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यजुर्वेद अध्याय - 26

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  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 24
    ऋषिः - गृत्समद ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - जगती स्वरः - निषादः
    67

    अ॒मेव॑ नः सुहवा॒ऽआ हि गन्त॑न॒ नि ब॒र्हिषि॑ सदतना॒ रणि॑ष्टन।अथा॑ मदस्व जुजुषा॒णो ऽअन्ध॑स॒स्त्वष्ट॑र्दे॒वेभि॒र्जनि॑भिः सु॒मद्ग॑णः॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒मेवेत्य॒माऽइ॑व। नः॒। सु॒ह॒वा॒ऽइति॑ सुऽहवाः। आ। हि। गन्त॑न। नि। ब॒र्हिषि॑। स॒द॒त॒न॒। रणि॑ष्टन। अथ॑। म॒द॒स्व॒। जु॒जु॒षा॒णः। अन्ध॑सः। त्वष्टः॑। दे॒वेभिः॑। जनि॑भि॒रिति॒ जनि॑ऽभिः। सु॒मद्ग॑ण॒ इति॑ सु॒मत्ऽग॑णः ॥२४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अमेव नः सुहवाऽआ हि गन्तन नि बर्हिषि सदतना रणिष्टन । अथा मन्दस्व जुजुषाणो अन्धसस्त्वष्टर्देवेभिर्जनिभिः सुमद्गणः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अमेवेत्यमाऽइव। नः। सुहवाऽइति सुऽहवाः। आ। हि। गन्तन। नि। बर्हिषि। सदतन। रणिष्टन। अथ। मदस्व। जुजुषाणः। अन्धसः। त्वष्टः। देवेभिः। जनिभिरिति जनिऽभिः। सुमद्गण इति सुमत्ऽगणः॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 24
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे त्वष्टो! जुजुषाणः सुमद्गणाः संस्त्वं देवेभिर्जनिभिः सहाऽन्धसो मदस्वाथाऽमेवान्यानानन्दय। हे विद्वांसः! सुहवा यूयममेव बर्हिषि न आ गन्तन। अत्र हि निषदतन रणिष्टन च॥२४॥

    पदार्थः

    (अमेव) उत्तमं गृहमिव (नः) अस्मान् (सुहवाः) शोभनाह्वानाः (आ) (हि) किल (गन्तन) गच्छत (नि) नितराम् (बर्हिषि) उत्तमे व्यवहारे (सदतन) सीदत (रणिष्टन) वदत (अथ) अनन्तरम्। अत्र निपातस्य च [अ॰६.३.१३६] इति दीर्घः। (मदस्व) आनन्द (जुजुषाणः) प्रसन्नः सेवमानः (अन्धसः) अन्नादेर्मध्ये (त्वष्टः) देदीप्यमानः (देवेभिः) दिव्यगुणैः (जनिभिः) जन्मभिः (सुमद्गणः) सुहर्षगणः॥२४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। ये स्वयमुत्तमे व्यवहारे स्थित्वाऽन्यान् स्थापयेयुस्ते सदाऽऽनन्देयुः। स्त्रीपुरुषाः प्रीत्या संयुज्य यान्यपत्यानि जनयेयुस्तानि दिव्यगुणानि जायन्ते॥२४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

    पदार्थ

    हे (त्वष्टः) तेजस्वि विद्वन्! (जुजुषाणः) प्रसन्नचित्त गुरु आदि की सेवा करते हुए (सुमद्गणः) सुन्दर प्रसन्न मण्डली वाले आप (देवेभिः) उत्तम गुण वाले (जनिभिः) जन्मों के साथ (अन्धसः) अन्नादि उत्तम पदार्थों की प्राप्ति में (मदस्व) आनन्दित हूजिये (अथ) इस के अनन्तर (अमेव) उत्तम घर के तुल्य औरों को आनन्दित कीजिये। हे विद्वान् लोगो! (सुहवाः) सुन्दर प्रकार बुलाने हारे तुम लोग उत्तम घर के समान (बर्हिषि) उत्तम व्यवहार में (नः) हमको (आ, गन्तन) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये। इस स्थान में (हि) निश्चित होकर (नि, सदतन) निरन्तर बैठिये और (रणिष्टन) अच्छा उपदेश कीजिए॥२४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो आप उत्तम व्यवहार में स्थित हो के औरों को स्थित करें, वे सदा आनन्दित हों। स्त्री-पुरुष उत्कण्ठा पूर्वक संयोग करके जिन सन्तानों को उत्पन्न करें, वे उत्तम गुण वाले होते हैं॥२४॥

