ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 99/ मन्त्र 4
ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
तं गाथ॑या पुरा॒ण्या पु॑ना॒नम॒भ्य॑नूषत । उ॒तो कृ॑पन्त धी॒तयो॑ दे॒वानां॒ नाम॒ बिभ्र॑तीः ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । गाथ॑या । पु॒रा॒ण्या । पु॒ना॒नम् । अ॒भि । अ॒नू॒ष॒त॒ । उ॒तो इति॑ । कृ॒प॒न्त॒ । धी॒तयः॑ । दे॒वाना॑म् । नाम॑ । बिभ्र॑तीः ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं गाथया पुराण्या पुनानमभ्यनूषत । उतो कृपन्त धीतयो देवानां नाम बिभ्रतीः ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । गाथया । पुराण्या । पुनानम् । अभि । अनूषत । उतो इति । कृपन्त । धीतयः । देवानाम् । नाम । बिभ्रतीः ॥ ९.९९.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 99; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पुनानं, तं) सर्वस्य पावकं तं परमात्मानं (पुराण्या, गाथया) अनाद्या वेदवाण्या (अभि अनूषत) वर्णयन्ति (उतो) अथ च (धीतयः) मेधाविनः (देवानां) सर्वदेवमध्ये तस्यैव (नाम) नामधेयं (कृपन्त) दधति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(तम्) उक्त परमात्मा को (पुनानम्) जो सबको पवित्र करनेवाला है, उसको (पुराण्या, गाथया) अनादिसिद्ध वेदवाणी द्वारा (अभ्यनूषत) वर्णन करते हैं, (उतो) और (धीतयः) मेधावी लोग (देवानाम्) सब देवों के मध्य में उसी के (नाम) नाम को (कृपन्त) धारण करते हैं ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा को सर्वोत्कृष्ट मानकर उपासना करनी चाहिये ॥४॥
विषय
उसका प्रयाण उसका प्रजाओं द्वारा अभिषेक पक्षान्तर में-प्रभु की उपासना, वरण और स्तुति।
भावार्थ
(उतो) और (धीतयः) तत्व का प्रकाश करने वाली वाणियें, (देवानां नाम बिभ्रतीः) देवों, विद्वानों का तत्व-प्रकाशक पदार्थों को यथार्थ स्वरूप धारण करती हुई (तं) उसको (कृपन्त) समर्थ, शक्तिशाली बनाती हैं, और (पुराण्या गाथया) अति पुरातन वेद वाणी से विद्वान् जन वा (पुनानं) सर्वप्रेरक, सर्वपवित्रकारक उसकी (अभि अनूषत) साक्षात् स्तुति करती हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
रेभसून् काश्यपावृषी॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १ विराड् बृहती। २, ३, ५, ६ अनुष्टुप्। ४, ७, ८ निचृदनुष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्।
विषय
देवानां नाम बिभ्रतीः
पदार्थ
(पुनानम्) = हमारे जीवनों को पवित्र करते हुए (तम्) = उस सोम को (पुराण्या गाथया) = इस सनातन वेदवाणी के द्वारा (अभ्यनूषत) = स्तुत करते हैं । वेदमन्त्रों में प्रभु द्वारा उपदिष्ट सोम के गुणों का शंसन करते हैं । (उत) = और (उ) = निश्चय से (देवानाम्) = देववृत्ति वाले पुरुषों के (नाम) = यश को अथवा शत्रुओं का नमन करनेवाले, शत्रुओं को झुका देनेवाले बल को (बिभ्रतीः) = धारण करती हुई (धीतयः) = इस सोम के पान की क्रियायें [धेट् पाने] (कृपन्त) = हमें शक्तिशाली बनाती हैं। सोम के गुणों का शंसन करनेवाला व्यक्ति सोम धारण के लिये यत्नशील होता है। धारित सोम इस सोमी पुरुष को दिव्य बल प्राप्त कराता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम के गुणों का शंसन करते हुए हम सोम के धारण का प्रयत्न करें। यह हमें दिव्य बल यश प्राप्त करायेगा ।
इंग्लिश (1)
Meaning
That spirit of Soma, pure and purifying, the celebrants adore and exalt by songs of old in Vedic voice and, the same, thoughts and actions of veteran sages with the divine name content of the lord supplicate and glorify.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराला सर्वश्रेष्ठ मानून त्याची उपासना केली पाहिजे. ॥४॥
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