) विद्वानों की स्तुतियें, मतियें और (वाचः) वाणियें (प्र ईरते) अच्छी प्रकार स्तुति करती हैं। (पवमानासः इन्दवः) शुद्ध पवित्र होकर तेजस्वी लोग (सु-स्तुतिम् अभि अर्षन्ति) उत्तम स्तुति को सब ओर से प्राप्त करते हैं। वे (मदिरासः) अति हर्षदायक होकर (इन्द्रं विशन्ति) शिष्य जैसे आचार्य को प्राप्त होते हैं वैसे ही वे भी (इन्द्रं विशन्ति) ऐश्वर्य वा राष्ट्र में प्रवेश करते हैं, और भक्तजन प्रभु में प्रवेश करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वेनो भार्गव ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ५, ९, १० विराड् जगती। २, ७ निचृज्जगती। ३ जगती॥ ४, ६ पादनिचृज्जगती। ८ आर्ची स्वराड् जगती। ११ भुरिक् त्रिष्टुप्। १२ त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'मदिरासः ' इन्दवः

    पदार्थ

    [१] (अत्यम्) = निरन्तर गतिशील अश्व के समान क्रियाशील, हमें क्रियाशील बनानेवाले, इस सोम को (दशक्षिपः) = दसों इन्द्रियों के विषयों को अपने से परे फेंकनेवाले लोग (कलशे मृजन्ति) = इस शरीर कलश में शुद्ध करते हैं। विषय वासना ही तो सोम को मलिन करती हैं। (विप्राणाम्) = अपना पूरण करनेवाले पुरुषों की (मतयः) = बुद्धियाँ व (वाचः) = स्तुति वाणियाँ (प्र ईरते) = प्रकर्षेण उद्गत होती हैं। सोमरक्षण से बुद्धि व स्तुति की वृत्ति उत्पन्न होती है । [२] (पवमानः) = ये पवित्र करनेवाले सोम (सुष्टुतिम् अभि) = उत्तम स्तुतिवाले की ओर (अर्षन्ति) = गतिवाले होते हैं । उत्तम स्तुतिशील पुरुष को प्राप्त होते हैं । (इन्द्रम्) = इस जितेन्द्रिय पुरुष में (आविशन्ति) = ये प्रवेश करते हैं । (मदिरासः) = ये आनन्द के जनक होते हैं और (इन्दवः) = उसे शक्तिशाली बनाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - विषयों से दूर होने पर सोम शुद्ध बना रहता है। यह 'मति व स्तुति' को हमारे में उत्पन्न करता है। शरीर में व्याप्त होकर शक्ति व आनन्द का कारण बनता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ten faculties of the soul, senses, mind and pranas, receive, intensify and exalt the vibrations of divinity in the heart core of the soul. With these, the perceptions and vibrations, the understanding and awareness of realised souls spontaneously burst into song. The vibrations of divinity radiate and continue to radiate to the celebrant soul, and they enter, settle and integrate with the soul.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या उपासनेने माणसाला सुंदर शील प्राप्त होते. त्या शीलाद्वारेच माणूस सद्विद्या प्राप्त करून ब्रह्मज्ञानाचा अधिकारी बनतो. ॥७॥

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