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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 85/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वेनो भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    स॒हस्र॑णीथः श॒तधा॑रो॒ अद्भु॑त॒ इन्द्रा॒येन्दु॑: पवते॒ काम्यं॒ मधु॑ । जय॒न्क्षेत्र॑म॒भ्य॑र्षा॒ जय॑न्न॒प उ॒रुं नो॑ गा॒तुं कृ॑णु सोम मीढ्वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒हस्र॑ऽनीथः । श॒तऽधा॑रः । अद्भु॑तः । इन्द्रा॑य । इन्दुः॑ । प॒व॒ते॒ । काम्य॑म् । मधु॑ । जय॑न् । क्षेत्र॑म् । अ॒भि । अ॒र्ष॒ । जय॑न् । अ॒पः । उ॒रुम् । नः॒ । गा॒तुम् । कृ॒णु॒ । सो॒म॒ । मी॒ढ्वः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहस्रणीथः शतधारो अद्भुत इन्द्रायेन्दु: पवते काम्यं मधु । जयन्क्षेत्रमभ्यर्षा जयन्नप उरुं नो गातुं कृणु सोम मीढ्वः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहस्रऽनीथः । शतऽधारः । अद्भुतः । इन्द्राय । इन्दुः । पवते । काम्यम् । मधु । जयन् । क्षेत्रम् । अभि । अर्ष । जयन् । अपः । उरुम् । नः । गातुम् । कृणु । सोम । मीढ्वः ॥ ९.८५.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 85; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सहस्रनीथः) भवान् सहस्राक्षोऽसि। तथा (शतधारः) नानाविधामोदानां स्रोतः। अथ च (अद्भुतः) आश्चर्यमयोऽस्ति। (इन्द्राय, इन्दुः) ऐश्वर्यस्य प्रकाशकश्चास्ति। (काम्यं, मधुः) कामनारूपमाधुर्यं (पवते) पवित्रयति। अथ च (क्षेत्रं, जयन्) विस्तृतमिमं ब्रह्माण्डं तथा (अपः जयन्) कर्माणि च स्ववशे कुर्वन् (अभ्यर्ष) सम्यक् प्राप्तो भव। (नः, गातुं) मदीयामुपासनां (उरुं, कृणु) विस्तारयतु। (सोम) हे परमात्मन् ! भवान् विविधविधानामानन्दानां (मीढ्वः) सिञ्चन-कर्त्ताऽस्ति ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सहस्रनीथः) आप सहस्राक्ष हैं। (शतधारः) अनेक प्रकार के आनन्दों के स्रोत हैं। (अद्भुतः) आश्चर्यमय हैं। (इन्द्राय इन्दुः) ऐश्वर्य्य के प्रकाशक हैं। (काम्यं मधु) कामनारूप मधुरता को (पवते) पवित्र करनेवाले हैं और (क्षेत्रं जयन्) इस विस्तृत ब्रह्माण्ड को वशीभूत करते हुए और (अपः जयन्) कर्म्मों को वशीभूत करते हुए (अभ्यर्ष) सम्यक् प्राप्त हों। (नो गातुं) हमारी उपासना को (उरुं कृणु) विस्तृत करें। (सोम) हे परमात्मन् ! आप सब प्रकार के आनन्दों को (मीढ्वः) सिञ्चन करनेवाले हैं ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा में ज्ञान की अनन्त शक्तियें हैं और आनन्द की अनन्त शक्तियें हैं। बहुत क्या ? सब आनन्दों की वृष्टि करनेवाला एकमात्र परमात्मा ही है, इसलिये उपासकों को चाहिये कि उस सर्वैश्वर्य्यप्रद परमात्मा की उपासना करें ॥५॥

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    विषय

    विजयी राजा के गुण।

    भावार्थ

    (सहस्र-नीथः) सहस्रों वाणियों, उत्तम नायकों, नयन के तुल्य अनेक गुप्तचरों से युक्त (शत-धारः) मेघवत् सैंकड़ों धारा तुल्य सृष्टिधारक मर्यादाओं और शक्तियों, अधिकारों का स्वामी (अद्भुतः) आश्चर्यजनक, अभूतपूर्व, स्वतः सिद्ध (इन्दुः) तेजस्वी, ऐश्वर्यवान् स्वामी, (इन्द्राय) इन्द्र पद के लिये प्राप्त हो। वह (क्षेत्रम्) देहवत् समस्त रणक्षेत्र को जीत कर अपने वश करके और (अपः जयन्) प्राप्त प्रजाओं को अपने वश कर (काम्यं मधु) चाहने योग्य उत्तम मधुर फल, बल, ऐश्वर्य को (पवते) प्राप्त करता और राष्ट्र को भी प्राप्त कराता है। हे (सोम) उत्तम शासक ! हे (मीढ्वः) मेघवत् सुखों के वर्षक ! तू (नः) हमारे लिये (ऊरूं गातुं कृणु) जाने को उत्तममार्ग, रहने को विस्तृत भूमि और सुनने को उत्तम, विशाल उपदेश कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वेनो भार्गव ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ५, ९, १० विराड् जगती। २, ७ निचृज्जगती। ३ जगती॥ ४, ६ पादनिचृज्जगती। ८ आर्ची स्वराड् जगती। ११ भुरिक् त्रिष्टुप्। १२ त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    सहस्रणीथः शतधारः

    पदार्थ

    [१] शरीर में (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (इन्दुः) = यह सोम (पवते) = प्राप्त होता है। यह (सहस्रणीथः) = हजारों प्रकार से शरीर की क्रियाओं का प्राणयन कर रहा है, प्रत्येक नस नाड़ी में सब क्रियायें इसकी सुस्थिति पर ही निर्भर करती हैं। (शतधारः) = सैकड़ों प्रकार से यह धारण करनेवाला है। (अद्भुतः) = यह शरीर में एक अनुपम तत्त्व है। यह (काम्यं मधु) = चाहने योग्य सम्भूत वस्तु है । [२] हे (मीढ्वः) = सब शक्तियों का सेवन करनेवाले सोम, वीर्यशक्ते ! तू (जयन्) = सब रोगों व वासनाओं को पराजित करता हुआ क्(षेत्रम् अभि अर्ष) = हमारे इस शरीर के प्रति प्राप्त होनेवाला हो । हमारे लिये (अपः) = कर्मों का (जयन्) = विजय करता हुआ तू हमें प्राप्त हो । तेरी शक्ति से ही हम सब कर्मों में सफलता का लाभ करें। तू (नः) = हमारे लिये (उरुं गातुम्) = विशाल मार्ग को कृणु-कर । तेरे सुरक्षण के होने पर हम सब कार्यों को विशाल हृदयता से करनेवाले हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम एक अद्भुत वस्तु है। हजारों प्रकार से यह हमारा धारण कर रहा है। यह हमें नीरोग, क्रियाशील व विशाल हृदय बनाता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Marvellous lord of a thousand powers and possibilities, Soma, spirit of cosmic beauty and joy, flows in a thousand streams of cosmic dynamics for the human soul and brings us the honey sweets of human choice. Flow on forward, O Soma, winning fields of life’s battles for us, winning fields of karmic dynamics, broaden our paths of activity and possibility, O lord generous and omnipotent.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वरामध्ये ज्ञानाच्या अनंत शक्ती आहेत व आनंदाच्या अनंत शक्ती आहेत. एवढेच नव्हे तर संपूर्ण आनंदाची वृष्टी करणारा एकमेव परमात्माच आहे. त्यासाठी उपासकांनी त्या सर्वैश्वर्यप्रद परमेश्वराची उपासना करावी. ॥४॥

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