यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 8
वै॒श्वा॒न॒रो न॑ ऊ॒तय॒ऽआ प्र या॑तु परा॒वतः॑। अ॒ग्निरु॒क्थेन॒ वाह॑सा। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि वैश्वान॒राय॑ त्वै॒ष ते॒ योनि॑र्वैश्वान॒राय॑ त्वा॥८॥
स्वर सहित पद पाठवै॒श्वा॒न॒रः। नः॒। ऊ॒तये॑। आ। प्र। या॒तु। प॒रा॒वतः॑। अ॒ग्निः। उ॒क्थेन॑। वाह॑सा। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। वै॒श्वा॒न॒राय॑। त्वा॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। वै॒श्वा॒न॒राय॑। त्वा॒ ॥८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वैश्वानरो नऽऊतयऽआ प्र यातु परावतः । अग्निरुक्थेन वाहसा । उपयामगृहीतोसि वैश्वानराय त्वैष ते योनिर्वैश्वानराय त्वा ॥
स्वर रहित पद पाठ
वैश्वानरः। नः। ऊतये। आ। प्र। यातु। परावतः। अग्निः। उक्थेन। वाहसा। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। वैश्वानराय। त्वा। एषः। ते। योनिः। वैश्वानराय। त्वा॥८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः किंवत् किं कुर्युरित्याह॥
अन्वयः
यथा वैश्वानरः परावतो न ऊतय आ प्रयातु तथाऽग्निरुक्थेन वाहसा सहाप्नोतु यस्त्वं वैश्वानरायोपयामगृहीतोऽसि तं त्वा यस्यैष ते वैश्वानराय योनिरस्ति तं त्वा च स्वीकुर्मः॥८॥
पदार्थः
(वैश्वानरः) विश्वेषु नायकेषु विद्वत्सु राजमानः (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षणाद्याय (आ) (प्र, यातु) गच्छतु (परावतः) दूरदेशात् (अग्निः) पावकवद्वर्त्तमानः (उक्थेन) प्रशंसनीयेन (वाहसा) प्रापणेन (उपयामगृहीतः) विद्याविचारसंयुक्तः (असि) (वैश्वानराय) प्रकाशमानाय (त्वा) त्वाम् (एषः) (ते) तव (योनिः) गृहम् (वैश्वानराय) (त्वा) त्वाम्॥८॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोमालङ्कारः। यथा सूर्यो दूरदेशात् स्वप्रकाशेन दूरस्थान् पदार्थन् प्रकाशयति तथा विद्वांसः स्वसूपदेशेन दूरस्थान् जिज्ञासून् प्रकाशयन्ति॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य किसके समान क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
जैसे (वैश्वानरः) समस्त नायक जनों में प्रकाशमान विद्वान् (परावतः) दूर से (नः) हमारी (ऊतये) रक्षा के लिये (आ, प्र, यातु) अच्छे प्रकार आवे, वैसे (अग्निः) अग्नि के समान तेजस्वी मनुष्य (उक्थेन) प्रशंसा करने योग्य (वाहसा) व्यवहार के साथ प्राप्त हो। जो आप (वैश्वानराय) प्रकाशमान के लिये (उपयामगृहीतः) विद्या के विचार से युक्त (असि) हैं, उन (त्वा) आप को तथा जिन (ते) आप का (एषः) यह घर (वैश्वानराय) समस्त नायकों में उत्तम नायकों में उत्तम के लिये (योनिः) घर है, उन (त्वा) आप को भी हम लोग स्वीकार करें॥८॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य दूर देश से अपने प्रकाश से दूरस्थ पदार्थों को प्रकाशित करता है, वैसे ही विद्वान् जन अपने सुन्दर उपदेश से दूरस्थ जिज्ञासुओं को प्रकाशित करते हैं॥८॥
विषय
वैश्वानर पद पर योग्य पुरुष का वरण । उसका लक्षण ।
भावार्थ
(वैश्वानरः) समस्त राष्ट्र का नेता, अथवा समस्त नेता पुरुषों का स्वामी, (अग्नि) अग्नि के समान तेजस्वी (उक्थेन) अपने प्रशंसनीय (वाहसा) साधनों और वाहनों से (नः ऊतये ) हमारी रक्षा के लिये (परावतः) दूर-दूर के देशों तक भी (भा प्रयातु) जाए और दूर देशों से भी आ जाया करे । (उपयाम ० ) इत्यादि पूर्ववत् ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्सः । अग्निर्वैश्वानरः । जगती । निषादः ॥