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    विषय

    उत्तम विद्वानों, नायकों और शासकों से भिन्न-भिन्न कार्यों की कामना ।

    भावार्थ

    हे (सुहवाः) सुन्दर, शुभ नाम वाली विद्वान् पुरुषों की स्त्री जनो ! और हे विद्वानो ! आप सब लोग ( आ गन्तन हि) आइये । (बर्हिषि ) उत्तम आसन पर ( नि सदतन ) विराजिये । और (रणिष्टन) उत्तम उपदेश, कीजिये। हे (त्वष्टः ) विद्वन् ! राजन् ! तेजस्विन् ! सूर्य अपने (देवेभिः) किरणों से जल को ग्रहण करता है वैसे तू (देवेभिः) सहयोगी विद्वान् पुरुषों और (जनिभिः) सहयोगी माता, भगिनी, पत्नी आदि और (सुमद्-गण:) उत्तम गुणों वाले सुप्रसन्न गणों अर्थात् भृत्यजनों सहित ( अन्धसः ) अन्न आदि का ( जुजुषाणः) भोग करता हुआ ( मदस्व ) हृष्ट-पुष्ट हो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः । विद्वान् त्वष्टा देवपत्न्यश्च देवताः । जगती । निषादः ॥

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    विषय

    विद्वत् समागम

    पदार्थ

    १. प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'गृत्समद' है- 'गृणाति माद्यति' प्रभु-स्तवन करता है और प्रसन्न रहता है। यह विद्वानों से कहता है कि (नः) = हमारे लिए (सुहवा:) = सुगमता से पुकारने योग्य आप लोग अमा इव अपने घर की भाँति (हि) = निश्चय से (आगन्तन) = आइए। आपको आमन्त्रित करना हमारे लिए दुष्कर न हो जाए, आप हमारे घर को अपना ही घर समझें और यहाँ (बर्हिषि) = दर्भासन पर (निसदतन) = स्थिरता से विराजिए और (रणिष्टन) = उपदेश दीजिए, अर्थात् हम विद्वानों को आमन्त्रित करें, वे हमारे घर में अपने घर की भाँति ही सुविधा अनुभव करें और आसन पर बैठकर हमें समुचित उपदेश दें । २. उपदेश का स्वरूप इस प्रकार है कि [क] (अथा मन्दस्व) = [ अ = परमात्मा, of protection रक्षा] उस प्रभु के रक्षण में आनन्द का अनुभव कर, अर्थात् हम अपने को उस प्रभु के अमृत उपस्तरण व अपिधान में सुरक्षित अनुभव करते हुए आनन्दयुक्त मनवाले हों। [ख] (जुजुषाण:) = उस प्रभु के रक्षण में अपने कर्तव्य कर्मों को प्रीतिपूर्वक सेवन करनेवाले हों। [ग] हे (अन्धसः) = आध्यायनीय सोम की रक्षा से (त्वष्टः) = [त्विषि- दीप्तौ ] अपने ज्ञान को दीप्त करनेवाले साधक! तू (देवेभिः) = दिव्यगुणों के द्वारा तथा (जनिभिः) = अपनी शक्तियों के विकास के द्वारा (सुमद्गणः) = बड़ी प्रसन्न ज्ञानेन्द्रियों के गणवाला उसी प्रकार सुदृढ़ कर्मेन्द्रियों के गणवाला तथा प्रसन्न प्राणपञ्चकवाला बन।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमें विद्वान् लोग प्राप्त हों, उनके सदुपदेश को सुनकर हम आनन्दमय मनोवृत्तिवाले बनें, कर्त्तव्यों को प्रीतिपूर्वक करें, सोमरक्षा द्वारा ज्ञान को दीप्त करते हुए दिव्य गुणोंवाले बनें, शक्तियों का विकास करें तथा प्रकृष्ट ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों व प्राणोंवाले बनें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे स्वतः उत्तम व्यवहार करतात व इतरांनाही करावयास लावतात ते नेहमी आनंदात राहतात. स्री-पुरुषांनी इच्छापूर्वक मिलन करून संतान उत्पन्न केल्यास ते उत्तम गुणांनी युक्त असतात.

