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यजुर्वेद अध्याय - 26

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  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 19
    ऋषिः - मुद्गल ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    82

    अनु॑ वी॒रैरनु॑ पुष्यास्म॒ गोभि॒रन्वश्वै॒रनु॒ सर्वे॑ण पु॒ष्टैः। अनु॒ द्विप॒दाऽनु॒ चतु॑ष्पदा व॒यं दे॒वा नो॑ य॒ज्ञमृ॑तु॒था न॑यन्तु॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑। वी॒रैः। अनु॑। पु॒ष्या॒स्म॒। गोभिः॑। अनु॑। अश्वैः॑। अनु॑। सर्वे॑ण। पु॒ष्टैः। अनु॑। द्विप॒देति॒ द्विऽप॑दा। अनु॑। चतु॑ष्पदा। चतुः॑प॒देति॒ चतुः॑पदा। व॒यम्। दे॒वाः। नः॒। य॒ज्ञम्। ऋ॒तु॒थेत्यृ॑तु॒ऽथा। न॒य॒न्तु॒ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनु वीरैरनु पुष्यास्म गोभिरन्वश्वैरनु सर्वेण पुष्टैः । अनु द्विपदानु चतुष्पदा वयन्देवा नो यज्ञमृतुथा नयन्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अनु। वीरैः। अनु। पुष्यास्म। गोभिः। अनु। अश्वैः। अनु। सर्वेण। पुष्टैः। अनु। द्विपदेति द्विऽपदा। अनु। चतुष्पदा। चतुःपदेति चतुःपदा। वयम्। देवाः। नः। यज्ञम्। ऋतुथेत्यृतुऽथा। नयन्तु॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो यथा वयं पुष्टैर्वीरैरनु पुष्यास्म पुष्टैर्गोभिरनुपुष्याम पुष्टैरश्वैरनुपुष्याम सर्वेणानुपुष्याम द्विपदाऽनुपुष्याम चतुष्पदानुपुष्याम तथा देवा नो यज्ञमृतुथा नयन्तु॥१९॥

    पदार्थः

    (अनु) (वीरैः) प्रशस्तबलैः (अनु) (पुष्यास्म) पुष्टा भवेम (गोभिः) धेनुभिः (अनु) (अश्वैः) (अनु) (सर्वेण) (पुष्टैः) (अनु) (द्विपदा) मनुष्यादिना (अनु) (चतुष्पदा) गवादिना (वयम्) (देवाः) विद्वांसः (नः) अस्माकम् (यज्ञम्) धर्म्यं व्यवहारम् (ऋतुथा) ऋतुभिः (नयन्तु) प्रापयन्तु॥१९॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्वीरपुरुषान् पशूंश्च सम्पोष्यानुपोषणीयम्। सदा ऋत्वनुकूलो व्यवहारः कर्त्तव्यश्च॥१९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वान् लोगो! जैसे (वयम्) हम लोग (पुष्टैः) पुष्ट (वीरैः) प्रशस्त बल वाले वीरपुरुषों की (अनु, पुष्यास्म) पुष्टि से पुष्ट हों, बलवती (गोभिः) गौओं की पुष्टि से (अनु) पुष्ट हों, बलवान् (अश्वैः) घोड़े आदि की पुष्टि से (अनु) पुष्ट हों, (सर्वेण) सब की पुष्टि से (अनु) पुष्ट हों, (द्विपदा) दो पग वाले मनुष्य आदि प्राणियों की पुष्टि से (अनु) पुष्ट हों और (चतुष्पदा) चार पग वाले गौ आदि की (अनु) पुष्टि से पुष्ट हों, वैसे (देवाः) विद्वान् लोग (नः) हमारे (यज्ञम्) धर्मयुक्त व्यवहार को (ऋतुथा) ऋतुओं से (नयन्तु) प्राप्त करें॥१९॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि वीर पुरुषों और पशुओं को अच्छे प्रकार पुष्ट करके पश्चात् आप पुष्ट हों। और सदा वसन्तादि ऋतुओं के अनुकूल व्यवहार किया करें॥१९॥

