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यजुर्वेद अध्याय - 35

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  • यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 22
    ऋषिः - आदित्या देवा वा ऋषयः देवता - सविता देवता छन्दः - स्वराड् गायत्री स्वरः - षड्जः
    54

    अ॒स्मात्त्वमधि॑ जा॒तोऽसि॒ त्वद॒यं जा॑यतां॒ पुनः॑।अ॒सौ स्व॒र्गाय॑ लो॒काय॒ स्वाहा॑॥२२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्मात्। त्वम्। अधि॑। जा॒तः। अ॒सि॒। त्वत्। अ॒यम्। जा॒य॒ता॒म्। पुन॒रिति॒ पुनः॑ ॥ अ॒सौ। स्वर्गायेति॑ स्वः॒ऽगाय॑। लो॒काय॑। स्वाहा॑ ॥२२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्मात्त्वमधिजातोसि त्वदयञ्जायताम्पुनः । असौ स्वर्गाय लोकाय स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अस्मात्। त्वम्। अधि। जातः। असि। त्वत्। अयम्। जायताम्। पुनरिति पुनः॥ असौ। स्वर्गायेति स्वःऽगाय। लोकाय। स्वाहा॥२२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 35; मन्त्र » 22
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे विद्वन्! यतस्त्वमस्माल्लोकादधिजातोऽसि, तस्मादयं त्वत्पुनरसौ स्वाहा स्वर्गाय लोकाय जायताम्॥२२॥

    पदार्थः

    (अस्मात्) लोकात् (त्वम्) (अधि) उपरिभावे (जातः) (असि) भवति (त्वत्) तव सकाशादुत्पन्नः (अयम्) पुत्रः (जायताम्) उत्पद्यताम् (पुनः) पश्चात् (असौ) विशेषनामा (स्वर्गाय) विशेषसुखभोगाय (लोकाय) द्रष्टव्याय (स्वाहा) सत्यया क्रियया॥२२॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः! युष्मभिरिह मनुष्यशरीरं धृत्वा विद्यासुशिक्षासुशीलधर्मयोगविज्ञानानि सङ्गृह्य मुक्तिसुखाय प्रयतितव्यमिदमेव मनुष्यजन्मसाफल्यं वेद्यमिति॥२२॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वान् पुरुष (त्वम्) आप (अस्मात्) इस लोक से अर्थात् वर्त्तमान मनुष्यों से (अधि) सर्वोपरि (जातः) प्रसिद्ध विराजमान (असि) हैं, इससे (अयम्) यह पुत्र (त्वत्) आपसे (पुनः) पीछे (असौ) विशेष नामवाला (स्वाहा) सत्य क्रिया से (लोकाय) देखने योग्य (स्वर्गाय) विशेष सुख भोगने के लिये (जायताम्) प्रकट समर्थ होवे॥२२॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! तुम लोगों को चाहिये कि इस जगत् में मनुष्यों का शरीर धारण कर विद्या, उत्तम शिक्षा, अच्छा स्वभाव, धर्म, योगाभ्यास और विज्ञान का सम्यक् ग्रहण करके मुक्ति सुख के लिये प्रयत्न करो और यही मनुष्यजन्म की सफलता है, ऐसा जानो॥२२॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! या जगात मानव शरीर धारण करून विद्या, उत्तम शिक्षण, चांगला स्वभाव, धर्म, योगाभ्यास, विज्ञानाचे ग्रहण करून मुक्ती सुखासाठी प्रयत्न करा. तीच मनुष्य जन्माची सार्थकता आहे, हे जाणा.

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O learned person, thou art foremost amongst men. May this son born anew from thee, be fair to look at, and enjoy fair reputation and happiness.

    Meaning

    Agni, lord of brilliance and master of a happy home, far higher above have you risen from this world. May this homely world be reborn of you as a new paradise. Our homage to that paradisal world of bliss.

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনর্মনুষ্যৈঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
    পুনঃ মনুষ্যদিগকে কী করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে বিদ্বান্ পুরুষ! (ত্বম্) আপনি (অস্মাৎ) এই লোক দ্বারা অর্থাৎ বর্ত্তমান মনুষ্যদিগের দ্বারা (অধি) সর্বোপরি (জাতঃ) প্রসিদ্ধ বিরাজমান (অসি) আছেন ইহাতে (অয়ম্) এই পুত্র (ত্বৎ) আপনার হইতে (পুনঃ) পিছনে (অসৌ) বিশেষ নামযুক্ত (স্বাহা) সত্য ক্রিয়া দ্বারা (লোকায়) দেখিবার যোগ্য (স্বর্গায়) বিশেষ সুখ ভোগ করিবার জন্য (জায়তাম্) উৎপদ্যমান হইবে ॥ ২২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! তোমাদের উচিত যে, এই জগতে মনুষ্যদের শরীর ধারণ করিয়া বিদ্যা, উত্তম শিক্ষা, উত্তম স্বভাব, ধর্ম, যোগাভ্যাস ও বিজ্ঞানের সম্যক্ গ্রহণ করিয়া মুক্তি সুখের জন্য প্রযত্ন কর এবং এই মনুষ্যজন্মের সাফল্য এইরকম জানিবে ॥ ২২ ॥
    এই অধ্যায়ে ব্যবহার, জীবের গতি, জন্ম, মরণ, সত্য আশীর্বাদ, অগ্নি ও সত্য ইচ্ছা আদির ব্যাখ্যান হওয়ায় এই অধ্যায়ে কথিত অর্থের পূর্ব অধ্যায়ে কথিত অর্থ সহ সঙ্গতি জানিতে হইবে ॥
    ইতি শ্রীমৎপরমহংসপরিব্রাজকাচার্য়াণাং পরমবিদুষাং শ্রীয়ুতবিরজানন্দসরস্বতীস্বামিনাং শিষ্যেণ পরমহংসপরিব্রাজকাচার্য়েণ শ্রীমদ্দয়ানন্দসরস্বতীস্বামিনা নির্মিতে সুপ্রমাণয়ুক্তে সংস্কৃতার্য়্যভাষাভ্যাং বিভূষিতে
    য়জুর্বেদভাষ্যে পঞ্চত্রিংশোऽধ্যায়োऽলমগমৎ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒স্মাত্ত্বমধি॑ জা॒তো᳖ऽসি॒ ত্বদ॒য়ং জা॑য়তাং॒ পুনঃ॑ ।
    অ॒সৌ স্ব॒র্গায়॑ লো॒কায়॒ স্বাহা॑ ॥ ২২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অস্মাদিত্যাদিত্যা দেবা ঋষয়ঃ । অগ্নির্দেবতা । স্বরাড্ গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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