ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 99/ मन्त्र 2
ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अध॑ क्ष॒पा परि॑ष्कृतो॒ वाजाँ॑ अ॒भि प्र गा॑हते । यदी॑ वि॒वस्व॑तो॒ धियो॒ हरिं॑ हि॒न्वन्ति॒ यात॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठअध॑ । क्ष॒पा । परि॑ऽकृतः । वाजा॑न् । अ॒भि । प्र । गा॒ह॒ते॒ । यदि॑ । वि॒वस्व॑तः । धियः॑ । हरि॑म् । हि॒न्वन्ति॑ । यात॑वे ॥
स्वर रहित मन्त्र
अध क्षपा परिष्कृतो वाजाँ अभि प्र गाहते । यदी विवस्वतो धियो हरिं हिन्वन्ति यातवे ॥
स्वर रहित पद पाठअध । क्षपा । परिऽकृतः । वाजान् । अभि । प्र । गाहते । यदि । विवस्वतः । धियः । हरिम् । हिन्वन्ति । यातवे ॥ ९.९९.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 99; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अध) अथातः इदं वर्ण्यते यत् (क्षपा परिष्कृतः) सैनिकबलेषूपास्यमानः परमात्मा (वाजान्, अभि, प्र गाहते) विविधबलानि वितरति (यदि) यदि (विवस्वतः) याज्ञिकस्य (धियः) कर्माणि (यातवे) कर्मयोगाय (हरिं, हिन्वन्ति) परमात्मानं प्रेरयन्तु तदा ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अध) अब इस बात का वर्णन करते हैं कि (क्षपा परिष्कृतः) सैनिक बलों में उपासना किया हुआ परमात्मा (वाजान्, अभि, प्रगाहते) बलों का प्रदान करता है, पर (यदि) यदि (विवस्वतः) याज्ञिक के (धियः) कर्म (यातवे) कर्मयोग के लिये (हरिम्, हिन्वन्ति) परमात्मा की प्रेरणा करें ॥२॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मोपासक हैं, वे ही युद्ध में विजय पाते हैं ॥२॥
विषय
वीरता और स्तुति का पात्र, शासक।
भावार्थ
(यदि) जब (विवस्वतः) विशेष परिचर्या करने वाले प्रजा जन की (धियः) बुद्धियें और स्तुतियें (हरिं यातवे) नायक को प्रयाण करने के लिये प्रेरित करती हैं (अध) तब वह (परिष्कृतः) अलंकृत, सज धज कर (क्षपा) सेना सहित (वाजान् प्रगाहते) संग्रामों में विचरता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
रेभसून् काश्यपावृषी॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १ विराड् बृहती। २, ३, ५, ६ अनुष्टुप्। ४, ७, ८ निचृदनुष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्।
विषय
'क्षपा परिष्कृतः' [सोमः]
पदार्थ
(अध) = अब (क्षपा) = गतमन्त्र के अनुसार प्रणवजप व वेदाध्ययन से वासनाओं के क्षपण के द्वारा, वासना विनाश के द्वारा (परिष्कृतः) = शुद्ध किया गया यह सोम (वाजान् अभि प्रगाहते) = शक्तियों का आलोडन करता है, शरीर में सब शक्तियों का सञ्चार करता है। यह तब होता है (यद्) = जब कि (ई) = निश्चय से (विवस्वतः) = ज्ञान की किरणों वाले परिचरणशील यजमान की (धियः) = बुद्धि पूर्वक की जानेवाली क्रियायें (हरिम्) = सब रोगों का हरण करनेवाले सोम को (यातवे) = रोगकृमिरूप राक्षसों के विनाश के लिये (हिन्वन्ति) = शरीर में प्रेरित करती हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण के लिये वासनाओं का विनाश आवश्यक है। उसके लिये सर्वोत्तम साधन यह है कि प्रभुस्मरण पूर्वक क्रियाओं में लगे रहें । सुरक्षित सोम रोगकृमिरूप शत्रुओं का विनाश करेगा। हमारे में शक्ति का संचार करेगा ।
इंग्लिश (1)
Meaning
When the thoughts and actions of bright celebrants invoke, invite and inspire Soma to move, initiate and bless, then the divine spirit, exalted by the songs, moves toward battles and inspires, energises and exalts their mind and courage for victory.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक परमात्मोपासक आहेत तेच युद्धात विजय प्राप्त करतात. ॥२॥
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