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    विषय

    उत्तम विद्वानों, नायकों और शासकों से भिन्न-भिन्न कार्यों की कामना ।

    भावार्थ

    ( देवाः ) देवगण (नः) हमारे ( यज्ञम् ) परस्पर संगत, समाज और राष्ट्ररूप यज्ञ या प्रजापालक राजा को (ऋतुथा) ऋतुओं के अनुसार, यथाकाल, यथावसर इस प्रकार ( नयन्तु ) ले जावें ( वयम् ) हम (वीरैः ) वीरों से ( अनुपुष्यास्म ) निरन्तर पुष्ट हों, (गोभिः अनु) गौभों से समृद्ध हों, (पुष्टैः भवेः अनु ) हृष्ट पुष्ट अश्वों से समृद्ध हों, (सर्वेण द्विपदा चतुष्पदा) सब प्रकार के दोपाये और चौपाये, भृत्य और पशुओं से (अनु) खूब पुष्ट होते रहें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मुद्गल ऋषिः । आशाः विद्वांसो देवताः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    यज्ञ व पोषण

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के यज्ञ के अनुपात में (वीरै:) = वीर पुत्रों से (अनुपुष्यास्म) = हम पोषण को प्राप्त करें। जितना जितना हमारा जीवन यज्ञिय होता है उतना उतना हमारे सन्तान भी वीर बनते हैं। वस्तुतः भोगमार्ग हमारी शक्तियों को क्षीण करता है, हमारी शक्तियों की क्षीणता के साथ हमारी सन्ताने भी निर्बल होती हैं। २. (गोभिः अश्वैः अनु) [पुष्यास्म] = हम गौवों व घोड़ों से पोषण को प्राप्त हों। हमारे घरों में गौवें हों, घोड़े हों और उनसे हमारे ब्रह्म व क्षत्र का पोषण हो। अथवा 'गाव ज्ञानेन्द्रियाणि, अश्वाः कर्मेन्द्रियाणि' हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ तथा कर्मेन्द्रियाँ ठीक पोषण से युक्त हों। वस्तुत: यज्ञिय वृत्ति हमारी इन्द्रियों को अक्षीण-शक्ति बनाती है । ३. (सर्वेण अनु) [पुष्यास्म] = अन्य भी सब चाहने योग्य शक्तियों के पोषणवाले हम हों, (पुष्टैः) = पुष्टि के साधनभूत गृह आदि सब पदार्थों से (अनु)- [पुष्यास्म] = हम अनुपुष्ट हों । ४. (द्विपदा) = दो पाँवोंवाले मनुष्यों से (अनु) [पुष्यास्म] = पोषण को प्राप्त हों और चतुष्पदा वयम् [पुष्यास्म] चौपाये गौ आदि पशुओं से हम पोषण प्राप्त करनेवाले हों। ५. इस पोषण के उद्देश्य से ही (देवा:) = सब देव (नः) = हमें (यज्ञम्) = यज्ञ को (ऋतुथा) = ऋतु के अनुसार (नयन्तु) = प्राप्त कराएँ। हम प्रत्येक ऋतु में, ऋतु के अनुसार ही हविर्द्रव्यों से यज्ञ करनेवाले हों और यह यज्ञ हमें वीरों, गौवों, अश्वों तथा पोषण के लिए आवश्यक अन्य सब पदार्थों से पुष्ट करें। इन यज्ञों से मनुष्य व पशु सब हमारे अनुकूल हों और हमारे पोषण का कारण बनें।

    भावार्थ

    भावार्थ - हमारी वृत्ति यज्ञिय हो । यज्ञों से हमें सब प्रकार का पोषण प्राप्त हो ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    माणसांनी वीर पुरुष व पशू यांना बलवान करावे व स्वतः बलवान व्हावे आणि नेहमी वसंत इत्यादी ऋतुनुसार व्यवहार करावा.

