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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
    58

    यन्मे॑ मा॒ता यन्मे॑ पि॒ता भ्रात॑रो॒ यच्च॑ मे॒ स्वा यदेन॑श्चकृ॒मा व॒यम्। ततो॑ नो वारयिष्यते॒ऽयं दे॒वो वन॒स्पतिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । मे॒ । मा॒ता । यत् । मे॒ । पि॒ता । भ्रात॑र: । यत् । च॒ । स्वा: । यत् । एन॑: । चकृ॒म: । व॒यम् । तत॑: । न॒: । वा॒र॒यि॒ष्य॒ते॒ । अ॒यम् । दे॒व: । वन॒स्पति॑: ॥३.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्मे माता यन्मे पिता भ्रातरो यच्च मे स्वा यदेनश्चकृमा वयम्। ततो नो वारयिष्यतेऽयं देवो वनस्पतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । मे । माता । यत् । मे । पिता । भ्रातर: । यत् । च । स्वा: । यत् । एन: । चकृम: । वयम् । तत: । न: । वारयिष्यते । अयम् । देव: । वनस्पति: ॥३.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जो कुछ (एनः) पाप (मे माता) मेरी माता ने, (यत्) जो कुछ (मे पिता) मेरे पिता ने, (यत्) जो कुछ (मे भ्रातरः) मेरे भाइयों ने (च) और (स्वाः) ज्ञातिवालों ने और (यत्) जो कुछ (वयम्) हमने (चकृम) किया है (ततः) उस से (नः) हमको (अयम्) यह (देवः) दिव्य गुणवाला (वनस्पतिः) सेवनीय गुणों का रक्षक [पदार्थ] (वारयिष्यते) बचावेगा ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य है कि वे अपने बन्धुओं सहित सदा विवेकी और बलवान् रह कर पाप कर्म से बचें ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(यत्) यत् किञ्चित् (मे) मम (भ्रातरः) सहोदराः (स्वाः) ज्ञातयः (एनः) पापम् (चकृम) कृतवन्तः (ततः) पापात् (नः) अस्मान् (वारयिष्यते) प्रतिरोत्स्यते (अयम्) (देवः) दिव्यगुणः (वनस्पतिः) अ० ६।८५।१। वननीयानां सेवनीयानां गुणानां पालकः। अन्यत् सुगमम् ॥

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    विषय

    पापवारक-'वरण' मणिः

    पदार्थ

    १. (यत् एन:) = जिस पाप को (मे माता) = मेरी माता ने, (यत् मे पिता) = जिसे मेरे पिता ने, (यत् च में भातरः स्वा:) = और जिसे मेरे भाइयों व बन्धुओं ने, (यत् [एना] वयं चकृम) = जिस पाप को हमने स्वयं किया है, (ततः) = उस सबसे (अयम्) = यह (देवः) = सब अशुभों को जीतने की कामनावाला (वनस्पति:) = संभजनीय तत्त्वों का रक्षक वरणमणि [वीर्यरूप मणि] (वारयिष्यते) = बचाएगा।

    भावार्थ

    यह वीर्यरूप वरणमणि शरीरों में सुरक्षित होने पर 'माता, पिता, भाई, बन्धु व स्वयं हमसे हो जानेवाले पापों से बचाता है।

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    भाषार्थ

    (यत् एनः) जो पाप (मे माता) मेरी माता ने, (यत् मे पिता) जो मेरे पिता ने, (यत् च) और जो (मे) मेरे (स्वाः भ्रातरः) अपने भाइयों ने, (यद्) जो (वयम्) हम सब ने मिल कर पाप (चकृम) किये हैं, (ततः) उन से (नः) हमें (अयम्) यह (देवः) दिव्यगुणों वाली (वनस्पतिः) वरण-वनस्पति (वारयिष्यते) निवारित कर देगी।

    टिप्पणी

    [वरण-ओषधि पापकर्मों के दुष्परिणामों अर्थात् शारीरिक, ऐन्द्रियिक और मानसिक हमारे रोगों को निवारित करे। वनस्पति का अर्थ "वनों का अधिपति" वरण-सेनाध्यक्ष करने पर अभिप्राय यह होगा कि वह हमें राष्ट्रिय-पापकर्मों के करने से भविष्य में, निवारित करता रहे]।

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    विषय

    वीर राजा और सेनापति का वर्णन।

    भावार्थ

    (यत् एनः) जो पाप (मे माता) मेरी माता और (यत् एनः) जो पाप मेरा पिता और (यत् च) जो पाप (मे) मेरे (भ्रातरः) भाई लोग और (यत् एनः) जो पाप मेरे (स्वाः) अपने बन्धु जन और (वयम्) हम (चकृम) करते हैं (ततः) उन सब पापों से (अयम्) यह (वनस्पतिः) बड़े वृक्ष के समान शरण योग्य प्रजापालक (देवः) देव, राजा (वारयिष्यते) रक्षा करेगा। राजा प्रजा के भीतरी सम्बन्धों में होने वाले अत्याचारों से भी प्रजा की रक्षा राजा ही करे।

    टिप्पणी

    (च०) ‘तस्मान्नो’ (प्र०) ‘इदं देवबृहस्पतिः’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। वरणो, वनस्पतिश्चन्द्रमाश्च देवताः। २, ३ ६ भुरिक् त्रिष्टुभः, ८ पथ्यापंक्तिः, ११, १६ भुरिजौ। १३, १४ पथ्या पंक्ती, १४-१७, २५ षट्पदा जगत्य:, १, ४, ५, ७, ९, १०, १२, १३, १५ अनुष्टुभः। पञ्चविशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Warding off Rival Adversaries

    Meaning

    Whatever sin, evil or contagion my mother, my father, my brothers, all my own people, we all, have done or caused, this divine vanaspati, this herb, this master of the common wealth of the nation, will save us and absolve us of that and its consequences.

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    Translation

    Whatever sin we - my mother, my father, my brothers, and my close relatives - might have committed, from that this divine lord of forest will shield us.

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    Translation

    This mighty herbaceous plant will be our guard against the affection of disease which my mother, which my father, which my brother, which my friends and ourselves have created.

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    Translation

    Each sinful act that my mother, my father, my kinsmen and we have done, from all that guilt this divine Vedic knowledge, that affords shelter to all, will be our guard and sure defence.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(यत्) यत् किञ्चित् (मे) मम (भ्रातरः) सहोदराः (स्वाः) ज्ञातयः (एनः) पापम् (चकृम) कृतवन्तः (ततः) पापात् (नः) अस्मान् (वारयिष्यते) प्रतिरोत्स्यते (अयम्) (देवः) दिव्यगुणः (वनस्पतिः) अ० ६।८५।१। वननीयानां सेवनीयानां गुणानां पालकः। अन्यत् सुगमम् ॥

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