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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 10
    ऋषिः - दुःस्वप्ननासन देवता - साम्नी गायत्री छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    41

    यज्जाग्र॒द्यत्सु॒प्तो यद्दिवा॒ यन्नक्त॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । जाग्र॑त् । यत् । सु॒प्त: । यत् । दिवा॑ । यत् । नक्त॑म् ॥७.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यज्जाग्रद्यत्सुप्तो यद्दिवा यन्नक्तम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । जाग्रत् । यत् । सुप्त: । यत् । दिवा । यत् । नक्तम् ॥७.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 7; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    [वैसे ही] (यत्) जो [कष्ट] (जाग्रत्) जागता हुआ, (यत्) जो [कष्ट] (सुप्तः) सोता हुआ मैं (यत्) जो [कष्ट] (दिवा) दिन में, (यत्) जो (नक्तम्) रात्रि में॥१०॥

    भावार्थ

    जैसे पूर्वज विद्वान्लोग बड़े-बड़े कष्ट सहकर दुराचारी असुरों को हराते आये हैं, वैसे ही मनुष्यक्लेशें सहकर दुष्टों को हराकर शिष्टों का पालन करते रहें ॥९, १०, ११॥

    टिप्पणी

    १०−(यत्) कष्टम् (जाग्रत्) जागरणयुक्तः सन् (सुप्तः) निद्रालुः सन् (दिवा) दिने (नक्तम्) रात्रौ।अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    दोष-विनाश

    पदार्थ

    १. प्रभु-प्रेरणा को सुनकर जीव उत्तर देता है कि (यत्) = जो (अदः अदः) = अमुक-अमुक दोष (अभ्यगच्छन्) = मेरे प्रति आता हो, (यत्) = जो दोष (दोषा) = रात्रि के समय आता है, (यत्) = जो (पूर्व रात्रिम्) = रात्रि के पूर्वभाग में मुझे प्राप्त होता है। मेरे न चाहते हुए भी रात्रि के समय जिस दोष से मैं आक्रान्त हो जाता हूँ। २. अथवा (यत्) = जिस दोष को (जाग्रत्) = जागते हुए, (यत्) = जिस दोष को मैं (सुप्तः) = सोये हुए, (यत्) = जिस दोष को (दिवः) = दिन में और (यत्) = जिस दोष को (नक्तम्) = रात्रि में, ३. (यत्) = जिस दोष को (अहरहः) = प्रतिदिन (अभिगच्छामि) = मैं प्राप्त होता हूँ, (एनाम्) = इस दोष को (तस्मात्) = संयम के द्वारा [सुयामन्], आत्मनिरीक्षण के द्वारा [चाक्षुष] तथा कुलीनता के विचार के द्वारा [आमुष्यामण] (अवदये) = सुदूर विनष्ट करता हूँ। [दय हिंसायाम्]।

    भावार्थ

    जो दोष मुझे रात्रि के समय आक्रान्त कर लेता है, या जिस दोष के प्रति मैं सोते-जागते चला जाता हूँ, उस दोष को 'संयम, आत्मनिरीक्षण व कुलीनता' के विचार से दूर करता हूँ-विनष्ट करता हूँ।

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    भाषार्थ

    (यत्) जिसे (जाग्रत्) जागता हुआ, (यत्) जिसे (सुप्तः) सोया हुआ, (यत्) जिसे (दिवा) दिन में, (यत्) जिसे (नक्तम्) अभिव्यक्ति रहित गाढ़ रात्रि में ||१०||

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    विषय

    शत्रुदमन।

    भावार्थ

    (यत्) जो (अदः अदः) अमुक अमुक अपराध (अभि-अगच्छन्) मैं इस अपराधी का देखता हूं। (यत् दोषा यत् पूर्वां रात्रिम्) जो इस रात में और जो गयी पूर्व की रात्रि में और (यत् जाग्रत्) जो जागते हुए (यत् सुप्तः) जो सोते हुए (यत् दिवा, यत् नक्तम्) जो दिन को और जो रात्रि को और (यत्) जो (अहः-अहः) प्रतिदिन (अभिगच्छामि) इसका अपराध पाता हूं (तस्मात्) इस कारण से (एनम्) इस अपराधी को (अवदये) दण्डित करता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यमऋषिः। दुःस्वप्ननाशनो देवता। १ पंक्तिः। २ साम्न्यनुष्टुप्, ३ आसुरी, उष्णिक्, ४ प्राजापत्या गायत्री, ५ आर्च्युष्णिक्, ६, ९, १२ साम्नीबृहत्यः, याजुपी गायत्री, ८ प्राजापत्या बृहती, १० साम्नी गायत्री, १२ भुरिक् प्राजापत्यानुष्टुप्, १३ आसुरी त्रिष्टुप्। त्रयोदशर्चं सप्तमं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atma-Aditya Devata

    Meaning

    Whatever while awake, whatever when asleep, whatever in the day, whatever at night,

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    Translation

    what while awake, what while asleep, what by day, what by night;

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    Translation

    Whether waking or sleeping, whether by day or by night.

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    Translation

    Whether waking or sleeping, whether by day or by night.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(यत्) कष्टम् (जाग्रत्) जागरणयुक्तः सन् (सुप्तः) निद्रालुः सन् (दिवा) दिने (नक्तम्) रात्रौ।अन्यत् पूर्ववत् ॥

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