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    विषय

    मानवांनी काय केले पाहिजे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे विद्वज्जनहो, (वयम्) आम्ही (राष्ट्राचे नागरिक) (पुष्टैः) परिपुष्ट (वीरैः) अतीव बलशाली अशा वीरपुरूषांच्या (अनु, पुष्याम) संरक्षण आणि संदर्धनाद्वारे अधिकाधिक समर्थ व शक्तिमान होऊ (वा व्हावे, असे आम्हाला वायते) तसेच (गोभिः) भरपूर गायी आमच्या जवळ असाव्यात व त्याद्वारे आम्ही (अनु) अधिक पुष्ट होऊ बलवान (अश्‍वैः) घोडे आमच्याजवळ असावेत व त्याद्वारे आम्ही (अनु) अधिक सामर्थ्यवान होऊ (सर्वेण) उन्नतीसाठी आणखी जे जे सर्व आवश्यक आहे त्याची (अनु) पुष्टी आम्हांस मिळावी. (द्विपदा) दोन पायाचे प्राणी मनुष्यासाठी आमच्यासाठी (अनु) आम्हांस शक्ती देणारे असोतः (देवाः) राष्ट्रातील विद्वान लोक (नः) आमच्या (यज्ञम्) धर्मयुक्त कार्यांसाठी आम्हांस (ऋतुथा) ऋतूप्रमाणे (ज्या त्या ऋतूच्या गरजेप्रमाणे) (नयन्तु) प्राप्त व्हावेत. ॥19॥

    भावार्थ

    भावार्थ - मनुष्यांना हवे की त्यानी वीर पुरूषांना आणि आपल्या पालित पशूंना परिपुष्ट व कार्यशील ठेवावे व त्यामुळे स्वतः आपण पुष्ट व्हावे. तसेच सर्वांनी सदा वसंत आदी ऋतूच्या अनुकूल असेल, असे आचरण करावे. ॥19॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    May we be prosperous with strong, brave sons, strong kine, strong horses, the strength of all, strong quadrupeds and strong men about us. May the learned guide our sacrifice (yajna) season-wise.

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    Meaning

    May the powers of divinity and the noblest people guide and conduct our yajna according to the seasons so that we may grow strong and powerful with healthy children and brave heroes, with fertile cows, with strong horses, with all other things, with all men and animals as our own.

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    Translation

    May we prosper with brave sons, cows, horses and all other things that make for prosperity. With bipeds as well as with quadrupeds, may we prosper. May the bounties of Nature guide our sacrifice in due seasons. (1)

    Notes

    Vīraiḥ, gobhiḥ, aśvaiḥ, पुत्रै: धेनुभि: वाजिभि:, with sons, cows and horses-three desired objects of ancient people. Sarveņa puştaiḥ, with all other things that make one powerful and prosperous. Anu dvipadā, with bipeds.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনর্মনুষ্যৈঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
    পুনঃ মনুষ্যদিগকে কী করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে বিদ্বান্গণ! যেমন (বয়ম্) আমরা (পুষ্টৈঃ) পুষ্ট (বীরৈঃ) প্রশস্ত বলযুক্ত বীরপুরুষদিগের (অনু, পুষ্যাস্ম) পুষ্টি দ্বারা পুষ্ট হই, বলবতী (গোভিঃ) গাভিদের পুষ্টি দ্বারা (অনু) পুষ্ট হই, বলবান্ (অশ্বৈঃ) অশ্বাদির পুষ্টি দ্বারা (অনু) পুষ্ট হই (সর্বেণ) সকলের পুষ্টি দ্বারা (অনু) পুষ্ট হই, (দ্বিপদা) দুই পদযুক্ত মনুষ্যাদি প্রাণিগণের পুষ্টি দ্বারা (অনু) পুষ্ট হই এবং (চতুষ্পদা) চারি পদযুক্ত গাভি আদির (অনু) পুষ্টি দ্বারা পুষ্ট হই সেইরূপ (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ (নঃ) আমাদের (য়জ্ঞম্) ধর্মযুক্ত ব্যবহারকে (ঋতুথা) ঋতুসমূহ হইতে (নয়ন্তু) প্রাপ্ত করুক ॥ ১ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, বীরপুরুষগণ ও পশুদেরকে উত্তম প্রকার পুষ্ট করিয়া পশ্চাৎ স্বয়ং পুষ্ট হইবে এবং সদা বসন্তাদি ঋতুসকলের অনুকূল ব্যবহার করিতে থাকিবে ॥ ১ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অনু॑ বী॒রৈরনু॑ পুষ্যাস্ম॒ গোভি॒রন্বশ্বৈ॒রনু॒ সর্বে॑ণ পু॒ষ্টৈঃ ।
    অনু॒ দ্বিপ॒দাऽনু॒ চতু॑ষ্পদা ব॒য়ং দে॒বা নো॑ য়॒জ্ঞমৃ॑তু॒থা ন॑য়ন্তু ॥ ১ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অনুবীরৈরিত্যস্য মুদ্গল ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতাঃ । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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