विषय
उक्थरूपी वाहन
पदार्थ
१. गतमन्त्र का ऋषि कुत्स ही आराधना करता है- (वैश्वानरः) = सब मनुष्यों का हित करनेवाला प्रभु (नः) = हमारी ऊतये रक्षा के लिए (परावतः) = दूर से दूर देश से भी (आप्रयातु) = सर्वथा आये ही। सर्वव्यापकता के नाते प्रभु सर्वत्र हैं, परन्तु जब तक हमें प्रभु का ज्ञान नहीं तब तक प्रभु हमसे दूर ही हैं। प्रभु का ज्ञान ही हमें प्रभु का सामीप्य प्राप्त कराता है। २. वह (अग्निः) = हमें निरन्तर आगे ले चलनेवाला प्रभु (उक्थेन वाहसा) = स्तोत्ररूप वाहन से समीप प्राप्त हो । प्रभु का स्तवन करता हुआ स्तोता प्रभु के गुणों को अपने में धारण करता है, प्रभु जैसा बनता है और इस प्रकार प्रभु का उपासक व प्रभु के सामीप्यवाला होता है । ३. कुत्स प्रभु से कहते हैं कि हे प्रभो! आप (उपायगृहीतः असि) = उपासना द्वारा प्राप्त यम-नियमों से जाने जाते हो। ४. इस प्रकार प्रभु से कहकर कुत्स वेद को सम्बोधित करता है कि मैं (त्वा) = तुझे (वैश्वानराय) = सब नरों के हित करनेवाले प्रभु के लिए ग्रहण करता हूँ। (एषः) = ये प्रभु ही (ते) = तेरे (योनिः) = उत्पत्तिस्थान हैं। अतः (त्वा) = तुझे मैं (वैश्वानराय) = सब नरों का हित करनेवाले प्रभु के लिए ग्रहण करता हूँ।
भावार्थ
भावार्थ- - प्रभु हमारे स्तोत्ररूप वाहनों पर आरूढ़ हो हमें प्राप्त होते हैं और हमारी रक्षा करते हैं। उस वैश्वानर प्रभु की प्राप्ति के लिए वेदज्ञान साधन बनता है।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सूर्य जसा दूर असलेल्या पदार्थांना आपल्या प्रकाशाने प्रकाशित करतो, तसेच विद्वान लोक दूर असलेल्या जिज्ञासू लोकांनाही आपल्या उपदेशाने प्रभावित करतात.
विषय
मनुष्यांनी कोणाप्रमाणे कोणते कार्य करावे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (वैश्वानरः) समस्त नायकांमधे सर्वाधिक प्रसिद्ध विद्वान, (परावतः) (आम्ही रक्षणासाठी हाक दिल्यानंतर) आपण दुरून वा दूरस्थ प्रदेशावरून (नः) आमच्या रक्षणासाठी (आ, प्र, यातु) त्वरित अवश्य या. आपण (अग्निः) अग्नीप्रमाणे तेजस्वी असून (उक्थेन) प्रशंसनीय आहात. (वाहसा) आवश्यक त्या वेळेवर त्या त्या कार्यांसांी प्राप्त होरारे आहात. आपण (वैश्वानराय) प्रकाश इच्छिणार्या व्यक्तीसाठी (उपायामगृहीतः) विद्या आणि विचारांनी प्रेरित होणारे (असि) आहात. (त्वा) अशा आपणाला आणि (ते) आपल्या (एष) या घराला, जे (वैश्वानराय) समस्त नायकजनांसाठी उत्तम आश्रयस्थळ आहे, अशा त्या (योनिः) घराला व (त्वा) आपणाला आम्ही स्वीकार करतो (आपल्या आश्रयास येतो) आपणही आम्हाला आश्रयीं घ्या. ॥8॥
भावार्थ
भावार्थ -या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. सूर्य जसा दूरस्थ असूनही आपल्या प्रकाशाने अतिदूरस्थ पदार्थांनाही प्रकाशित करतो, तद्वत विद्वान जन आपल्या सदुपदेशाद्वारे दूरस्थ (दूर दूरच्या प्रदेशाहून येणार्या) जिज्ञासूजनांनाही संतुष्ट करतात. ॥8॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Just as a learned person foremost amongst the leaders comes for our protection from far away; so should a person brilliant like fire come in a commendable conveyance. We accept thee full of literary thought for a learned person. We accept thee, whose this house is meant for the leader of the learned.
