अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 7
ऋषिः - अथर्वा
देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
51
अरा॑त्यास्त्वा॒ निरृ॑त्या अभिचा॒रादथो॑ भ॒यात्। मृ॒त्योरोजी॑यसो व॒धाद्व॑र॒णो वा॑रयिष्यते ॥
स्वर सहित पद पाठअरा॑त्या: । त्वा॒ । नि:ऽऋ॑त्या: । अ॒भि॒ऽचा॒रात् । अथो॒ इति॑ । भ॒यात् । मृ॒त्यो: । ओजी॑यस: । व॒धात् । व॒र॒ण: । वा॒र॒यि॒ष्य॒ते॒ ॥३.७॥
स्वर रहित मन्त्र
अरात्यास्त्वा निरृत्या अभिचारादथो भयात्। मृत्योरोजीयसो वधाद्वरणो वारयिष्यते ॥
स्वर रहित पद पाठअरात्या: । त्वा । नि:ऽऋत्या: । अभिऽचारात् । अथो इति । भयात् । मृत्यो: । ओजीयस: । वधात् । वरण: । वारयिष्यते ॥३.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।
पदार्थ
(वरणः) वरण [स्वीकार करने योग्य वैदिक बोध वा वरना औषध] (त्वा) तुझको (अरात्याः) कंजूसी से, (निर्ऋत्याः) महामारी, (अभिचारात्) विरुद्ध आचरण से, (भयात्) भय से, (मृत्योः) मृत्यु [आलस्य आदि] से (अथो) और (ओजीयसः) अधिक बलवान् के (वधात्) वज्र से (वारयिष्यते) रोकेगा ॥७॥
भावार्थ
मनुष्य विवेकी और बलवान् होकर सब विपत्तियों से बचे ॥७॥
टिप्पणी
७−(अरात्याः) अ० १।२।२। रा दाने-क्तिन्। अदानात्। कृपणत्वात् (त्वा) (निर्ऋत्याः) अ० २।१०।१। कृच्छ्रापत्तेः सकाशात् (अभिचारात्) विरुद्धाचरणात् (अथो) अपि च (भयात्) (मृत्योः) मरणात्। आलस्यात् (ओजीयसः) अ० ५।२।४। बलवत्तरस्य (वधात्) वज्रात्-निघ० २।२०। (वरणः) म० १ (वारयिष्यते) ॥
विषय
'अराति, निर्ऋति, अभिचार, भय व वध' से रक्षण
पदार्थ
१.(वरण:) = यह सब बुराइयों का निवारण करनेवाली वीर्यमणि (त्वा) = तुझे (अरात्या:) = अदानवृत्ति से-कृपणता से (वारयिष्यते) = बचाएगी। (निर्ऋत्या:) = दुराचरण से बचाएगी, (अभिचारात्) = रोगादि के आक्रमण से-अभिचार कमों से (अथो) = और (भयात्) = अन्य भयों से बचाएगी तथा (मृत्योः ओजीयसः वधात) = मृत्यु के अति प्रबल वध से यह तुझे बचाएगी।
भावार्थ
वीर्य-रक्षण हमें 'कृपणता, दुरवस्था, रोगों के आक्रमण' भय तथा असमय की मृत्यु' से बचाता है।
भाषार्थ
(अरात्यः) अदानभावना अर्थात् कंजूसी से, (निर्ॠत्याः) कृच्छ्रापत्ति से, (अभिचारात्) शत्रु द्वारा किये गये घातक तथा दुःखप्रद कर्मों के प्रभाव से, (अथो) तथा (भयात्) अन्य प्रकार के भयों से, और (मृत्याः) मृत्यु सम्बन्धी (ओजीयसः) प्रबल (वधात्) वध के साधनों से (वरणः) वरण ओषधि (वारयिष्यते) तुझे सुरक्षित करेगी।
टिप्पणी
[मानसिक रोगों, मानसिक तथा शारीरिक कष्टों, भयावेश तथा मृत्युकारी यक्ष्म, रक्ताल्पता, शरीर का पीलापन आदि रोगों से मुक्ति, वरण ओषधि द्वारा सम्भव है]।
विषय
वीर राजा और सेनापति का वर्णन।
भावार्थ
(अरात्याः) सुख न देने वाली, शत्रु की (निर्ऋत्थाः) पापमयी सेना के (अभिचारात्) आक्रमण से और उसके कारण उत्पन्न (ओजीयसः) बड़े प्रबल (मृत्योः) मृत्यु के भय और (वधात्) प्राणनाश, शस्त्रवध से भी (वरणः) वह ‘वरण’ नाम रक्षकवर्ग राजा प्रजा को (वारयिष्यते) आपत्तियों से बचा लेने में समर्थ होता है।
टिप्पणी
(च०) ‘त्वं वरुणो वारय’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। वरणो, वनस्पतिश्चन्द्रमाश्च देवताः। २, ३ ६ भुरिक् त्रिष्टुभः, ८ पथ्यापंक्तिः, ११, १६ भुरिजौ। १३, १४ पथ्या पंक्ती, १४-१७, २५ षट्पदा जगत्य:, १, ४, ५, ७, ९, १०, १२, १३, १५ अनुष्टुभः। पञ्चविशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Warding off Rival Adversaries
Meaning
Varana will protect you from want, adversity, malevolence and betrayal, fear and the fatal strike of deadly enemy, even from untimely death.
Translation
From adversity, from calamity, from murderous conspiracy, from fear of death and from violent death the protective blessing will shield you
Translation
This Varana herb will guord you, O man! from pain, from mesery of malignancy, from the trouble caused by attack of diseases and from fear of disease, from death-blow and from the strong stroke.
Translation
From miserliness, from decay, from wrongful conduct, from alarm, from death, from stronger foeman’s stroke, the Vedic knowledge will guard thee well.
Footnote
Death: Early death
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(अरात्याः) अ० १।२।२। रा दाने-क्तिन्। अदानात्। कृपणत्वात् (त्वा) (निर्ऋत्याः) अ० २।१०।१। कृच्छ्रापत्तेः सकाशात् (अभिचारात्) विरुद्धाचरणात् (अथो) अपि च (भयात्) (मृत्योः) मरणात्। आलस्यात् (ओजीयसः) अ० ५।२।४। बलवत्तरस्य (वधात्) वज्रात्-निघ० २।२०। (वरणः) म० १ (वारयिष्यते) ॥
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