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    विषय

    पुनश्‍च, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (त्वष्ठः) तेजस्वी विद्वान (जुजुषाणः) प्रसन्नचित्ताने गुरू आदींची सेवा करीत आणि (सुमद्गणः) चांगल्या प्रसन्नमन मंडळीच्या संगतीत राहत आणि (देवेभिः) उत्तम गुण धारण करीत (जनिभिः) जन्म-जन्मांन्तरापर्यंत आनंदित रहा (अशी आम्ही जिज्ञासू गृहस्थजन आपणास प्रार्थना करीत आहोत) तसेच (अन्धसः) अन्न आदी उत्तम पदार्थांची प्राप्ती करीत सदैव (मदस्व) आनंदित राहा. हे विद्वज्जनहो, (सुहवाः) जसा एक सुंदर घर मनुष्याला बोलावतो (आकर्षित करतो) तद्वत आपण आम्हाला प्रेमाने जवळ बोलावता वा घराप्रमाणे आम्हाला आश्रय देता.) म्हणून (बर्हिषि) या श्रेष्ठ कार्यात (नः) आपण (आ, गन्तन) आमच्या जनक व्हा - सहाय्यक व्हा. आणि या (आमच्या घरात (हि) निश्‍चिंत होऊन (नि, सदतन) निरंतर म्हणजे नेहमी बसा आणि आम्हाला (रणिष्टन) उपदेश करा. ॥24॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. जे लोक स्वतः उत्तम आचरण करतात आणि इतरांनाही करावयास लावतात, ते सदा आनंदित राहतात. तसेच जे पति-पत्नी आनंदित उत्तम गुणवान होते. ॥24॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O majestic scholar, serving gladly thy preceptor, in gladsome company, with the noble qualities, and with thy mother, sister and wife, be happy in the acquisition of nice foodstuffs. Afterwards make others happy like a comfortable house, O learned people, well invoked, establish us in fair dealings, sit near us at ease, and give us good instructions.

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    Meaning

    Tvashta, man of knowledge, maker and shaper of men, centre of a happy company of scholars, loved, honoured and cordially invited, accept our hospitality and enjoy with the generous and brilliant people of divine birth. Come ye all, feel at home, sit on the holy seats of grass in our yajna and rejoice. Rejoice and enlighten us with knowledge and wisdom.

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    Translation

    Quick to respond io our invitations, please come to us as if to your own homes. Be seated on grass-mats, and enjoy. O architect, may you rejoice in taking food in the pleasant company of the enlightened men and women. (1)

    Notes

    Ameva, अमा इव, अमा शब्दो गृहवचनः, as if at your own home. Āgantana, come here. Sadatană, sit; stay. Raniştana, enjoy; रतिं कुर्वत, be merry. Janibhiḥ, with ladies or women who can bear children. Sumadgaṇaḥ, in the pleasant company of.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (ত্বষ্টঃ) তেজস্বি বিদ্বন্! (জুজুষানঃ) প্রসন্নচিত্ত গুরু আদির সেবা করিয়া (সুমদ্গণঃ) সুন্দর প্রসন্ন মণ্ডলী যুক্ত আপনি (দেবেভিঃ) উত্তম গুণসম্পন্ন (জনিভিঃ) জন্মগুলি সহ (অন্ধসঃ) অন্নাদি উত্তম পদার্থের প্রাপ্তিতে (মদস্ব) আনন্দিত হউন (অথ) ইহার অনন্তর (অমেব) উত্তম গৃহের তুল্য অন্যান্যকেও আনন্দিত করুন । হে বিদ্বান্গণ! (সুহবাঃ) সুন্দর প্রকার আহ্বানকারী তোমরা উত্তম গৃহের সমান (বর্হিষি) উত্তম ব্যবহারে (নঃ) আমাদেরকে (আ, গন্তন) উত্তম প্রকারে প্রাপ্ত হউন । এই স্থানে (হি) নিশ্চিত হইয়া (নি, সদতন) নিরন্তর বসুন এবং (রণিষ্টন) উত্তম উপদেশ প্রদান করুন ॥ ২৪ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যাহারা উত্তম ব্যবহারে স্থিত হইয়া অন্যকেও স্থিত করেন তাঁহারা সর্বদা আনন্দে থাকেন । স্ত্রী পুরুষ প্রীতি পূর্বক সংযোগ করিয়া যে সব সন্তান উৎপন্ন করিবে তাহারা উত্তম গুণসম্পন্ন হইয়া থাকে ॥ ২৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒মেব॑ নঃ সুহবা॒ऽআ হি গন্ত॑ন॒ নি ব॒র্হিষি॑ সদতনা॒ রণি॑ষ্টন ।
    অথা॑ মদস্ব জুজুষা॒ণো ऽঅন্ধ॑স॒স্ত্বষ্ট॑র্দে॒বেভি॒র্জনি॑ভিঃ সু॒মদ্গ॑ণঃ ॥ ২৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অমেবেত্যস্য গৃৎসমদ ঋষিঃ । বিদ্বান্ দেবতা । জগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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