Meaning
Vaishvanara Agni, brilliant power of light and knowledge, come from afar for our protection and advancement, with the Uktha Vedic verses, by a beautiful chariot. Brilliant man of knowledge and science, consecrated and dedicated you are like an oblation in the ladle for Vaishvanara, the fire of social yajna. This dedication is now your life and aim. I accept you for the sake of advancement in the field of science and technology.
Translation
May the adorable Lord, benefactor of all men, come to our succour from far away riding the praises as a vehicle. (1) You have been duly accepted. (2) You to the benefactor of all men. (3) This is your abode. (4) You to the benefactor of all men. (5)
Notes
Ukthena vāhasā, riding the praises as a vehicle.
बंगाली (1)
विषय
পুনর্মনুষ্যাঃ কিংবৎ কিং কুর্য়ুরিত্যাহ ॥
পুনঃ মনুষ্য কাহার সমান কী করিবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–যেমন (বৈশ্বানরঃ) সমস্ত নায়ক গণের মধ্যে প্রকাশমান বিদ্বান্ (পরাবতঃ) দূর দেশ হইতে (নঃ) আমাদের (ঊতয়ে) রক্ষা হেতু (আ, প্র, য়াতু) উত্তম প্রকার আসিবেন, সেইরূপ (অগ্নিঃ) অগ্নি সমান তেজস্বী মনুষ্য (উক্থেন) প্রশংসনীয় (বাহসা) ব্যবহার সহ প্রাপ্ত হউক যাহা আপনি (বৈশ্বানারায়) প্রকাশমান হেতু (উপয়ামগৃহীতঃ) বিদ্যা বিচারে যুক্ত (অসি) আছেন সেই (ত্বা) আপনাকে তথা যে (তে) আপনার (এষঃ) এই গৃহ (বৈশ্বানরায়) সমস্ত নায়কদিগের মধ্যে উত্তম হেতু (য়োনিঃ) আছে সেই (ত্বা) আপনাকেও আমরা স্বীকার করি ॥ ৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন সূর্য্য দূর দেশ হইতে স্বীয় প্রকাশ দ্বারা দূরস্থ পদার্থগুলিকে প্রকশিত করে সেইরূপ বিদ্বান্গণ স্বীয় সুন্দর উপদেশ দ্বারা দূরস্থ জিজ্ঞাসুদেরকে প্রকাশিত করে ॥ ৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
বৈ॒শ্বা॒ন॒রো ন॑ ঊ॒তয়॒ऽআ প্র য়া॑তু পরা॒বতঃ॑ । অ॒গ্নিরু॒ক্থেন॒ বাহ॑সা ।
উ॒প॒য়া॒মগৃ॑হীতোऽসি বৈশ্বান॒রায়॑ ত্বৈ॒ষ তে॒ য়োনি॑র্বৈশ্বান॒রায়॑ ত্বা ॥ ৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বৈশ্বানর ইত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । বৈশ্বানরো দেবতা । জগতী ছন্দঃ ।
নিষাদঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal